रायपुर : आजकल बाजार में चाइनीज खाने पीने की चीजों की भरमार है. हर गली और नुक्कड़ पर आपको दिन ढलते ही चाइनीज आयटम के साथ देसी फूड स्टॉल्स दिख जाया करेंगे.इन फूड स्टाल्स पर लोगों भी भीड़ भी काफी टूटती है.खासकर युवा वर्ग शाम के वक्त बाहर कुछ चटपटा खाने के लिए निकलते हैं. चायनीज आइटम की यदि बात करें तो मोमोज, चाउमीन, फ्रेंच फ्राइस, पोटेटे रोल्स के साथ एग रोल का चलन तेजी से बढ़ा है. इन सभी चीजों को चटक रंग देकर ग्राहकों को परोसा जाता है.लेकिन बहुत कम दुकानदार ही नैचुरल रंगों का इस्तेमाल करके खाद्य सामग्रियों को बनाते हैं.ज्यादातर लोग ऐसे कलर का इस्तेमाल करते हैं,जिनके डिब्बों पर साफ लिखा होता है कि इस रंग का इस्तेमाल खाने पीने की चीजों में ना करें.फिर भी नियमों का धता बताकर कृत्रिम रंगों के साथ जहर परोसने का काम जारी है.
सिंथेटिक कलर का दुष्परिणाम : आज की चकाचौंध भरी दुनिया और तेज लाइफ स्टाइल ने आम लोगों को डिब्बा बंद और आकर्षक रंगों से सजे खाने के प्रति आकर्षण जगाया है.जैसे रेडिश फ्रेंच फ्राइ, चाउमिन, मंचूरियन की ग्रेवी देखकर ही लोगों के मुंह में पानी आ जाता है.वहीं तंदुर में पक रहे बादामी मुर्गे और मछली की बात ही निराली लगती है.लेकिन कहते हैं जो दिखता है,वही बिकता है.ऐसे में दुकानदार धड़ल्ले से सिंथेटिक कलर का इस्तेमाल खाने पीने की चीजों में करते हैं. दरअसल ये कलर कपड़ों को रंगने के काम में आते हैं. इंडस्ट्री में डाई के लिए इस्तेमाल होने वाले ये कलर अब हमारे पेट के अंदर जा रहे हैं.जो हमारे जीवन के लिए खतरे की घंटी है. आईए आपको बताते हैं सिंथेटिक रंग आपको कितना नुकसान पहुंचा सकते हैं.
कैंसर: खाने के सिंथेटिक रंगों में बेंजीन नामक पदार्थ मिलता है. जिसे कार्सिनोजेन के तौर पर जाना जाता है.साथ ही साथ फूड डाई में हानिकारक तत्वों की भरमार रहती है. यही रंग जब हमारे शरीर के अंदर जाता है तो कैंसर और ट्यूमर का कारक बनता है.
अटेंशन डेफिसिट हाइपरएक्टिविटी डिसऑर्डर (एडीएचडी ): फूड कलर का ज्यादा उपयोग करने पर अटेंशन डेफिसिट हाइपरएक्टिविटी डिसऑर्डर की समस्या होती है. जिससे शरीर में कई तरह के चकत्ते पड़ जाते हैं.इसलिए रिसर्च में दावा किया गया है कि फूड कलर एडीएचडी के कारक है.
एलर्जी: सिंथेटिक कलर आपको कई किस्म की एलर्जी दे सकते हैं.टाट्रार्जिन नामक तत्व पीले रंग के सिंथेटिक रंग में मिलता है.जो ज्यादातर जलेबी बनाने में इस्तेमाल होता है.टाट्रार्जिन के कारण अस्थमा और पित्त के कारक बनते हैं.
सिंथेटिक रंगों से कैसे बचे ? : आपको इसके लिए खुद तैयार होना होगा. सबसे पहले बाहर बिकने वाली चीजों को खाना बंद करना होगा.कोशिश करिए ऐसी चीजों का इस्तेमाल करें जो चटक रंग के साथ ना पेश की जा रही हो. चाइनीज फूड और डार्क कलर के खाद्य पदार्थों का सेवन करना बंद कर दें.
कहां से मिलते हैं नैचुरल कलर ? : प्राकृतिक रंग पेड़-पौधों, फलों, सब्जियों से ही मिलते हैं. प्राचीन ग्रंथों में इस बात का जिक्र है कि कौन सा रंग किस खाने की चीज से मिल सकता है. पीला, नारंगी रंग को खुबानी, गाजर, टमाटर में पाए जाने वाले कैरोटीनॉयड से निकाला जाता है.
- लाल रंग : चुकंदर या टमाटर
- हरा रंग : पालक, माचा (ग्रीन टी का पाउडर)
- पीला रंग : हल्दी, केसर
- गुलाबी रंग : रसभरी, स्ट्राबेरी
- ऑरेंज रंग : शकरकंद, गाजर, पेपरिका (लाल शिमला मिर्च)
- जामुनी रंग: जामुनी शकरकंद, ब्लूबेरी
- भूरा रंग : कोको, चाय, कॉफी
घर पर ही बनाएं रंग : एक समय था जब भोजन के रंग रसोई में प्राकृतिक तरीके से बनाए जाते थे.आज भी आप घर पर मौजूद चीजों का इस्तेमाल करके खाने को अच्छा कलर देने के लिए कर सकते हैं. जैसे यदि आपको पीले रंग की जरूरत है तो हल्दी, हरा के लिए धनिया, चटक लाल के लिए देगी मिर्च, ऑरेंज के लिए शकरकंद का इस्तेमाल किया जा सकता है. इन रंगों के जरिेए आप ना सिर्फ अपने खाने का लुक बदलेंगे बल्कि परिजनों को सेहत का तोहफा भी देंगे.