गोड्डा: सांसद निशिकांत दुबे का हालिया बयान जिसमें उन्होंने कहा था कि अगर प्रदीप यादव अथवा फुरकान अंसारी को इंडिया गठबंधन उम्मीदवार बनाती तो वे चुनाव प्रचार नहीं करने जाएंगे, बाकी उनके कार्यकर्ता ही काफी हैं. इस बयान के क्रोनोलॉजी को समझना जरूरी है.
दरअसल, गोड्डा लोकसभा के मतदाताओं के जातिगत आंकड़ों पर गौर करें तो काफी कुछ स्थिति साफ होती दिखती है. गोड्डा लोकसभा क्षेत्र में कुल वोटरों की संख्या 1995192 है. जिसमें वोटरों के जातिगत आंकड़ों पर गौर करें तो यहां सर्वाधिक आबादी मुस्लिम की है 3.5 लाख के आसपास है, यादव की आबादी 2.5 लाख है, इसके अलावा वैश्य को आबादी 2.5 से 3.0 लाख और ब्राह्मण की आबादी 2.5 लाख है. इसके अलावा आदिवासी की आबादी 1.5 से 2.0 लाख और राजपूत, भूमिहार और कायस्थ की संख्या एक लाख के करीब है. वोटरों की संख्या एक्सपर्ट की ओर से अुनमानित बातई गई है. वहीं शेष पंचगनिया दलित हैं. वहीं जहां तक मतदाताओं की बात करें तो आम तौर पर भाजपा के कोर वोटर वैश्य और स्वर्ण माने जाते हैं. वहीं कांग्रेस के वोटर अल्पसंख्यक और यादव वोटर माने जाते हैं.
फुरकान उतरे मैदान में तो वोटों का हो सकता है ध्रुवीकरणः हेमचंद्र
राजनीति के जानकार वरिष्ठ पत्रकार हेमचंद्र की माने तो अगर उम्मीदवार फुरकान अंसारी होते हैं तो अल्पसंख्यक और गैर अल्पसंख्यक के आधार पर वोटों का ध्रुवीकरण हो सकता है. जिसका फायदा भाजपा को मिलने की संभावना ज्यादा है. वहीं अगर प्रदीप यादव उम्मीदवार होते हैं तो फिर मुस्लिम, यादव और आदिवासी मत एकजुट हो सकते हैं, जो भाजपा के लिए टक्कर को नजदीकी बना सकता है, लेकिन इस प्रयोग का भी एज भाजपा को मिलता रहा है, क्योंकि इसमें वैश्य, ब्राह्मण के साथ ही स्वर्ण मत उनके साथ इंटेक्ट रहने की संभावना रही है.
गोड्डा में निर्णायक साबित होते हैं ब्राह्मण वोटर
इन सबमें एक बात साफ की निर्णायक मत गोड्डा लोकसभा में ब्राह्मण वोटरों की है, जिनकी संख्या 2.5 लाख के करीब हैं. ब्राह्मण बहुल मतों के कारण ही गोड्डा लोकसभा को झारखंड का मिथिलांचल कहा जाता है. जैसा कि नाम ही स्पष्ट है कि ये मिथिला का आंचल है, जहां बड़ी आबादी मैथिल ब्राह्मणों की है. जिससे एक वर्ग का एकमुश्त वोट भाजपा को मिलता रहा है.
दीपिका पांडेय ब्राह्मण समाज में स्वीकार्य
पत्रकार हेमचंद्र की माने तो ये वोटर पूर्व में कांग्रेस के साथ जुड़े रहे, लेकिन मोदी काल के बाद ये पूरी तरह से भाजपा के लिए वोट करते हैं. अब सवाल है कि अगर ब्राह्मण वोट में सेंधमारी होती है और ऐसा कांग्रेस कर पाने में सफल होती है तो उनके लिए बड़ा दाव हो सकता है, क्योंकि फिलहाल एक जिस उम्मीदवार की चर्चा कांग्रेस से सबसे ज्यादा है उनमें कांग्रेस पार्टी की राष्ट्रीय सचिव और महगामा विधायक दीपिका पांडेय सिंह का है. दीपिका पांडेय सिंह की राजनीतिक पृष्ठ भूमि भी रही है. इनके माता-पिता अरुण पांडेय और प्रतिभा पांडेय दोनों पुराने कांग्रेसी रहे हैं तो इनके ससुर अवध बिहारी सिंह कांग्रेस से चार बार मंत्री और विधायक रहे हैं. गोड्डा जिले के ब्राह्मण में वो स्वीकार्य भी रही हैं. अगर कांग्रेस दीपिका पांडेय सिंह को उम्मीदवार बनाती है तो संभवाना है कि मुस्लिम, यादव के साथ कोयरी, कुर्मी वोटरस आदिवासी और ब्राह्मण का वोट मिल सकता है. इससे निशिकांत दुबे की जीत की राह कठिन हो सकती है.
गोड्डा में ब्राह्मण दो समूह में हैं
झारखंड के गोड्डा में ब्राह्मणों की बात करें तो यहां ब्राह्मण में भी दो समूह में हैं. एक मैथिल और दूसरा कन्नौजिया. कई बार ये एक-दूसरे के आमने-सामने होते हैं. हालांकि यह क्षेत्र मिथिला से सटा हुआ है इस कारण मैथिल की संख्या ज्यादा है और इसका प्रभाव अधिक है. वहीं कान्यकुब्ज उत्तप्रदेश, मध्यप्रदेश और गढ़वाल से आकर यहां बसे हैं. इन लोगों के घर पूजा-पाठ में मैथिली पद्धति ही हावी है. वहीं दीपिका पांडेय हो या निशिकांत दुबे दोनों ही कान्यकुब्ज ब्राह्मण ही हैं. अंतर बस इतना है दीपिका पांडेय गोड्डा की बहू हैं और निशिकांत दुबे भगालपुर के रहने वाले. इस कारण बाहरी-भीतरी का मामला भी उठता रहा है.
ब्राह्मण मतों में सेंधमारी की होगी कोशिश
साथ ही पिछले दिनों भाजपा के प्रदेश उपाध्यक्ष और पूर्व मंत्री राज पलिवार के कांग्रेस में आने की बात आई थी. हालांकि राज पलिवार ने बाद में इसका खंडन भी किया था. इसके पीछे भी यही समीकरण था कि एक मैथिल ब्राह्मण उम्मीदवार कांग्रेस से उतार कर भाजपा को उसी के नेता से ब्राह्मण मतों में सेंधमारी की जाए. वही बड़ी बात यह है कि इंडिया गठबंधन की ओर से गोड्डा लोकसभा सीट के लिए अभी तक उम्मीदवार की घोषणा नहीं की गई है.
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