जोधपुर. आईआईटी जोधपुर के रिसर्चर ने एक ऐसा बायो मार्कर के रूप में नैनो सेंसर विकसित किया है, जो किसी भी बीमारी का फर्स्ट स्टेज पर ही पता लगा सकता है. वर्तमान में अस्पतालों में इस तरह की जांच के लिए एलिजा और पीसीआर जैसे टेस्ट होते हैं, जिनकी रिपोर्ट आने में 4 से 10 घंटे तक का समय लग जाता है. लेकिन यह नैनो सेंसर 30 मिनट में ही परिणाम दे देगा. यह सेंसर आईआईटी जोधपुर के बायो साइंस और बायो इंजीनियरिंग विभाग के प्रोफेसर अजय अग्रवाल के निर्देशन में डॉ. सुष्मिता झा, रिसर्चर अकलीदेंश्वर बी और सरवर सिंह सहित अन्य ने विकसित किया है.
सेमी कंडक्टर तकनीक से बनाया सेंसर : प्रोफेसर डॉ. अजय अग्रवाल ने बताया कि यह सेंसर हमने सेमीकंडक्टर तकनीक से बनाया है. इसकी खासियत यह है कि इसमें नैनो स्ट्रक्चर बने हुए हैं, जिनकी मदद से अगर ब्लड में कम मात्रा में किसी भी तरह का मॉलेक्युलर है तो यह उसे पकड़ सकता है. उन्होंने बताया कि इस काम में एम्स जोधपुर का भी सहयोग लिया जा रहा है. यह सेंसर तकनीक काफी सस्ती भी है. इसकी चिप करीब सौ रुपए की आती है. कुछ सामान्य से रसायन जांच में काम में लिए जा सकते है.
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एंटीबायोटिक का उपयोग कम होगा : प्रोफेसर अग्रवाल बताते हैं कि वर्तमान में बीमारी की जांच का पता नहीं लगने से डॉक्टर को उसे नियंत्रित करने के लिए कई तरह के एंटीबायोटिक मरीज को देनी पड़ती हैं, क्योंकि संबंधित बीमारी का पता लगने में समय लगता है और तब तक मरीज को इनकी जरूरत होती है. खास तौर से छोटे बच्चों के मामले काफी ज्यादा परेशानी भरे होते हैं. हमारी तकनीक से बीमारी का जल्दी पता लगेगा तो उसको नियंत्रित करने वाली ही एंटीबायोटिक काम में ली जा सकेगी, जिससे मरीज अनावश्यक रोग प्रतिरोधक क्षमता के ह्रास से भी बचेगा.
ये विशेषताएं हैं इस तकनीक में -
यह सेंसर सूजन और जलन (inflammatory) संबंधित बायोमार्कर को पहचानता है, जिससे रोग की पहचान और प्रगति में मदद मिलती है.
यह तकनीक मल्टीपल स्केलेरोसिस, मधुमेह और अल्जाइमर जैसी बीमारियों का इलाज विकसित करने के लिए महत्वपूर्ण है.
विश्लेषण के लिए आवश्यक कुल समय 30 मिनट से कम है जो इसे एक शीघ्र निदान उपकरण और रोगियों के लिए एक सीधे साधारित और पॉइंट-ऑफ़-केयर तकनीक बन जाता है.