रायपुर: महाशिवरात्रि से सब शिव मंदिर जाकर भोले बाबा का अभिषेक करते हैं. इस दिन पार्थिव शिवलिंग बनाकर घर में भी पूजा कर भगवान शिव को प्रसन्न किया जा सकता है. ज्योतिष एवं वास्तुविद पंडित विनीत शर्मा ने बताया कि पार्थिव शिवलिंग कैसे बनाया जाता है और किस विधि से इसकी पूजा की जानी चाहिए.
पार्थिव शिवलिंग कैसे बनाएं: पार्थिव शिवलिंग का अर्थ होता है शुद्ध मिट्टी से बना हुआ शिवलिंग. इस शिवलिंग का निर्माण घर की ही शुद्ध और पवित्र मिट्टी से किया जाता है. साफ जगह से मिट्टी लेकर पार्थिव शिवलिंग बनाने का विधान होता है. पारिवरिक लोगों को सूर्योदय से पहले उठकर ध्यान और योग के माध्यम से अपनी ऊर्जा को भगवान शिव में स्थित करना होता है. इसके साथ ही पार्थिव शिवलिंग बनाते समय इसमें शुद्ध जल, गंगाजल, कच्चा दूध, दही और और शहद भी मिलाया जाता है.
ऐसे करें पार्थिव शिवलिंग की स्थापना: पार्थिव शिवलिंग बनते समय इस बात का विषय ध्यान रखें की त्रिदल युक्त अखंडित बेलपत्र के साथ बनाना चाहिए. बेलपत्र को पार्थिव शिवलिंग के आसन के रूप में लगाया जा सकता है. इसके बाद पूरी आस्था और भक्ति के साथ भगवान रुद्र का आह्वान करते हुए भगवान शिव की प्रतिस्थापना करना है.
पार्थिव शिवलिंग का अभिषेक: शुद्ध जल, गंगाजल, सात नदियों के जल, सात समंदर के पानी से पार्थिव शिवलिंग का अभिषेक किया जाता है. गन्ने के रस, दूध, दही, पंचामृत और अलग अलग तरह के फूलों के रस से पार्थिव शिवलिंग का अभिषेक किया जाता है. इसके साथ ही परिमल, अबीर, गुलाल, चंदन, गोपीचंदन से शिवलिंग का अभिषेक किया जाता है. बेलपत्र, फूल, नीलकमल, मदार और अशोक के फूल पार्थिव शिवलिंग को अर्पित किए जाते हैं. इस पूरी प्रक्रिया में पंचाक्षरी मंत्र ओम नमः शिवाय या महामृत्युंजय मंत्र का शुद्ध उच्चारण करना चाहिए.
ऐसे करें पार्थिव शिवलिंग की पूजा: महाशिवरात्रि के शुभ दिन पार्थिव शिवलिंग के सामने बैठकर शिवास्टकम या फिर शिव जी के 108 नाम का जाप करना चाहिए. रुद्राष्टकम, शिव नमस्कार मंत्र, शिव संकल्प मंत्र और भोलेनाथ के मंत्रों से शिव पूजा करनी चाहिए. महाशिवरात्रि के दिन कुंवारी कन्या को अनार के रस से भगवान शिव का अभिषेक करना चाहिए. महाशिवरात्रि के दिन व्रत उपवास शाकाहारी या फलाहारी उपवास करना शुभ माना गया है. पार्थिव शिवलिंग का विसर्जन करते समय पूरी सावधानी और श्रद्धा के साथ विसर्जित किया जाना चाहिए. विसर्जन करते समय जल हरि की दिशा उत्तर दिशा होनी चाहिए. ऐसा करते समय त्रिकुंड के सामने हमारा चेहरा होना चाहिए और विसर्जन के समय पूर्ण रूप से विसर्जित होते हुए पार्थिव शिवलिंग को हाथ जोड़कर देखना चाहिए.