ETV Bharat / state

दो जून की रोटी की खातिर जिंदगी दांव पर, 5 साल में 24 हजार मजदूर आए सिलिकोसिस की चपेट में - Silicosis patients increased

हर साल हजारों की संख्या में खान श्रमिक और पत्थर का काम करने वाले कारीगर सिलिकोसिस जैसी लाइलाज बीमारी की चपेट में आ रहे हैं. सरकारी आंकड़ों के अनुसार पिछले 5 साल में प्रदेशभर में सिलिकोसिस के 24 हजार से अधिक मरीज सामने आए हैं.

silicosis patient in Bharatpur,  cause of silicosis disease
दो जून की रोटी की खातिर जिंदगी दांव पर
author img

By ETV Bharat Rajasthan Team

Published : Feb 29, 2024, 6:03 PM IST

Updated : Feb 29, 2024, 6:13 PM IST

दो जून की रोटी की खातिर जिंदगी दांव पर.

भरतपुर. परिवार पालने की जुगत के आगे मजदूर अपनी जिंदगी भी दांव पर लगा रहे हैं. इसका जीता जागता उदाहरण जोधपुर और भरतपुर संभाग में देखने को मिल रहा है. यहां पत्थर की खान से लेकर पत्थर की कटाई तक के काम में लगे सैंकड़ों मजदूर सिलिकोसिस जैसी लाइलाज बीमारी की चपेट में आ रहे हैं. पेट भरने के लिए काम कर रहे अब तक सैंकड़ों मजदूर इस बीमारी की गिरफ्त में आने के बाद जान गंवा चुके हैं. सरकारी आंकड़ों पर नजर डालें, तो बीते 5 साल में प्रदेशभर में सिलिकोसिस के 24 हजार से अधिक मरीज सामने आए हैं. इनमें सबसे ज्यादा मरीज जोधपुर और भरतपुर संभाग में सामने आए हैं, जबकि सैकड़ों मरीज अब तक इस बीमारी से जान गंवा चुके हैं. यह सब खदानों में खनन कार्य के दौरान बरती जा रही लापरवाही की वजह से हो रहा है.

यह है बीमारी का कारणः सिलिकोसिस एवं क्षय रोग विशेषज्ञ डॉ हितेश बंसल ने बताया कि जिले के रूपवास, रुदावल, बंसी पहाड़पुर, बयाना, कामां, पहाड़ी आदि क्षेत्र में अधिकतर लोग खदानों में मजदूरी का काम करते हैं. खनन कार्य के दौरान मजदूर मास्क और अन्य बचाव के साधनों का इस्तेमाल नहीं करते, जिसकी वजह से इनके फेफड़ों में डस्ट पहुंचती रहती है और ये सिलिकोसिस की चपेट में आ जाते हैं. जिले के इन्हीं क्षेत्रों में वर्तमान में 2 हजार से अधिक सिलिकोसिस के मरीज हैं.

इसे भी पढ़ें-Silicosis Patients In Rajasthan : राज्य में सिलिकोसिस मरीजों की बढ़ रही संख्या, तीन साल में 7,188 लोगों की मौत

क्या है सिलिकोसिस : डॉ हितेश बंसल ने बताया कि खनन कार्य के दौरान सांस के साथ पत्थर की डस्ट फेफड़ों में पहुंचती है. डस्ट धीरे-धीरे फेफड़ों में जमा होती रहती है. इससे फेफड़ों के फूलने और सिकुड़ने की क्षमता कम होती जाती है. एक स्टेज ऐसी आती है कि फेफड़े पूरी तरह से फूलना सिकुड़ना बंद कर देते हैं. इसी बीमारी को सिलिकोसिस कहा जाता है. यह लाइलाज बीमारी है.

डॉ हितेश ने बताया कि जिले के बंशी पहाड़पुर, भुसावर, वैर आदि क्षेत्रों में हॉट स्पॉट चिह्नित कर लगातार चिकित्सा एवं जांच शिविर लगाए जाते हैं. प्रभावित क्षेत्रों में शिविर लगाकर लोगों की स्वास्थ्य जांच के साथ ही उन्हें सिलिकोसिस से बचाव के उपाय भी बताए जाते हैं. उन्हें जागरूक किया जाता है. खदानों में जाकर खान संचालक और श्रमिकों को गीली छिद्रड़ प्रणाली से खनन करने के लिए भी जागरूक किया जाता है, ताकि खनन कार्य के दौरान धूल, मिट्टी और पत्थर के कण न उड़ें.

