रांची: चुनाव से ठीक पहले कांग्रेस छोड़ भाजपा में शामिल होने वाली गीता कोड़ा को जनता ने नकार दिया तो दूसरी ओर झामुमो छोड़ भाजपा में शामिल हुई सीता सोरेन को भी हार का सामना करना पड़ा. भाजपा विधायक जेपी पटेल ने दलबदल कर कांग्रेस के सिंबल पर हजारीबाग से चुनाव लड़ा और जनता ने उन्हें भी नकारा दिया.
इस चुनाव में दिलचस्प नतीजा यह भी रहा कि झामुमो छोड़ निर्दलीय चुनाव मैदान में उतरने वाले सभी विधायक और पूर्व विधायक की हार हो गयी. निर्दलीय चुनाव मैदान में उतरकर राजनीतिक परिणाम को बदल देने की तमन्ना दिल मे लिए झामुमो विधायक लोबिन हेम्ब्रम राजमहल से हों या लोहरदगा से निर्दलीय चुनाव लड़ रहे चमरा लिंडा हो. जनता ने NDA और INDIA की सीधी लड़ाई में जनता ने उन्हें पूरी तरह नकार दिया.
इसी तरह इस बार कोडरमा से निर्दलीय चुनाव मैदान में उतरे झामुमो नेता और पूर्व विधायक जेपी वर्मा और कोलेबिरा के पूर्व विधायक रहे बसंत लौंगा को खूंटी लोकसभा की जनता ने पूरी तरह नकार दिया. अब सवाल यह है कि अपनी पार्टी से बगावत कर चुनाव मैदान में उतरे इन बागियों का राजनीतिक भविष्य क्या है क्योंकि इनमें से ज्यादातर विधायक वैसे हैं जो अपनी ही विधानसभा में बढ़त नहीं बना पाए.
एक नजर डालें बगावत करने वाले विधायक, पूर्व विधायकों के उनके अपने विधानसभा क्षेत्र में कैसा रहा परफॉरमेंस
लोबिन हेम्ब्रम
बोरियो विधानसभा सीट से झामुमो विधायक लोबिन हेम्ब्रम ने पार्टी से बगावत कर राजमहल सीट से निर्दलीय चुनाव लड़ा, लेकिन उनकी करारी हार हुई. राजमहल लोकसभा के बोरियो विधानसभा में ही लोबिन हेम्ब्रम बढ़त नहीं बना पाए. विधायक लोबिन हेम्ब्रम को बोरियो में महज 14133 मत मिले जबकि झामुमो के विजय हांसदा ने 77537 मत पा लिए.
जेपी वर्मा
झामुमो से बगावत कर कोडरमा लोकसभा सीट से निर्दलीय चुनाव मैदान में उतरे कोडरमा के पूर्व विधायक जेपी वर्मा हो कोडरमा की जनता ने ही बुरी तरह नकार दिया. यहां विजयी भाजपा उम्मीदवार को जहां 159250 मत मिला तो जेपी वर्मा को महज 3225 मत पर ही संतोष करना पड़ा.
गीता कोड़ा
सिंहभूम लोकसभा सीट से कांग्रेस सांसद और जगरनाथपुर विधानसभा सीट से पूर्व में विधायक रही गीता कोड़ा के दल बदल कर भाजपा उम्मीदवार बन जाने को भी वहां की जनता ने स्वीकार नहीं किया. और तो और जगरनाथपुर विधानसभा सीट पर भी वह झामुमो उम्मीदवार जोबा मांझी को नहीं पछाड़ सकीं. जोबा ने जहां जगरनाथपुर में 70 हजार से अधिक वोट हासिल किया तो वहीं गीता कोड़ा को महज 49105 मत ही मिले.
बसंत लौंगा
खूंटी लोकसभा सीट से झामुमो से बगावत कर निर्दलीय चुनाव मैदान में उतरे कोलेबिरा के पूर्व विधायक बसंत लौंगा को कोलेबिरा की जनता ने ही नकार दिया. यहां कांग्रेस के उम्मीदवार कालीचरण मुंडा को 80951 मत मिले तो बसंत लौंगा सिर्फ 1898 मत ही पा सके.
