अलवर : सरिस्का टाइगर रिजर्व वैसे तो 1213 वर्ग किलोमीटर में फैला है, लेकिन यहां बाघों की संख्या में अगर ऐसी ही वृद्धि होती रही तो भविष्य में यह जंगल भी टाइगर के लिए छोटा पड़ सकता है. बाघों के लिए यह जंगल छोटा ना पड़ जाए, इसको लेकर सरिस्का प्रशासन व राज्य सरकार ने अभी से प्रयास शुरू कर दिए हैं. सरिस्का का जंगल 607 वर्ग किलोमीटर और बढ़ाने की कवायद इन दिनों सरकार स्तर पर जारी है.
सरिस्का टाइगर रिजर्व में अभी बाघों की संख्या 43 है और जल्द ही इसमें वृद्धि की संभावना है. वन्यजीव विशेषज्ञों का मानना है कि एक टाइगर की टैरिटरी 40 से 50 वर्ग किलोमीटर होती है. इस लिहाज से मौजूदा सभी बाघों के वयस्क होने की स्थिति में 2100 वर्ग किलोमीटर से ज्यादा वन क्षेत्र की जरूरत होगी. बाघों की संख्या में और वृद्धि होने पर सरिस्का टाइगर रिजर्व में भी रणथंभौर अभयारण्य की तरह बाघों के जंगल से बाहर निकलने की समस्या उत्पन्न हो सकती है. सरिस्का का अभी क्षेत्रफल 1213 वर्ग किलोमीटर है. इसमें आधा जंगल पहाड़ी क्षेत्र या कटीली झाड़ियों से घिरा है. ऐसे में यहां बाघों की संख्या बढ़ने पर टैरिटरी के लिए बाघों के बीच संघर्ष या उनके जंगल से बाहर निकलने की समस्या हो सकती है.
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सरिस्का का क्षेत्र बढ़ाने की यह कवायद : सरिस्का के कार्यवाहक डीएफओ राजेन्द्र हुड्डा ने बताया कि सरिस्का का क्षेत्रफल बढ़ाने के लिए अलवर वन मंडल, दौसा वन मंडल एवं जयपुर वन मंडल के उत्तर क्षेत्र का कुछ हिस्सा जोड़ने की कवायद की जा रही है. इन तीनों वन मंडलों का करीब 607 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र सरिस्का में जोड़ने की कवायद सरकार स्तर पर जारी है. सरिस्का का क्षेत्र बढ़ने से बाघों के लिए टैरिटरी की समस्या नहीं रहेगी.
पहले भी बाहर निकल चुके सरिस्का के बाघ : सरिस्का के बाघ पहले भी बाहर निकल चुके हैं. अभी सरिस्का एक बाघ जमवारामगढ़ वन क्षेत्र में घूम रहा है. वहीं, इससे पहले एक बाघ दौसा जिले तक घूम कर वापस आ चुका है. पिछले दिनों एक बाघ हरियाणा के रेवाड़ी जिले तक पहुंच गया था. वहीं, सरिस्का में बाघ एसटी-4 और एसटी-6 के बीच टैरिटरी को लेकर संघर्ष हो चुका है, जिसमें दोनों गंभीर घायल हो गए और इन बाघों की मौत भी हो गई.