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IAS संजीव हंस को नहीं मिली राहत, HC ने दंडात्मक कार्रवाई पर रोक लगाने से किया इंकार

सीनियर आईएएस अधिकारी संजीव हंस के खिलाफ पटना हाईकोर्ट में सुनवाई हुई. हाईकोर्ट दंडात्मक कार्रवाई करने पर रोक लगाने से इंकार कर दिया.

सीनियर आईएएस अधिकारी संजीव हंस
सीनियर आईएएस अधिकारी संजीव हंस (ETV Bharat)
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By ETV Bharat Bihar Team

Published : 3 hours ago

पटना: पटना हाईकोर्ट ने फिलहाल सीनियर आईएएस अधिकारी संजीव हंस के खिलाफ दर्ज विशेष निगरानी इकाई थाना कांड के कार्रवाई पर दंडात्मक कार्रवाई करने पर रोक लगाने से इंकार कर दिया. पटना कोर्ट ने विशेष निगरानी इकाई को अपना आपत्ति दाखिल करने का आदेश दिया. जस्टिस अरविंद सिंह चंदेल ने इस मामले पर सुनवाई की.

IAS संजीव हंस को नहीं मिली राहत: वहीं, न्यायमूर्ति अरविंद सिंह चंदेल के एकलपीठ ने मामले पर सुनवाई करते हुए एसवीयू को आपत्ति दाखिल करने का आदेश दिया है. आवेदक की ओर से अधिवक्ता सूरज समदर्शी ने एसवीयू थाने में दर्ज केस को रद्द करने की गुहार कोर्ट से लगाई. उनका कहना था कि हाल के दिनों में हाईकोर्ट ने बलात्कार सहित अन्य धाराओं में दर्ज केस को निरस्त कर दिया है. ईडी ने धन शोधन निवारण अधिनियम के तहत जांच की.

13 नवम्बर को होगी सुनवाई: उनका कहना था कि बगैर तथ्यों की पुष्टि किए ईडी की जानकारी पर एसवीयू ने केस दर्ज कर लिया. उन्होंने फिलहाल इस केस में अंतरिम संरक्षण देने की गुहार लगाई. वहीं विशेष एसवीयू के वकील राणा विक्रम सिंह और राज्य सरकार की ओर से अधिवक्ता सुमन कुमार झा ने अर्जी का कड़ा विरोध करते हुए अपना जवाब- दाखिल करने के लिए समय देने की मांग की. सभी पक्षों की ओर से पेश दलीलों पर विचार करते हुए कोर्ट ने मामले पर अगली सुनवाई की तारीख 13 नवम्बर तय की.

दर्ज प्राथमिकी को निरस्त कर दिया: आवेदक की ओर से अधिवक्ता सूरज समदर्शी ने भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 7, 12, 13 (1) (ए), 13 (1) (बी) और 13 (2) के तहत और भारतीय न्याय संहिता की धारा 61 और 318 (4) के तहत बिशेष निगरानी इकाई थाना में दर्ज कांड को रद्द करने का अनुरोध कोर्ट से किया. उनका कहना था कि हाल के दिनों में हाई कोर्ट ने बलात्कर सहित अन्य धाराओं में दर्ज प्राथमिकी को निरस्त कर दिया है. इस केस के दौरान प्रवर्तन निदेशालय ने धन शोधन निवारण अधिनियम के तहत जांच की.

अंतरिम संरक्षण देने का अनुरोध किया: उस जानकारी के आधार पर विशेष निगरानी इकाई ने भारतीय न्याय संहिता की धारा 61, 318 (4) और भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धाराओं 7, 12, 13 (1) (ए), 13 (1) (बी) और 13 (2) के तहत दिनांक 14 सितंबर को विशेष निगरानी इकाई थाना कांड संख्या 5/2024 दर्ज की. उनका कहना था कि बगैर तथ्यों की पुष्टि किए बिना और प्रवर्तन निदेशालय की ओर से दी गई जानकारी में कोई प्रारंभिक जांच किए बिना विशेष निगरानी इकाई ने केस दर्ज कर लिया. उन्होंने कोर्ट को बताया कि पूर्व में एक केस दर्ज होने के कारण यह केस दर्ज करना कानून गलत है.

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IAS संजीव हंस को नहीं मिली राहत: वहीं, न्यायमूर्ति अरविंद सिंह चंदेल के एकलपीठ ने मामले पर सुनवाई करते हुए एसवीयू को आपत्ति दाखिल करने का आदेश दिया है. आवेदक की ओर से अधिवक्ता सूरज समदर्शी ने एसवीयू थाने में दर्ज केस को रद्द करने की गुहार कोर्ट से लगाई. उनका कहना था कि हाल के दिनों में हाईकोर्ट ने बलात्कार सहित अन्य धाराओं में दर्ज केस को निरस्त कर दिया है. ईडी ने धन शोधन निवारण अधिनियम के तहत जांच की.

13 नवम्बर को होगी सुनवाई: उनका कहना था कि बगैर तथ्यों की पुष्टि किए ईडी की जानकारी पर एसवीयू ने केस दर्ज कर लिया. उन्होंने फिलहाल इस केस में अंतरिम संरक्षण देने की गुहार लगाई. वहीं विशेष एसवीयू के वकील राणा विक्रम सिंह और राज्य सरकार की ओर से अधिवक्ता सुमन कुमार झा ने अर्जी का कड़ा विरोध करते हुए अपना जवाब- दाखिल करने के लिए समय देने की मांग की. सभी पक्षों की ओर से पेश दलीलों पर विचार करते हुए कोर्ट ने मामले पर अगली सुनवाई की तारीख 13 नवम्बर तय की.

दर्ज प्राथमिकी को निरस्त कर दिया: आवेदक की ओर से अधिवक्ता सूरज समदर्शी ने भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 7, 12, 13 (1) (ए), 13 (1) (बी) और 13 (2) के तहत और भारतीय न्याय संहिता की धारा 61 और 318 (4) के तहत बिशेष निगरानी इकाई थाना में दर्ज कांड को रद्द करने का अनुरोध कोर्ट से किया. उनका कहना था कि हाल के दिनों में हाई कोर्ट ने बलात्कर सहित अन्य धाराओं में दर्ज प्राथमिकी को निरस्त कर दिया है. इस केस के दौरान प्रवर्तन निदेशालय ने धन शोधन निवारण अधिनियम के तहत जांच की.

अंतरिम संरक्षण देने का अनुरोध किया: उस जानकारी के आधार पर विशेष निगरानी इकाई ने भारतीय न्याय संहिता की धारा 61, 318 (4) और भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धाराओं 7, 12, 13 (1) (ए), 13 (1) (बी) और 13 (2) के तहत दिनांक 14 सितंबर को विशेष निगरानी इकाई थाना कांड संख्या 5/2024 दर्ज की. उनका कहना था कि बगैर तथ्यों की पुष्टि किए बिना और प्रवर्तन निदेशालय की ओर से दी गई जानकारी में कोई प्रारंभिक जांच किए बिना विशेष निगरानी इकाई ने केस दर्ज कर लिया. उन्होंने कोर्ट को बताया कि पूर्व में एक केस दर्ज होने के कारण यह केस दर्ज करना कानून गलत है.

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