725 से अधिक मौत : भरतपुर के प्रभावित क्षेत्रों में आए दिन सिलिकोसिस से लोगों की मौत हो रही है. सर्वाधिक मौतें रुदावल, रूपवास, बयाना, बंशी पहाड़पुर में हुई हैं. चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग के आंकड़ों की मानें तो वर्ष 2018-19 से अब तक जिले में सिलिकोसिस से 725 से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है, जबकि दर्जनों मरीज गंभीर हालत में हैं.

दो जून की रोटी की खातिर जिंदगी दांव पर.

भरतपुर. परिवार पालने की जुगत के आगे मजदूर अपनी जिंदगी भी दांव पर लगा रहे हैं. इसका जीता जागता उदाहरण जोधपुर और भरतपुर संभाग में देखने को मिल रहा है. यहां पत्थर की खान से लेकर पत्थर की कटाई तक के काम में लगे सैंकड़ों मजदूर सिलिकोसिस जैसी लाइलाज बीमारी की चपेट में आ रहे हैं. पेट भरने के लिए काम कर रहे अब तक सैंकड़ों मजदूर इस बीमारी की गिरफ्त में आने के बाद जान गंवा चुके हैं. सरकारी आंकड़ों पर नजर डालें, तो बीते 5 साल में प्रदेशभर में सिलिकोसिस के 24 हजार से अधिक मरीज सामने आए हैं. इनमें सबसे ज्यादा मरीज जोधपुर और भरतपुर संभाग में सामने आए हैं, जबकि सैकड़ों मरीज अब तक इस बीमारी से जान गंवा चुके हैं. यह सब खदानों में खनन कार्य के दौरान बरती जा रही लापरवाही की वजह से हो रहा है.

यह है बीमारी का कारणः सिलिकोसिस एवं क्षय रोग विशेषज्ञ डॉ हितेश बंसल ने बताया कि जिले के रूपवास, रुदावल, बंसी पहाड़पुर, बयाना, कामां, पहाड़ी आदि क्षेत्र में अधिकतर लोग खदानों में मजदूरी का काम करते हैं. खनन कार्य के दौरान मजदूर मास्क और अन्य बचाव के साधनों का इस्तेमाल नहीं करते, जिसकी वजह से इनके फेफड़ों में डस्ट पहुंचती रहती है और ये सिलिकोसिस की चपेट में आ जाते हैं. जिले के इन्हीं क्षेत्रों में वर्तमान में 2 हजार से अधिक सिलिकोसिस के मरीज हैं.

इसे भी पढ़ें-Silicosis Patients In Rajasthan : राज्य में सिलिकोसिस मरीजों की बढ़ रही संख्या, तीन साल में 7,188 लोगों की मौत

क्या है सिलिकोसिस : डॉ हितेश बंसल ने बताया कि खनन कार्य के दौरान सांस के साथ पत्थर की डस्ट फेफड़ों में पहुंचती है. डस्ट धीरे-धीरे फेफड़ों में जमा होती रहती है. इससे फेफड़ों के फूलने और सिकुड़ने की क्षमता कम होती जाती है. एक स्टेज ऐसी आती है कि फेफड़े पूरी तरह से फूलना सिकुड़ना बंद कर देते हैं. इसी बीमारी को सिलिकोसिस कहा जाता है. यह लाइलाज बीमारी है.

डॉ हितेश ने बताया कि जिले के बंशी पहाड़पुर, भुसावर, वैर आदि क्षेत्रों में हॉट स्पॉट चिह्नित कर लगातार चिकित्सा एवं जांच शिविर लगाए जाते हैं. प्रभावित क्षेत्रों में शिविर लगाकर लोगों की स्वास्थ्य जांच के साथ ही उन्हें सिलिकोसिस से बचाव के उपाय भी बताए जाते हैं. उन्हें जागरूक किया जाता है. खदानों में जाकर खान संचालक और श्रमिकों को गीली छिद्रड़ प्रणाली से खनन करने के लिए भी जागरूक किया जाता है, ताकि खनन कार्य के दौरान धूल, मिट्टी और पत्थर के कण न उड़ें.

725 से अधिक मौत : भरतपुर के प्रभावित क्षेत्रों में आए दिन सिलिकोसिस से लोगों की मौत हो रही है. सर्वाधिक मौतें रुदावल, रूपवास, बयाना, बंशी पहाड़पुर में हुई हैं. चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग के आंकड़ों की मानें तो वर्ष 2018-19 से अब तक जिले में सिलिकोसिस से 725 से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है, जबकि दर्जनों मरीज गंभीर हालत में हैं.

Last Updated : Feb 29, 2024, 6:13 PM IST
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.