रायपुर : छत्तीसगढ़ की सियासत में आम आदमी पार्टी ने जब अपनी राजनीतिक दस्तक दी तो सियासत में दिल्ली मॉडल जैसा राज चलाने की बात की. बीजेपी और कांग्रेस के अलावा अब जनता के पास तीसरा विकल्प भी मौजूद था. छत्तीसगढ़ के बड़े मुद्दों को जब आम आदमी पार्टी ने उठाना शुरु किया,तो आम जनता को राहत सा महसूस हुआ.जनता को लगा कि अब उनकी हक की लड़ाई लड़ने वाला कोई मैदान में है. बात नारों की करें तो आम आदमी पार्टी ने छत्तीसगढ़ में अपने राजनीतिक स्लोगन को जिस तरीके से उठाया था उसमें कहा था ''खा गए कोयला और खा गए चारा गांधी तेरे देश में''.
भ्रष्टाचार विरोधी झंडा लेकर आप का राजनीति में प्रवेश : इशारा साफ था कि 2014 की राजनीति में कोयला और 2G स्पेक्ट्रम घोटाला कांग्रेस की गले की फांस बन चुकी थी.वहीं क्षेत्रीय दल आरजेडी के सबसे बड़े चेहरे लालू प्रसाद यादव का नाम चारा घोटाले में गूंज रहा था. आम आदमी पार्टी का ये नारा सीधे-सीधे भ्रष्टाचार पर तीखा प्रहार था. आम आदमी पार्टी के छत्तीसगढ़ में आते ही भ्रष्टाचार पर सीधा और तीखा हमला आम जनता को पसंद आया था. यही वजह थी कि आम आदमी पार्टी आम जनता के बीच काफी पॉपुलर भी हो रही थी. भ्रष्टाचार को राजनीति से मिटाने का दावा अन्ना हजारे के मंच से अरविंद केजरीवाल ने किया था.लेकिन जब आम आदमी पार्टी दिल्ली और फिर पंजाब में सत्ता के दरवाजे के अंदर गई,तो दावे और हकीकत के बीच की सच्चाई सामने आई.जिस ट्रैक पर आम आदमी पार्टी ने अपनी राजनीति की रेल दौड़ाई थी,उसने वक्त के साथ अपनी स्पीड और स्टॉपेज में परिवर्तन कर लिया था.
छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव से पहले दिखाया दम : 2023 में बिलासपुर में अरविंद केजरीवाल और पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान की रैली ने भी छत्तीसगढ़ में अपने मजबूत राजनीतिक दखल को बता दिया था. राजनीतिक समीकरण कहीं बिगड़ ना जाए इस बात को संभालने के लिए बीजेपी को काफी मेहनत करनी पड़ी. इसके लिए दिल्ली से नागपुर और छत्तीसगढ़ की राजनीति में बहुत मजबूती से उतरना पड़ा. क्योंकि बीजेपी के लिए चुनौती बहुत बड़ी थी. जल जंगल और जमीन की सियासत को जिस तेजी से आम आदमी पार्टी ने उठाया था, उसमें इसी राजनीति को पकड़ने वाले राजनीतिक दलों का जमीनी आधार थोड़ा सा खिसकने लगा था. सबसे पहले इसका एहसास बीजेपी को हुआ और इसे पकड़ने की सियासत ने कई और राजनीति को जगह दी. यह अलग बात है कि आम आदमी पार्टी जिस मुद्दे को लेकर चली थी, वह छत्तीसगढ़ में चुनाव के दौरान फूंकी हुई कारतूस साबित हुई.
अरविंद केजरीवाल के जेल जाने का असर : भ्रष्टाचार की जिस राजनीति को उखाड़ फेंकने का दावा करके आम आदमी पार्टी यहां तक पहुंची थी. लोकसभा चुनाव के पहले पार्टी के कर्ताधर्ता अरविंद केजरीवाल के भ्रष्टाचार के मुद्दे पर ही जेल जाने के बाद पार्टी का पूरा समीकरण ही बिगड़ गया. हालात ये हो गए कि कांग्रेस का हर कदम पर विरोध करने वाली आम आदमी पार्टी को इंडी अलायंस के मंच पर साथ आना पड़ा. 31 मार्च 2024 को हुई दिल्ली की रैली में अरविंद केजरीवाल की पत्नी संगीता ने अलायंस की आवाज बनकर अपने पति की गिरफ्तारी की दुआई दिया.
