पटनाः बिहार के राजनीतिक दल और नेता आरक्षण की जमीन पर सियासत की फसल काटते रहे हैं. आरक्षण पर सरकार का फैसला हो या फिर सुप्रीम कोर्ट की राय, नेताओं का आंदोलन शुरू हो जाता है. आंदोलन के दौरान बिहार बैटलफील्ड बन जाता है. आंदोलन राजनीतिक दलों के लिए वोट बैंक का जरिया बन जाता है. विशेषज्ञ तो मानते हैं कि बिहार के राजनीतिक दलों को आरक्षण का मसाला सूट करता है.
आरक्षण को लेकर भारत बंदः ताजा मामला यूपीएससी लेटरल एंट्री का है. यूपीएससी के द्वारा लैटरल एंट्री के लिए 45 सीट पर वैकेंसी निकाली गयी, लेकिन आरक्षण का प्रावधान नहीं किया गया. विपक्ष ने सरकार को घेरा तो सरकार ने फैसले को वापस ले लिया. बावजूद आरक्षण के मसले पर राष्ट्रव्यापी बंद का आह्वान किया गया है. बिहार में भी बंद को समर्थन मिल रहा है. राजद और कांग्रेस सहित विपक्षी दल इसका समर्थन कर रहे हैं.
विकासशील इंसान का समर्थनः विकासशील इंसान पार्टी भारत बंद को समर्थन दिया है. वीआईपी के प्रमुख और बिहार के पूर्व मंत्री मुकेश सहनी ने कहा कि भारत बंद का वीआईपी नैतिक और सैद्धांतिक समर्थन करेगा. मुकेश सहनी ने कहा कि आरक्षण में किसी प्रकार का वर्गीकरण नहीं किया जा सकता है. उन्होंने कहा कि इस विसंगति को दूर करने के लिए केंद्र सरकार को प्रयास करना चाहिए.
@vippartyindia 21 अगस्त 2024 के भारत बंद का नैतिक और सैद्धांतिक समर्थन करती है।आरक्षण में किसी भी प्रकार का वर्गीकरण अस्वीकार्य है।केंद्र सरकार को इस विसंगति को दूर करने के लिए कदम उठाने चाहिए।VIPपार्टी हमेशा दलितों और वंचितों के अधिकारों के लिए खड़ी थी और हमेशा खड़ी रहेगी। (1/2)
— Mukesh Sahani (@sonofmallah) August 20, 2024
क्रीमी लेयर पर भी विवादः इस बंद में आरक्षण को लेकर सुप्रीम कोर्ट के फैसले का भी विरोध जताएंगे. एससी-एसटी के आरक्षण में क्रीमी लेयर पर सुप्रीम कोर्ट फैसला सुनाया था. कोर्ट ने कहा कि आरक्षण जरूरतमंदों को मिलना चाहिए. कोर्ट ने आरक्षण पाने वाले की अलग अलग श्रेणी बनाने को कहा है. इसको लेकर राजनीतिक संगठन का कहना है कि इससे सिधांत को ठेस पहुंचेगा.
बता दें कि बिहार में आरक्षण पर सियासत का इतिहास भी पुराना है. ओबीसी आरक्षण को धार देने के लिए सन 1967 में त्रिवेणी संघ बना, जिसमें कोयरी, कुर्मी और यादव जाति के लोग शामिल थे. ओबीसी राजनीति की शुरुआत हुई इसी जातिगत राजनीति के गर्भ से मंडल कमीशन निकला. कहा गया कि ओबीसी को 27% आरक्षण दिया गया. साल 1992 में बीपी सिंह सरकार ने इसे लागू की थी.
बिहार में हुआ था जमकर हंगामाः बिहार में जब मंडल कमीशन की रिपोर्ट को लागू की गयी थी तब जमकर हिंसा हुई थी. छात्र और कुछ राजनीतिक दल के लोगों ने विरोध किया. आरक्षण समर्थक और आरक्षण विरोधी सड़कों पर उतरे और जमकर हंगामा हुआ. कइ लोगों की जान भी चली गई थी.
