रायपुर: 1 नवंबर 2000 को छत्तीसगढ़ राज्य का गठन हुआ. मध्यप्रदेश से अलग होने के बाद छत्तीसगढ़ देश का 26वां राज्य बना. छत्तीसगढ़ का निर्माण मध्य प्रदेश के तीन संभागों रायपुर, बिलासपुर और बस्तर के 16 जिलों और 96 तहसीलों सहित 146 विकासखंडों को मिलाकर किया गया. अलग राज्य बनाने का मकसद आदिवासियों का तेजी से विकास करना और पिछड़े इलाकों को तरक्की की राह पर ले जाना रहा.
33.6 फीसदी है आदिवासियों की आबादी: छत्तीसगढ़ की आबादी लगभग 2.75 करोड़ है. इसमें से लगभग 92 लाख यानी 33.6% आदिवासी हैं. छत्तीसगढ़ राज्य में सर्वाधिक अनुसूचित जाति वाला जिला रायपुर और सबसे कम अनुसूचित जाति वाला जिला दंतेवाड़ा है. 2001 के आंकड़ों के अनुसार अनुसूचित जाति की जनसंख्या के संदर्भ में छत्तीसगढ़ देश का 13 वां स्थान है. अनुसूचित जाति जनसंख्या के हिसाब से छत्तीसगढ़ का देश में 19 वां स्थान है.
आदिवासियों की अहम भूमिका: राज्य बनने से पहले और राज्य बनने के बाद से छत्तीसगढ़ में आदिवासी अहम भूमिका में रहे हैं. बीजेपी और कांग्रेस दोनों ही दल हमेशा से इस कोशिश में रहे हैं कि आदिवासी उनके साथ रहें. आदिवासी जिसके साथ होते हैं, उस पार्टी की जीत छत्तीसगढ़ में हमेशा से तय मानी जाती रही है. आदिवासियों की इसी ताकत को देखते हुए हमेशा से उनको केंद्र बिंदु में रखकर सियासी पार्टियां राजनीति करती रही हैं.
कैसे बढ़ी अहमियत: राजनीति से लेकर सामाजिक क्षेत्र में बड़ा बदलाव लाने के लिए आदिवासी जाने जाते हैं. अपनी संस्कृति और अपनी पहचान बनाए रखने के लिए हमेशा वो काम करते रहते हैं. क्षेत्र चाहे राजनीति का हो या फिर सामाजिक विकास का, आदिवासियों के बिना छत्तीसगढ़ की कल्पना करना ही मुश्किल है. इसी अहमियत को समझते हुए कांग्रेस और बीजेपी दोनों दलों के लोग हमेशा से आदिवासियों को अपने पाले में करने की जुगत भिड़ाते रहे हैं.
सर्व आदिवासी समाज को सरकार से बड़ी उम्मीदें: विष्णु देव साय को सीएम बनाए जाने से सर्व आदिवासी समाज खुश है. सर्व आदिवासी समाज के अध्यक्ष अरविंद नेताम का कहना है कि'' बीजेपी ने अच्छा काम किया कि एक आदिवासी को यहां का सीएम बनाया. आदिवासी सीएम होने से छत्तीसगढ़ का विकास होगा. आदिवासी लोगों के बीच आत्मविश्वास भी बढ़ेगा.''
''आदिवासियों के सामने बहुत सारी समस्याएं हैं. ये अच्छी बात है कि आज छत्तीसगढ़ में आदिवासी मुख्यमंत्री हैं. उम्मीद करते हैं कि उनके नेतृत्व में काफी बदलाव आएगा. मैं बीजेपी नेतृत्व का आभारी हूं कि उन्होने आदिवासी सीएम को प्रदेश की बागडोर दी. आदिवासी सीएम बनने से आत्मविश्वास पैदा हुआ. वर्तमान सरकार समाज को विश्वास में लेकर समस्याओं को हल करने का प्रयास करे, समाज भी उनको सहयोग करेगा. दोनों मिलकर काम करेंगे तो रिजल्ट अच्छा निकलेगा.'' - अरविंद नेता, अध्यक्ष, सर्व आदिवासी समाज, छत्तीसगढ़
श्रेय लेने की सियासत: बीजेपी का दावा है कि उसने छत्तीसगढ़ के विकास को बढ़ावा देने के लिए आदिवासी सीएम दिया. जनता के दुख दर्द को समझने और विकास को बढ़ाने के लिए आदिवासी मंत्री दिए. आदिवासियों के कल्याण के लिए कई योजनाएं राज्य और केंद्रीय स्तर पर चलाई गई.
