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वायुमंडल में तेजी से बन रहे पार्टिकुलेट मैटर ने बढ़ाई टेंशन, शोध में सामने आई हैरान करने वाली सच्चाई - IIT Jodhpur research - IIT JODHPUR RESEARCH

आईआईटी जोधपुर के असिस्टेंट प्रोफेसर की ओर से एक शोध का पेपर प्रकाशित हुआ है, जिसमें वायु प्रदूषण के लिए जिम्मेदार हानिकारक तत्व पार्टिकुलेट मैटर पर अध्ययन है. इसके स्रोतों और संरचना पर तथ्यों को इसमें शामिल किया गया है.

IIT JODHPUR RESEARCH
IIT जोधपुर का प्रदूषण पर शोध (Etv Bharat)
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By ETV Bharat Rajasthan Team

Published : May 22, 2024, 11:03 AM IST

Updated : May 22, 2024, 11:45 AM IST

जोधपुर. उत्तरी भारत में वायु प्रदूषण एक गंभीर चुनौती बन गया है. इस प्रदूषण में सर्वाधिक हानिकारक तत्व है पार्टिकुलेट मैटर, जिससे लोगों को भारी परेशानी हो रही है. इसको लेकर आईआईटी जोधपुर के असिस्टेंट प्रोफेसर की ओर से की गई शोध का पेपर 'नेचर कम्युनिकेशंस' में प्रकाशित हुआ है. शोध में पार्टिकुलेट मैटर (PM- Particulate Matter) के स्रोतों और संरचना पर तथ्यों को शामिल किया गया है. इसमें सीधे उत्सर्जित पीएम कण और वायुमंडल में बनने वाले पीएम कणों के बीच एक व्यापक स्पष्ट अंतर बताया गया है. वायु मंडल में पीएम बनना भी चिंता का विषय है. इसकी वजह भी वाहनों का धुआं, हाउस हीटिंग सहित अन्य मानव जनित कारण है.

शोध करने वाली सह आचार्य डॉ. दीपिका भट्टू ने कहा कि भारत के वायु प्रदूषण के संकट से निपटने के लिए स्थानीय समुदायों और हितधारकों के बीच सहयोग के साथ-साथ सामाजिक परिवर्तन की भी आवश्यकता है. खासकर दिल्ली जैसे घनी आबादी वाले शहरी क्षेत्रों में निजात पाने के लिए ठोस प्रयासों की आवश्यकता है जो स्वच्छ ऊर्जा स्रोतों को बढ़ावा दें. इसके लिए मुख्य रूप से ओवरलोड, पुराने वाहनों और अनाधिकृत जुगाड़ वाहनों को हटाना होगा. उल्लेखनीय है कि पार्टिकुलेट मैटर वातावरण में मौजूद वो महीन कण होते हैं जिन्हें आंखों से नहीं देखा जा सकता. यह रासायनिक और मेटल के होते हैं, जो स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हैं.

दिल्ली और इंडो गंगा मैदानों में हुआ अध्ययन : यह शोध दिल्ली के अंदर और बाहर पांच इंडो-गंगा मैदानी स्थलों में हुआ है. इस दौरान पूरे क्षेत्र में समान रूप से उच्च पीएम सांद्रता मौजूद दिखी, लेकिन स्थानीय उत्सर्जन स्रोतों और निर्माण प्रक्रियाओं के कारण रासायनिक संरचना में काफी भिन्नता नजर आई. दिल्ली के प्रदूषण में पाए गए पीएम जिनमें अमोनियम क्लोराइड और कार्बनिक एरोसोल पाया गया, वो सीधे वाहनों के धुंए, आवासीय हीटिंग और वायुमंडल में उत्पादित जीवाश्म ईंधन उत्सर्जन के ऑक्सीकरण से उत्पन्न होते हैं. इसके विपरीत, दिल्ली के बाहर के क्षेत्रों में पाए गए पीएम में अमोनियम सल्फेट और अमोनियम नाइट्रेट मोजूद है, जिसकी वजह बायोमास जलाना भी है.

इसे भी पढ़ें- सिर्फ उच्च AQI वाली हवा ही नहीं, वायु प्रदूषण के निम्न स्तर से भी पड़ सकता है दिल का दौरा

ऑक्सीडेटिव क्षमता यूरोपीय देश और चीन के शहरों से ज्यादा : भारतीय पीएम 2.5 की ऑक्सीडेटिव क्षमता की तुलना करने पर चौंकाने वाले निष्कर्ष सामने आए हैं. भारतीय पीएम की ऑक्सीडेटिव क्षमता चीनी और यूरोपीय शहरों से पांच गुना तक अधिक है, जो इसे वैश्विक स्तर पर मौजूद सबसे अधिक ऑक्सीडेटिव क्षमता में से एक बनाती है. अधिक क्षमता वाले ऑक्सीडेटिव व्यक्ति के शरीर पर प्रतिकूल प्रभाव डालते हैं. अगर व्यक्ति में ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस बढ़ता है तो शरीर में फ्री रेडिकल्स की मात्रा का बढ़ जाती है, जो शरीर में रक्त और अन्य लिक्विड के साथ मिलकर नुकसान पहुंचाते है.

डॉ. दीपिका भट्टू की शोध में तीन महत्वपूर्ण वैज्ञानिक प्रश्नों पर विचार किया गया है. ये प्रश्न राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (NCAP National Clean Air Programme) के तहत डेटा-आधारित प्रभावी शमन रणनीति तैयार करने में भारतीय नीति निर्माताओं
के लिए काम आ सकते हैं. ये प्रश्न निम्न प्रकार है.

