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आरक्षण को लेकर आज भारत बंद, राजनीतिक दलों के लिए बिहार बना बैटलफील्ड - BHARAT BANDH

Bharat Bandh In Bihar: आरक्षण के मसले पर देश में सियासी उबाल है. केंद्र की सरकार पर विपक्ष हमलावर है. लैटरल एंट्री में आरक्षण के मसले ने बवाल खड़ा कर दिया. हालांकि केंद्र की सरकार ने फैसले पर रोक लगा दी है, लेकिन राष्ट्रव्यापी बंद के आह्वान का बिहार में असर पड़ने की संभावना है. राजनीतिक दलों के लिए आरक्षण वोट बैंक का जरिया बन गया है. जानें क्या कहते हैं विशेषज्ञ.

आरक्षण को लेकर भारत बंद
आरक्षण को लेकर भारत बंद (Etv Bharat)
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By ETV Bharat Bihar Team

Published : Aug 21, 2024, 7:25 AM IST

Updated : Aug 21, 2024, 8:55 AM IST

पटनाः बिहार के राजनीतिक दल और नेता आरक्षण की जमीन पर सियासत की फसल काटते रहे हैं. आरक्षण पर सरकार का फैसला हो या फिर सुप्रीम कोर्ट की राय, नेताओं का आंदोलन शुरू हो जाता है. आंदोलन के दौरान बिहार बैटलफील्ड बन जाता है. आंदोलन राजनीतिक दलों के लिए वोट बैंक का जरिया बन जाता है. विशेषज्ञ तो मानते हैं कि बिहार के राजनीतिक दलों को आरक्षण का मसाला सूट करता है.

आरक्षण को लेकर भारत बंदः ताजा मामला यूपीएससी लेटरल एंट्री का है. यूपीएससी के द्वारा लैटरल एंट्री के लिए 45 सीट पर वैकेंसी निकाली गयी, लेकिन आरक्षण का प्रावधान नहीं किया गया. विपक्ष ने सरकार को घेरा तो सरकार ने फैसले को वापस ले लिया. बावजूद आरक्षण के मसले पर राष्ट्रव्यापी बंद का आह्वान किया गया है. बिहार में भी बंद को समर्थन मिल रहा है. राजद और कांग्रेस सहित विपक्षी दल इसका समर्थन कर रहे हैं.

विकासशील इंसान का समर्थनः विकासशील इंसान पार्टी भारत बंद को समर्थन दिया है. वीआईपी के प्रमुख और बिहार के पूर्व मंत्री मुकेश सहनी ने कहा कि भारत बंद का वीआईपी नैतिक और सैद्धांतिक समर्थन करेगा. मुकेश सहनी ने कहा कि आरक्षण में किसी प्रकार का वर्गीकरण नहीं किया जा सकता है. उन्होंने कहा कि इस विसंगति को दूर करने के लिए केंद्र सरकार को प्रयास करना चाहिए.

क्रीमी लेयर पर भी विवादः इस बंद में आरक्षण को लेकर सुप्रीम कोर्ट के फैसले का भी विरोध जताएंगे. एससी-एसटी के आरक्षण में क्रीमी लेयर पर सुप्रीम कोर्ट फैसला सुनाया था. कोर्ट ने कहा कि आरक्षण जरूरतमंदों को मिलना चाहिए. कोर्ट ने आरक्षण पाने वाले की अलग अलग श्रेणी बनाने को कहा है. इसको लेकर राजनीतिक संगठन का कहना है कि इससे सिधांत को ठेस पहुंचेगा.

बता दें कि बिहार में आरक्षण पर सियासत का इतिहास भी पुराना है. ओबीसी आरक्षण को धार देने के लिए सन 1967 में त्रिवेणी संघ बना, जिसमें कोयरी, कुर्मी और यादव जाति के लोग शामिल थे. ओबीसी राजनीति की शुरुआत हुई इसी जातिगत राजनीति के गर्भ से मंडल कमीशन निकला. कहा गया कि ओबीसी को 27% आरक्षण दिया गया. साल 1992 में बीपी सिंह सरकार ने इसे लागू की थी.

बिहार में हुआ था जमकर हंगामाः बिहार में जब मंडल कमीशन की रिपोर्ट को लागू की गयी थी तब जमकर हिंसा हुई थी. छात्र और कुछ राजनीतिक दल के लोगों ने विरोध किया. आरक्षण समर्थक और आरक्षण विरोधी सड़कों पर उतरे और जमकर हंगामा हुआ. कइ लोगों की जान भी चली गई थी.

पिछड़ो को मिला आरक्षणः मंडल कमीशन का गठन 1979 में जनता पार्टी की सरकार ने किया था. आयोग का कार्य क्षेत्र सामाजिक व आर्थिक रूप से पिछड़ों की पहचान करना था. बीपी मंडल उर्फ बिंदेश्वरी प्रसाद मंडल आयोग के अध्यक्ष थे. मंडल कमीशन की रिपोर्ट 1980 में पूरी हो चुकी थी. विश्वनाथ प्रताप सिंह सरकार ने 13 अगस्त 1990 को बीपी मंडल की रिपोर्ट को लागू करने की घोषणा की तो देशभर में छात्रों ने व्यापक विरोध किया.