छत्तीसगढ़ में आप का भविष्य ? : भले ही दिल्ली में आप और कांग्रेस एक दूसरे को साथी बताकर मोदी से जंग लड़ने का ऐलान किया हो.लेकिन छत्तीसगढ़ की सियासत में पार्टी कहां खड़ी होगी ये कोई नहीं जानता. अप्रैल महीना शुरू हो जाने के बाद भी आम आदमी की तरफ से एक भी प्रत्याशी का ऐलान नहीं किया गया है. पहले चरण का छत्तीसगढ़ का चुनाव 19 अप्रैल को है. इसके लिए नामांकन सहित सारी प्रक्रियाएं पूरी हो चुकी हैं. आम आदमी पार्टी ने पहले चरण के मतदान के लिए ना तो प्रचार किया और ना ही दूसरे चरण के लिए किसी तरह की सुगबुगाहट पार्टी के खेमे के अंदर दिख रही है. वहींअब तीसरे चरण में क्या होगा इसके लिए सभी लोग नजर लगाए बैठे हैं.छत्तीसगढ़ के चुनाव में पार्टी द्वारा उम्मीदवार नहीं दिए जाने के बाबत पूछे जाने पर आम आदमी पार्टी के प्रदेश प्रवक्ता विजय झा ने बताया कि हम गठबंधन में चुनाव लड़ रहे हैं और अभी तक गठबंधन की तरफ से छत्तीसगढ़ में हमारे लिए कोई सीट तय नहीं की गई.
''गठबंधन धर्म की मर्यादा है इसके तहत हम लोग इंतजार कर रहे हैं. अगर हमें कोई सीट मिलती है तो निश्चित तौर पर हम चुनाव लड़ेंगे . लेकिन इसका निर्णय आलाकमान को करना है और वहां हम लोगों ने अपनी बात को रखा है. कांग्रेस के साथ हमारा समझौता है. ऐसे में अगर हमें कोई भी सीट मिलती है तो हम चुनाव लड़ेंगे. लेकिन अभी तक हमारे पास कोई स्पष्ट आदेश नहीं आया है.''- विजय झा, प्रदेश प्रवक्ता
आप के शीर्ष नेतृत्व पर बड़ा आरोप : आम आदमी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष रह चुके कोमल हुपेन्डी ने पार्टी की तैयारी के बाबत पूछे जाने पर कहा कि जिस तरह से 2018 की तैयारी थी और 2023 के चुनाव में हमें जो परिणाम देना था उस पर शीर्ष नेतृत्व की तरफ से कुछ किया ही नहीं गया. हालांकि कोमल उपेन्डी अब आम आदमी पार्टी को छोड़ चुके हैं. प्रदेश अध्यक्ष रहते कोमल हुपेण्डी ने बहुत सारे काम आम आदमी पार्टी के लिए किए थे. ईटीवी भारत से बातचीत करते हुए उन्होंने कहा कि 2018 में हम लोगों ने एक जनमत तैयार किया था. लोगों को जोड़ा था, पार्टी को आगे काम करना था. लेकिन जो सहयोग हमें केंद्रीय नेतृत्व से मिलना था वो नहीं मिला. 2018 के चुनाव में हम बहुत बेहतर परिणाम नहीं ला पाए थे. यह बात माना जा सकता है लेकिन एक नई पार्टी के लिए पूरे राज्य में चुनाव लड़ना अपने आप में बड़ी बात है.
''2023 में हम लोगों ने तैयारी इस बार 90 सीट पर की थी और यह मानकर चल रहे थे कि जीत का आंकड़ा दहाई में जरूर जाएगा. लेकिन 2023 में केंद्रीय नेतृत्व से जो सहयोग मिलना था वह नहीं मिला .अंत में 2023 में 53 सीटों पर हम चुनाव लड़ पाए. क्योंकि पार्टी जिस तैयारी से चुनाव में जाना चाहते थी इसमें भी केंद्रीय नेतृत्व का सहयोग हमें नहीं मिला. कुल मिलाकर के छत्तीसगढ़ में जो राजनीतिक तैयारी हम लोगों ने की थी वो केंद्रीय नेतृत्व के सहयोग के नाते बहुत मजबूत नहीं रह पाई. आज पार्टी को खड़ा करने के लिए 2018 से जो मेहनत की गई थी उसका पूरा जन आधार ही बिखर गया है.'' कोमल हुपेण्डी, पूर्व प्रदेशाध्यक्ष,आप
इंडी अलायंस के साथ गठबंधन धर्म : 31 मार्च को दिल्ली के रामलीला मैदान इंडी गठबंधन में मंच पर अरविंद केजरीवाल की पत्नी के आने के बाद छत्तीसगढ़ की राजनीति में इस बात की चर्चा तेज हो गई कि कांग्रेस के खिलाफ शायद आम आदमी पार्टी चुनाव में अब उम्मीदवार ना दे. गठबंधन धर्म के पालन की बात कही जा रही है. जरूर वाली राजनीति और जरूरत पड़ने वाली राजनीति का विभेद साफ तौर पर रामलीला मैदान में दिखा. क्योंकि राजनीति के जिस समीकरण को साधना है उसमें कई ऐसे रंग मंच सजते रहे हैं, जिसमें जरूरत वाली राजनीति को साधने के लिए कई लोगों को माला पहना दिया जाता है. छत्तीसगढ़ की सियासत आम आदमी पार्टी के लिए शायद इसी डगर पर जा चुकी है. अब छत्तीसगढ़ में आम आदमी पार्टी लोकसभा चुनाव में अपना उम्मीदवार उतारेगी इस बात में संदेह है.