''आदिवासी भाई बहनों की चिंता करने के लिए हमारे आदिवासी मुख्यमंंत्री हैं. बेहतर हो कांग्रेस अपनी चिंता करे. उसकी इसी बांटने वाली राजनीति के चलते जनता ने उसे विपक्ष में बिठाया है. कांग्रेस के कितने आदिवासी मुख्यमंत्री रहे. वर्तमान में जहां जहां कांग्रेस सत्ता में है, वहां कितने आदिवासी सीएम बनाए ये बताना चाहिए. कांग्रेस के लोग बस गांधी परिवार तक ही सीमित हैं. इस तरह की बातें वो इसलिए करते हैं. 65 सालों तक देश में इन लोगों ने राज किया, क्या हाल किया सब जानते हैं.'' - संजय श्रीवास्तव, प्रदेश प्रवक्ता, भाजपा
बीजेपी पर पलटवार: कांग्रेस ने बीजेपी के आरोपों पर पलटवार करते हुए कहा कि ''प्रदेश में आदिवासी पूरी तरह से असुरक्षित हैं. फर्जी एनकाउंटर और सरेंडर की सियासत हो रही है. हसदेव के जंगल को उजाड़ा जा रहा है. आदिवासियों की रोजी रोटी पर संकट है. आदिवासी सीएम के राज में आदिवासी उपेक्षित हो रहे हैं.''
''डबल इंजन की सरकारी में और आदिवासी सीएम के राज में आदिवासी सुरक्षित नहीं हैं. फर्जी एनकाउंटर का नाम देकर आदिवासियों को मारा जा रहा है, जेल भेजा रहा है. फर्जी तरीके से सरेंडर कराए जा रहे हैं. हसदेव जंगल को खत्म करने की साजिश रची जा रही है. इस सरकार में आदिवासी सुरक्षित नहीं हैं. प्रदेश की जनता भी सुरक्षित नहीं है.'' - दीपक बैज, प्रदेश अध्यक्ष, कांग्रेस
जानकारों की क्या है राय: छत्तीसगढ़ की सियासत और आदिवासियों की स्थिति पर करीब से नजर रखने वाले सियासी जानकार कहते हैं कि ''जिस तरह से आदिवासियों का विकास होना था, उस तरह से नहीं हुआ. विकास की दौड़ में आज आदिवासी पिछड़ गए हैं. किसी राज्य में आदिवासी सीएम बना देने से विकास नहीं हो जाता है.''
''जिस तरीके से आदिवासियों का विकास होना था वैसा नहीं हुआ. उनके विकास के लिए छत्तीसगढ़ राज्य बनाया गया. एक करोड़ की लगभग आबादी और प्रदेश में लगभग 33 फीसदी आदिवासी हैं. इन सबके बावजूद विकास की दौड़ में आदिवासी पीछे खड़ा नजर आ रहा है. जैसा विकास होना चाहिए था, जैसी सुविधाएं मिलनी चाहिए थी, वैसी नहीं मिली.'' - उचित शर्मा, वरिष्ठ पत्रकार
विवाद का दौर जारी: छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद से आदिवासियों के विकास को लेकर लंबे वक्त से सियासी बहस चल रही है. राज्य के बने 24 साल हो चुके हैं उसके बाद भी ये सियासी बहस का दौर थमता दिखाई नहीं दे रहा है. आने वाले वक्त में भी आदिवासियों को लेकर सियासी दांव पेच जारी रहेगा इसकी पूरी उम्मीद है.