मेरठः आपने कई ऐसे एनीमल लवर्स को देखा होगा, उनके साथ समय बिताते हैं और सेल्फी से लेकर वीडियो बनाकर सोशल मीडिया पर डालते हैं. लेकिन आज हम ऐसे एनीमल लवर्स के बारे में बात करने जा रहे हैं, जिनकी दिन की शुरुआत ही बेजुबानों की मदद करने से होती है. जिले के दंपति बेजुबानों के लिए पूरा जीवन समर्पित कर दिया है और इन्हें अपना परिवार मानते हैं और बच्चों की तरह परविरश भी करते हैं.
शास्त्रीनगर में रहने वाले अंशुमाली वशिष्ठ यूं तो पेशे से पशु चिकित्सक हैं, लेकिन उनका पूरा बेजुबानों की सेवा में दिन जाता है. अंशुमाली वशिष्ठ और उनकी पत्नी स्वीटी दोनों ही बेजुबानों की सेवा में लगे रहते है. दम्पत्ति के कोई वारिश भी नहीं है, ऐसे में दोनों बेजुबानों को ही अपने बच्चों की तरह सेवा करते हैं. अब तक डेढ़ सौ से ज्यादा बेजुबानों का तो डॉक्टर अंशुमाली वशिष्ठ अपने साथियों के साथ मिलकर गहरे नालों, तालाबों पोखरों और बोरवेल से निकालकर जीवन भी बचा चुके है. जिनमें न सिर्फ गोवंश बल्कि तेंदुए बंदर, गधे घोड़े हिरण से लेकर डॉगी के बच्चे भी शामिल हैं.
स्ट्रीट डॉग के लिए रोज पकता है भोजानः शास्त्रीनगर में रहने वाले अंशुमाली वशिष्ठ और उनकी पत्नी स्वीटी वशिष्ठ दिन निकलते ही दरवाजे से लेकर आंगन और घर में स्ट्रीट डॉग्स मंडराने लगते हैं. इसके बाद पति पत्नी उनके लिए पेट भर भोजन के जुगाड़ में लग जाते हैं. ऐसा किसी एक दिन नहीं होता बल्कि 365 दिन चलता रहता है. स्वीटी स्ट्रीट डॉग और अन्य जानवरों के लिए खाना बनाती हैं. जबकि पेशे से पशु चिकित्सक अंशुमाली वशिष्ठ बेजुबानों की देखभाल और इलाज करते हैं. बेजुबानों की मदद के लिए एंबुलेंस भी सरकार से मिली हुई है.
बीस साल से कर रहे लावारिस जानवरों की सेवाः अंशुमाली वशिष्ठ ने ईटीवी भारत से खास बातचीत में कहा कि उन्हें हमेशा बेजुबानों से लगाव रहा है. अगर कहीं भी कोई स्ट्रीट डॉग या फिर अन्य बेजुबान अगर उन्हें दिखाई दिया तो वह उसकी हर संभव मदद के लिए तैयार रहते हैं. लगभग बीस साल से हर उस बेज़ुबान की सेवा के लिए तैयार रहते हैं, जो किसी न किसी दुर्घटना का शिकार हो जाता है. किस्मत से उनकी पत्नी भी पशु प्रेमी हैं. जिस वजह से दोनों की बेजुबानों के प्रति सेवा की भावना से उनका और हौंसला बढ़ा. इसके बाद कुछ और समान विचारधारा के लोगों को साथ जोड़ा और एक संस्था बना ली. अंशुमाली बताते हैं कि वह जीवन में कुछ और करना चाहते थे. लेकिन बेज़ुबानों को ज़ब भी राह चलते किसी मुसीबत में पाते तो वह यही सोचते कि इनकी जान बचाई जाए. इसके बाद उन्होंने वैटनरी की पढ़ाई की. अंशुमाली बताते हैं कि युवा अवस्था में पढ़ाई के समय पहले अपनी पॉकेट मनी से स्ट्रीट डॉग्स के लिए अलग-अलग जगह पर उनके खाने के लिए कुछ न कुछ इंतजाम करते थे. लेकिन जब खुद कमाना शुरू किया तो फिर एक निश्चित धनराशि हर दिन वह स्ट्रीट डॉग्स को भोजन कराने और दूध वगैरह पिलाने में खर्चने लगे. संस्था बनाने के बाद अनेकों लोग साथ जुड़े. इसके बाद स्ट्रीट डॉग्स के लिए हर दिन अलग-अलग लोकेशन पर भोजन कराते हैं.