2022 में दिया राज्यसभा सांसद : छत्तीसगढ़ में दिल्ली का केंद्रीय नेतृत्व आम आदमी पार्टी का छत्तीसगढ़ की राजनीति पर ज्यादा फोकस क्यों नहीं हो पाया यह तो पार्टी अपने अंदर जरुर समझेगी. लेकिन बाहर जो दिख रहा था उसमें 2022 में छत्तीसगढ़ से संदीप पाठक को राज्यसभा भेजे जाने के बाद राज्य की राजनीति में इस बात की चर्चा तेज थी कि आम आदमी पार्टी अब छत्तीसगढ़ में ज्यादा फोकस करेगी. यही वजह थी कि छत्तीसगढ़ में चुनाव लड़ने की बड़ी रणनीति प्रदेश पार्टी की इकाई ने किया था. लेकिन बाद के दिनों में बिखरती राजनीति और मुद्दों ने जरूर पार्टी को एक अलग राह पर ले जाकर खड़ा कर दिया. वर्तमान समय में जो परिणाम आए हैं, जिस भ्रष्टाचार के मुद्दे को लेकर केजरीवाल देश में नेता बने थे, आज इस भ्रष्टाचार के कारण किसी और राजनीति के शिकार कहे जा रहे हैं.
2023 के चुनाव में मुद्दाविहीन थी आप : आम आदमी पार्टी के 2018 से 2024 तक के राजनीतिक सफर पर बात करने पर वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक समीक्षक दुर्गेश भटनागर ने कहा कि 2018 की राजनीति कांग्रेस के विरोध की थी . पार्टी को राष्ट्रीय स्तर पर अपनी छाप छोड़नी थी. इसलिए आम आदमी पार्टी ने कई राज्यों में चुनाव लड़ा. वोट प्रतिशत क्या आया यह पार्टी के अंदर खाने में चर्चा जरूर हुई. 2023 के चुनाव में पार्टी छत्तीसगढ़ में बहुत ज्यादा मुखर होकर इसलिए भी नहीं आ पाई थी कि किस मुद्दे को लेकर के वह लोगों के बीच जाती इस पर एक बड़ा संशय था. भ्रष्टाचार के मुद्दे को आगे कर नहीं सकते थे क्योंकि केजरीवाल और उनकी पार्टी के कई नेता शराब घोटाले के मामले में फंसे हुए थे. ऐसे में पार्टी को स्थानीय राजनीति में बड़ा मुद्दा जो दिल्ली से लेकर जाना था वह नहीं मिला. क्षेत्रीय मुद्दे पर इतना ज्यादा काम पार्टी ने किया नहीं था कि उसका कोई आधार या कोई उसका फायदा पार्टी को मिल पाए. ऐसे में राज्य इकाई ने जो तैयारी की थी उसी आधार पर पार्टी ने चुनाव लड़कर संतोष कर लिया.
2024 की लड़ाई और 2024 का चुनाव दोनों आम आदमी पार्टी के लिए अब इस विषय का आधार बन गया है कि कांग्रेस सहित दूसरे राजनीतिक दलों के साथ बने गठबंधन में इनका रहना इसलिए भी जरूरी हो गया है कि अकेले मोदी का विरोध करना इनके लिए आवाज ना सुने जाने जैसा हो जाएगा. क्योंकि जिस बेदाग राजनीति की बात केजरीवाल करते थे उसमें भ्रष्टाचार की कालिख केजरीवाल पर कितना लगेगी यह तो कोर्ट और जांच एजेंसी तय करेंगे. लेकिन एक बात तो साफ है कि जिस तरह से आम आदमी पार्टी का आधार बिगड़ा है. उसमें किसी भी राज्य में आम आदमी पार्टी के लिए मुद्दों के साथ जाना थोड़ा मुश्किल है. और यही वजह है कि 2024 में छत्तीसगढ़ में आम आदमी पार्टी उम्मीदवार उतारने की स्थिति में नहीं दिख रही है.