सुप्रीम कोर्ट ने भी लिया फैसलाः इसके बाद सुप्रीम कोर्ट के द्वारा अस्थाई प्रवास आदेश प्रदान किया गया. 16 नवंबर 1992 को सर्वोच्च न्यायालय ने सरकारी नौकरी में 27 प्रतिशत आरक्षण और एक लाख रुपए की वार्षिक आय की आर्थिक सीमा लागू कर दी. हालांकि 2015 में इस सीमा को बढ़ाकर 8 लाख रुपए प्रति वर्ष कर दी गई. बीपी मंडल कमीशन की रिपोर्ट के आधार पर ही न्यायालय ने 2006 में उच्च शिक्षा में भी पिछड़े वर्ग के लोगों के लिए सीट आरक्षित की. मंडल कमीशन ने शैक्षिक और आर्थिक आधार पर आरक्षण के प्रावधान किए.

क्या कहता है सुप्रीम कोर्टः हाल ही में आरक्षण को लेकर एक और विवाद तब खड़ा हुआ जब सुप्रीम कोर्ट ने यह कहा कि अगर ओबीसी में क्रीमी लेयर का प्रावधान हो सकता है तो अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति में भी क्रीमी लेयर का प्रावधान क्यों नहीं हो सकता? इसपर राष्ट्रव्यापी बवाल हुआ और विरोध शुरू हो गया. राजनीतिक विशेषज्ञ कहते हैं कि आरक्षण का मुद्दा जब भी उठता है तो बिहार बैटलफील्ड बन जाता है.

"राजनीतिक दल भी आरक्षण के मुद्दे को हाथों हाथ लेते हैं, क्योंकि उन्हें वोट बैंक साधने का अवसर मिल जाता है. लालू प्रसाद यादव आरक्षण के पिच पर खेलने में माहिर खिलाड़ी माने जाते हैं. जब भी आरक्षण का मसला आता है तो बिहार बैटलफील्ड बन जाता है. राजनीतिक दल आरक्षण के जरिए लोगों का ध्यान भी वास्तविक मुद्दों से भटकने में कामयाब हो जाते हैं." -डॉक्टर संजय कुमार, राजनीतिक विश्लेषक

सुप्रीम कोर्ट में चल रहा बिहार में आरक्षण का मुद्दाः आरक्षण की सियासत को उधार देने के लिए बिहार में जातिगत जनगणना कराया गया. जातिगत जनगणना की रिपोर्ट के आधार पर ही आरक्षण की सीमा में बढ़ोतरी की गई. दलित पिछड़ों और अति पिछड़ों को 65% आरक्षण का प्रावधान किया गया. बाद में पटना उच्च न्यायालय ने सरकार के फैसले को रद्द कर दिया और फिलहाल मामला सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है.

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पटनाः बिहार के राजनीतिक दल और नेता आरक्षण की जमीन पर सियासत की फसल काटते रहे हैं. आरक्षण पर सरकार का फैसला हो या फिर सुप्रीम कोर्ट की राय, नेताओं का आंदोलन शुरू हो जाता है. आंदोलन के दौरान बिहार बैटलफील्ड बन जाता है. आंदोलन राजनीतिक दलों के लिए वोट बैंक का जरिया बन जाता है. विशेषज्ञ तो मानते हैं कि बिहार के राजनीतिक दलों को आरक्षण का मसाला सूट करता है.

आरक्षण को लेकर भारत बंदः ताजा मामला यूपीएससी लेटरल एंट्री का है. यूपीएससी के द्वारा लैटरल एंट्री के लिए 45 सीट पर वैकेंसी निकाली गयी, लेकिन आरक्षण का प्रावधान नहीं किया गया. विपक्ष ने सरकार को घेरा तो सरकार ने फैसले को वापस ले लिया. बावजूद आरक्षण के मसले पर राष्ट्रव्यापी बंद का आह्वान किया गया है. बिहार में भी बंद को समर्थन मिल रहा है. राजद और कांग्रेस सहित विपक्षी दल इसका समर्थन कर रहे हैं.

विकासशील इंसान का समर्थनः विकासशील इंसान पार्टी भारत बंद को समर्थन दिया है. वीआईपी के प्रमुख और बिहार के पूर्व मंत्री मुकेश सहनी ने कहा कि भारत बंद का वीआईपी नैतिक और सैद्धांतिक समर्थन करेगा. मुकेश सहनी ने कहा कि आरक्षण में किसी प्रकार का वर्गीकरण नहीं किया जा सकता है. उन्होंने कहा कि इस विसंगति को दूर करने के लिए केंद्र सरकार को प्रयास करना चाहिए.