दलित, पिछड़ा और आदिवासी विरोधी ताकतों को संविधान, आरक्षण और बहुजन एकता खत्म नहीं करने देंगे।
— Tejashwi Yadav (@yadavtejashwi) August 20, 2024
नकली OBC प्रधानमंत्री तथा BJP व NDA सरकार के निष्प्रभावी पिछड़ा, दलित व आदिवासी वर्गों के मंत्रियों और सांसदों को जनता कड़ा सबक़ सिखाएगी। #Reservation #Constitution pic.twitter.com/ZdVwSJ9MDG
पिछड़ो को मिला आरक्षणः मंडल कमीशन का गठन 1979 में जनता पार्टी की सरकार ने किया था. आयोग का कार्य क्षेत्र सामाजिक व आर्थिक रूप से पिछड़ों की पहचान करना था. बीपी मंडल उर्फ बिंदेश्वरी प्रसाद मंडल आयोग के अध्यक्ष थे. मंडल कमीशन की रिपोर्ट 1980 में पूरी हो चुकी थी. विश्वनाथ प्रताप सिंह सरकार ने 13 अगस्त 1990 को बीपी मंडल की रिपोर्ट को लागू करने की घोषणा की तो देशभर में छात्रों ने व्यापक विरोध किया.
सुप्रीम कोर्ट ने भी लिया फैसलाः इसके बाद सुप्रीम कोर्ट के द्वारा अस्थाई प्रवास आदेश प्रदान किया गया. 16 नवंबर 1992 को सर्वोच्च न्यायालय ने सरकारी नौकरी में 27 प्रतिशत आरक्षण और एक लाख रुपए की वार्षिक आय की आर्थिक सीमा लागू कर दी. हालांकि 2015 में इस सीमा को बढ़ाकर 8 लाख रुपए प्रति वर्ष कर दी गई. बीपी मंडल कमीशन की रिपोर्ट के आधार पर ही न्यायालय ने 2006 में उच्च शिक्षा में भी पिछड़े वर्ग के लोगों के लिए सीट आरक्षित की. मंडल कमीशन ने शैक्षिक और आर्थिक आधार पर आरक्षण के प्रावधान किए.
क्या कहता है सुप्रीम कोर्टः हाल ही में आरक्षण को लेकर एक और विवाद तब खड़ा हुआ जब सुप्रीम कोर्ट ने यह कहा कि अगर ओबीसी में क्रीमी लेयर का प्रावधान हो सकता है तो अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति में भी क्रीमी लेयर का प्रावधान क्यों नहीं हो सकता? इसपर राष्ट्रव्यापी बवाल हुआ और विरोध शुरू हो गया. राजनीतिक विशेषज्ञ कहते हैं कि आरक्षण का मुद्दा जब भी उठता है तो बिहार बैटलफील्ड बन जाता है.
"राजनीतिक दल भी आरक्षण के मुद्दे को हाथों हाथ लेते हैं, क्योंकि उन्हें वोट बैंक साधने का अवसर मिल जाता है. लालू प्रसाद यादव आरक्षण के पिच पर खेलने में माहिर खिलाड़ी माने जाते हैं. जब भी आरक्षण का मसला आता है तो बिहार बैटलफील्ड बन जाता है. राजनीतिक दल आरक्षण के जरिए लोगों का ध्यान भी वास्तविक मुद्दों से भटकने में कामयाब हो जाते हैं." -डॉक्टर संजय कुमार, राजनीतिक विश्लेषक
सुप्रीम कोर्ट में चल रहा बिहार में आरक्षण का मुद्दाः आरक्षण की सियासत को उधार देने के लिए बिहार में जातिगत जनगणना कराया गया. जातिगत जनगणना की रिपोर्ट के आधार पर ही आरक्षण की सीमा में बढ़ोतरी की गई. दलित पिछड़ों और अति पिछड़ों को 65% आरक्षण का प्रावधान किया गया. बाद में पटना उच्च न्यायालय ने सरकार के फैसले को रद्द कर दिया और फिलहाल मामला सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है.
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