अब तक 150 जानवरों की बचाई जानः बता दें कि कोरोना काल में ज़ब लोग घरों में थे, उस दौर में भी अपनी टीम की सहायता से मेरठ शहर के गली मोहल्लों चौक चौराहों पर बेज़ुबानों के लिए हर दिन बड़े पैमाने पर लंगर की व्यवस्था की. अंशुमाली वशिष्ठ बताते हैं कि कुछ लोग उनके सेवा भाव क़ो देखकर खुद से उन्हें आर्थिक मदद करने लगे और कुछ खाद्य सामग्री भी देने लगे. जिससे अब तक लगभग डेढ़ सौ बेजुबानों को मौत के मुंह से बचा चुके हैं. उनकी टीम बेसहारा गोवंश या पशु की मदद के लिए हमेशा तैयार रहते हैं. अंशुमाली ने बताया कि वह स्ट्रीट डॉग्स को बच्चों की तरह मानते हैं. उन्हें जो कुछ मिलना है, इन्हीं की बदौलत मिलना है. परिवार में कोई बच्चा भी नहीं है. इस सवाल के जवाब में वह बताते हैं कि उनके बच्चे ये जानवर ही हैं. उन्होंने बताया कि एक जमीन खरीद ली है, जहां बेसहारा जानवरों के लिए एक निःशुल्क उपचार के लिए हॉस्पिटल और उनके रहने के लिए इंतजाम करना ही उनका लक्ष्य है.
प्रतिदिन 150 स्ट्रीट डॉग को खिलाते हैं खानाः स्वीटी वशिष्ठ बताती हैं कि शुरुआत से ही बेज़ुबानों की मदद करना अच्छा लगता है. उनसे प्रेम है कुछ उनके परिवार में भी ऐसा ही माहौल पहले था. जिस वजह से दोनों पति पत्नी सेवा करने में लगे रहते हैं. स्वीटी वशिष्ठ बताती है कि वह हर दिन सैकड़ो रोटियां स्ट्रीट डॉग्स के लिए बनाती हैं. वह किसी भी रिलेटिव के यहां आती-जाती नहीं है. क्योंकि कहीं जाएंगी तो उनके बच्चों क़ो संकट झेलना पड़ेगा. वे कैसे भला अपना पेट भर पाएंगे, बस यही सोचकर वे कहीं नहीं जातीं. स्वीटी वशिष्ठ बताती हैं कि हर किसी को अलग-अलग दायित्व दिया हुआ है. हर दिन लगभग 150 स्ट्रीट डॉग्स के लिए खाने का इंतजाम करते हैं. ऐसा करने से ख़ुशी मिलती है और यही उनके परिवार के सदस्य हैं.
रेस्क्यू में वन विभाग की करते हैं मददः डीएफओ राजेश कुमार बताते हैं कि कई बार ऐसा हुआ है कि जब कहीं किसी जानवर का रेस्क्यू ऑपरेशन होता है तो अंशुमाली वशिष्ठ से सम्पर्क किया जाता है. वह अपनी एम्बुलेंस क्रेन लेकर मदद के लिए आते हैं. अंशुमाली वशिष्ठ के नेतृत्व में अब तक कम से कम डेढ़ सौ ऐसे रेस्क्यू ऑपरेशन किए गए हैं, जो कहीं ना कहीं काफी चुनौती पूर्ण थे. आसपास के जिलों में भी उनकी टीम और वह स्वयं मदद के लिए पहुंच जाते हैं. एक तेंदुए के बच्चे को गंभीर अवस्था में मिलने के बाद अंशुमाली ने बच्चे की तरह से परवरिश की. ज़ब उपचार से वह ठीक हो गया तो उसे वन में छोड़ दिया. बेसहारा जानवरों के कई बार तो ऑपरेशन तक किये हैं. हाल ही में एक डॉगी के बच्चे को बोरवेल से 50 घंटे की मशक्कत के बाद निकालकर जीवनदान दिया था. सड़कों पर किसी वाहन की चपेट में आने वाले गाय, सांड कुत्तों, हिरण आदि की मदद भी अपने खर्च पर वह किया करते हैं. पैसे का इंतजाम साथ में जुड़े लोग करते हैं.