क्रीमी लेयर पर भी विवादः इस बंद में आरक्षण को लेकर सुप्रीम कोर्ट के फैसले का भी विरोध जताएंगे. एससी-एसटी के आरक्षण में क्रीमी लेयर पर सुप्रीम कोर्ट फैसला सुनाया था. कोर्ट ने कहा कि आरक्षण जरूरतमंदों को मिलना चाहिए. कोर्ट ने आरक्षण पाने वाले की अलग अलग श्रेणी बनाने को कहा है. इसको लेकर राजनीतिक संगठन का कहना है कि इससे सिधांत को ठेस पहुंचेगा.

बता दें कि बिहार में आरक्षण पर सियासत का इतिहास भी पुराना है. ओबीसी आरक्षण को धार देने के लिए सन 1967 में त्रिवेणी संघ बना, जिसमें कोयरी, कुर्मी और यादव जाति के लोग शामिल थे. ओबीसी राजनीति की शुरुआत हुई इसी जातिगत राजनीति के गर्भ से मंडल कमीशन निकला. कहा गया कि ओबीसी को 27% आरक्षण दिया गया. साल 1992 में बीपी सिंह सरकार ने इसे लागू की थी.

बिहार में हुआ था जमकर हंगामाः बिहार में जब मंडल कमीशन की रिपोर्ट को लागू की गयी थी तब जमकर हिंसा हुई थी. छात्र और कुछ राजनीतिक दल के लोगों ने विरोध किया. आरक्षण समर्थक और आरक्षण विरोधी सड़कों पर उतरे और जमकर हंगामा हुआ. कइ लोगों की जान भी चली गई थी.

पिछड़ो को मिला आरक्षणः मंडल कमीशन का गठन 1979 में जनता पार्टी की सरकार ने किया था. आयोग का कार्य क्षेत्र सामाजिक व आर्थिक रूप से पिछड़ों की पहचान करना था. बीपी मंडल उर्फ बिंदेश्वरी प्रसाद मंडल आयोग के अध्यक्ष थे. मंडल कमीशन की रिपोर्ट 1980 में पूरी हो चुकी थी. विश्वनाथ प्रताप सिंह सरकार ने 13 अगस्त 1990 को बीपी मंडल की रिपोर्ट को लागू करने की घोषणा की तो देशभर में छात्रों ने व्यापक विरोध किया.

सुप्रीम कोर्ट ने भी लिया फैसलाः इसके बाद सुप्रीम कोर्ट के द्वारा अस्थाई प्रवास आदेश प्रदान किया गया. 16 नवंबर 1992 को सर्वोच्च न्यायालय ने सरकारी नौकरी में 27 प्रतिशत आरक्षण और एक लाख रुपए की वार्षिक आय की आर्थिक सीमा लागू कर दी. हालांकि 2015 में इस सीमा को बढ़ाकर 8 लाख रुपए प्रति वर्ष कर दी गई. बीपी मंडल कमीशन की रिपोर्ट के आधार पर ही न्यायालय ने 2006 में उच्च शिक्षा में भी पिछड़े वर्ग के लोगों के लिए सीट आरक्षित की. मंडल कमीशन ने शैक्षिक और आर्थिक आधार पर आरक्षण के प्रावधान किए.

क्या कहता है सुप्रीम कोर्टः हाल ही में आरक्षण को लेकर एक और विवाद तब खड़ा हुआ जब सुप्रीम कोर्ट ने यह कहा कि अगर ओबीसी में क्रीमी लेयर का प्रावधान हो सकता है तो अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति में भी क्रीमी लेयर का प्रावधान क्यों नहीं हो सकता? इसपर राष्ट्रव्यापी बवाल हुआ और विरोध शुरू हो गया. राजनीतिक विशेषज्ञ कहते हैं कि आरक्षण का मुद्दा जब भी उठता है तो बिहार बैटलफील्ड बन जाता है.

"राजनीतिक दल भी आरक्षण के मुद्दे को हाथों हाथ लेते हैं, क्योंकि उन्हें वोट बैंक साधने का अवसर मिल जाता है. लालू प्रसाद यादव आरक्षण के पिच पर खेलने में माहिर खिलाड़ी माने जाते हैं. जब भी आरक्षण का मसला आता है तो बिहार बैटलफील्ड बन जाता है. राजनीतिक दल आरक्षण के जरिए लोगों का ध्यान भी वास्तविक मुद्दों से भटकने में कामयाब हो जाते हैं." -डॉक्टर संजय कुमार, राजनीतिक विश्लेषक

सुप्रीम कोर्ट में चल रहा बिहार में आरक्षण का मुद्दाः आरक्षण की सियासत को उधार देने के लिए बिहार में जातिगत जनगणना कराया गया. जातिगत जनगणना की रिपोर्ट के आधार पर ही आरक्षण की सीमा में बढ़ोतरी की गई. दलित पिछड़ों और अति पिछड़ों को 65% आरक्षण का प्रावधान किया गया. बाद में पटना उच्च न्यायालय ने सरकार के फैसले को रद्द कर दिया और फिलहाल मामला सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है.

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Last Updated : Aug 21, 2024, 8:55 AM IST
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