चमरा लिंडा
बिशुनपुर विधानसभा क्षेत्र से झामुमो विधायक चमरा लिंडा ने बगावत कर लोहरदगा लोकसभा क्षेत्र से निर्दलीय चुनाव मैदान में उतरे थे, उन्हें उम्मीद थी कि लोहरदगा लोकसभा क्षेत्र की जनता उसे जीत का माला पहनाएगी. लेकिन अन्य विधानसभा क्षेत्र की बात छोड़िए बिशुनपुर विधानसभा क्षेत्र में ही वह कांग्रेस प्रत्याशी सुखदेव भगत से 64 हजार से अधिक मतों से पिछड़ गए. INDIA उम्मीदवार सुखदेव भगत को जहां बिशुनपुर में 77895 मत मिले तो चमरा लिंडा को महज 13276 मत मिला.
जेपी पटेल
मांडू से भाजपा विधायक जेपी पटेल ने पार्टी से बगावत कर कांग्रेस के टिकट पर हजारीबाग लोकसभा सीट से चुनाव लड़ा, उन्हें अपनी जीत की उम्मीद भी थी. लेकिन जेपी पटेल की न सिर्फ हजारीबाग लोकसभा सीट से करारी हार हुई, बल्कि अपने मांडू विधानसभा सीट से भी जेपी पटेल बढ़त नहीं बना सकें. भाजपा प्रत्याशी के रूप में मनीष जायसवाल को जहां 01 लाख 18 हजार से अधिक मत मिला तो जेपी पटेल को सिर्फ 86-87 हजार वोट ही पा सकें.
सिर्फ सीता सोरेन रहीं अपवाद
लोकसभा आम चुनाव के समय दलबदल करने वालों में सिर्फ सीता सोरेन अपवाद के रूप में ऐसी विधायक रहीं जिन्होंने लोकसभा चुनाव में हार के बावजूद अपनी विधानसभा सीट पर बढ़त कायम रखीं. जामा से विधायक सीता सोरेन ने लोकसभा चुनाव में भी 74932 मत पाए जबकि प्रतिद्वंद्वी नलिन सोरेन को 69246 मत ही मिलें. इस तरह उन्होंने 5686 मतों से बढ़त लिया.
क्या है अब बगावत करने वालों इन नेताओं का राजनीतिक भविष्य
अपने-अपने दलों से ऐन चुनाव के दौरान बगावत कर निर्दलीय या दूसरे दलों से चुनाव लड़ने वाले नेताओं को जनता ने पूरी तरह नकार दिया है और सीता सोरेन को छोड़ बाकी सब अपने अपने विधानसभा क्षेत्र में पिछड़ गए. अब इनका राजनीतिक भविष्य क्या है इस सवाल पर झामुमो, भाजपा और कांग्रेस की अलग अलग राय है.
झामुमो के केंद्रीय प्रवक्ता मनोज पांडेय ने कहा कि JMM के चार नेताओं ने बगावत कर पार्टी लाइन के खिलाफ जाकर चुनाव लड़ा और जनता जनार्दन ने उन्हें सबक भी सीखा दिया. इनमें से कुछ निलंबित हैं कुछ निष्कासित. अब इनको लेकर पार्टी के शीर्षस्थ नेता फैसला लेंगे कि इनका निलंबन/निष्कासन खत्म होगा या जारी रहता है.
वहीं कांग्रेस के प्रदेश महासचिव राकेश सिन्हा ने कहा कि राजनीति में कभी किसी का फ्यूचर खत्म नहीं होता है. आने वाले दिनों में राज्य की राजनीति में भूमिका क्या होगी यह वक्त और हालात से तय होगा.
प्रदेश भाजपा के प्रवक्ता ने कहा कि दल के प्रति आस्था नहीं रखने वाले की जो स्थिति जनता ने बना दी वह स्वाभाविक ही है. अपने अपने घर में भी जनता से नकार दिए गए लोगों को अब इसका अहसास हो रहा होगा कि व्यक्ति नहीं संगठन चुनाव लड़ता है. सीता सोरेन को छोड़ बाकी अपने-अपने विधानसभा सीट पर नकार दिए इन बागियों का राजनीतिक भविष्य राजनीतिक दलों के शीर्षस्थ नेताओं, राज्य में विधानसभा चुनाव के समय के राजनीतिक हालात पर निर्भर करेगा.
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