  1. सूक्ष्म पीएम (पीएम 2.5) स्रोत की पहचान और उनका पूर्ण योगदान. साथ ही उनके स्थानीय और क्षेत्रीय भौगोलिक उद्गम के बीच अभूतपूर्व स्पष्टता.
  2. सीधे उत्सर्जित पीएम और वायुमंडल में बनने वाले पीएम के बीच अंतर.
  3. इसकी ऑक्सीडेटिव क्षमता को सहसंबंधित करके पीएम की हानिकारकता का निर्धारण.

जोधपुर. उत्तरी भारत में वायु प्रदूषण एक गंभीर चुनौती बन गया है. इस प्रदूषण में सर्वाधिक हानिकारक तत्व है पार्टिकुलेट मैटर, जिससे लोगों को भारी परेशानी हो रही है. इसको लेकर आईआईटी जोधपुर के असिस्टेंट प्रोफेसर की ओर से की गई शोध का पेपर 'नेचर कम्युनिकेशंस' में प्रकाशित हुआ है. शोध में पार्टिकुलेट मैटर (PM- Particulate Matter) के स्रोतों और संरचना पर तथ्यों को शामिल किया गया है. इसमें सीधे उत्सर्जित पीएम कण और वायुमंडल में बनने वाले पीएम कणों के बीच एक व्यापक स्पष्ट अंतर बताया गया है. वायु मंडल में पीएम बनना भी चिंता का विषय है. इसकी वजह भी वाहनों का धुआं, हाउस हीटिंग सहित अन्य मानव जनित कारण है.

शोध करने वाली सह आचार्य डॉ. दीपिका भट्टू ने कहा कि भारत के वायु प्रदूषण के संकट से निपटने के लिए स्थानीय समुदायों और हितधारकों के बीच सहयोग के साथ-साथ सामाजिक परिवर्तन की भी आवश्यकता है. खासकर दिल्ली जैसे घनी आबादी वाले शहरी क्षेत्रों में निजात पाने के लिए ठोस प्रयासों की आवश्यकता है जो स्वच्छ ऊर्जा स्रोतों को बढ़ावा दें. इसके लिए मुख्य रूप से ओवरलोड, पुराने वाहनों और अनाधिकृत जुगाड़ वाहनों को हटाना होगा. उल्लेखनीय है कि पार्टिकुलेट मैटर वातावरण में मौजूद वो महीन कण होते हैं जिन्हें आंखों से नहीं देखा जा सकता. यह रासायनिक और मेटल के होते हैं, जो स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हैं.

दिल्ली और इंडो गंगा मैदानों में हुआ अध्ययन : यह शोध दिल्ली के अंदर और बाहर पांच इंडो-गंगा मैदानी स्थलों में हुआ है. इस दौरान पूरे क्षेत्र में समान रूप से उच्च पीएम सांद्रता मौजूद दिखी, लेकिन स्थानीय उत्सर्जन स्रोतों और निर्माण प्रक्रियाओं के कारण रासायनिक संरचना में काफी भिन्नता नजर आई. दिल्ली के प्रदूषण में पाए गए पीएम जिनमें अमोनियम क्लोराइड और कार्बनिक एरोसोल पाया गया, वो सीधे वाहनों के धुंए, आवासीय हीटिंग और वायुमंडल में उत्पादित जीवाश्म ईंधन उत्सर्जन के ऑक्सीकरण से उत्पन्न होते हैं. इसके विपरीत, दिल्ली के बाहर के क्षेत्रों में पाए गए पीएम में अमोनियम सल्फेट और अमोनियम नाइट्रेट मोजूद है, जिसकी वजह बायोमास जलाना भी है.

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ऑक्सीडेटिव क्षमता यूरोपीय देश और चीन के शहरों से ज्यादा : भारतीय पीएम 2.5 की ऑक्सीडेटिव क्षमता की तुलना करने पर चौंकाने वाले निष्कर्ष सामने आए हैं. भारतीय पीएम की ऑक्सीडेटिव क्षमता चीनी और यूरोपीय शहरों से पांच गुना तक अधिक है, जो इसे वैश्विक स्तर पर मौजूद सबसे अधिक ऑक्सीडेटिव क्षमता में से एक बनाती है. अधिक क्षमता वाले ऑक्सीडेटिव व्यक्ति के शरीर पर प्रतिकूल प्रभाव डालते हैं. अगर व्यक्ति में ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस बढ़ता है तो शरीर में फ्री रेडिकल्स की मात्रा का बढ़ जाती है, जो शरीर में रक्त और अन्य लिक्विड के साथ मिलकर नुकसान पहुंचाते है.

डॉ. दीपिका भट्टू की शोध में तीन महत्वपूर्ण वैज्ञानिक प्रश्नों पर विचार किया गया है. ये प्रश्न राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (NCAP National Clean Air Programme) के तहत डेटा-आधारित प्रभावी शमन रणनीति तैयार करने में भारतीय नीति निर्माताओं
के लिए काम आ सकते हैं. ये प्रश्न निम्न प्रकार है.

  1. सूक्ष्म पीएम (पीएम 2.5) स्रोत की पहचान और उनका पूर्ण योगदान. साथ ही उनके स्थानीय और क्षेत्रीय भौगोलिक उद्गम के बीच अभूतपूर्व स्पष्टता.
  2. सीधे उत्सर्जित पीएम और वायुमंडल में बनने वाले पीएम के बीच अंतर.
  3. इसकी ऑक्सीडेटिव क्षमता को सहसंबंधित करके पीएम की हानिकारकता का निर्धारण.
Last Updated : May 22, 2024, 11:45 AM IST
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