पटना: बिहार में शराबबंदी कानून को 8 साल हो गए हैं. एक तरफ जहां विपक्ष का दावा है कि यह कानून बुरी तरफ फेल है. राज्य में शराब की होम डिलीवरी हो रही है. जहरीली शराब से आए दिन लोगों की मौत हो रही है. हालांकि सत्ता पक्ष का तर्क है कि शराबबंदी के कारण न केवल समाज की तस्वीर बदली है, बल्कि महिलाओं के हालात भी काफी बदलाव आए हैं. सरकार के कामकाज पर नजर रखने वाले वरिष्ठ पत्रकार भी मानते हैं कि शराबबंदी वास्तव में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के महत्वपूर्ण निर्णयों में सबसे अहम है.
'शराबबंदी कानून ऐतिहासिक फैसला': 'न्याय के साथ विकास' और सुशासन के मूलमंत्र को अपना ध्येय बनाकर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने 2005 में बिहार की बागडोर संभाली थी. इन दो दशकों में उन्होंने न सिर्फ विकास के नए मानदंड स्थापित किए, बल्कि समाज में व्याप्त कुरीतियों के खिलाफ अभियान चलाकर एक समाज सुधारक के रुप में अपनी छवि पेश की. सीएम ने राज्य के लाखों परिवार और समाज में शांति, बेहतर स्वास्थ्य और चेहरे पर मुस्कान को राजस्व प्राप्ति के ऊपर प्राथमिकता दी और 5 अप्रैल 2016 को राज्य में पूर्ण शराबबंदी कर देश में इतिहास रच दिया.
शराबबंदी से बदली समाज की तस्वीर: वरिष्ठ पत्रकार आनंद कौशल के मुताबिक शराबबंदी लागू होने के बाद बिहार में सब्जी, फल, दूध और जरूरत की वस्तुओं की बिक्री बढ़ गई है. साथ ही शिक्षा, खान-पान और रहन-सहन के स्तर में काफी सुधार हुआ है. महिलाओं के विरुद्ध यौन हिंसा में 3.6% की कमी, भावनात्मक हिंसा में 4.6% की कमी और घरेलू हिंसा में 37% की कमी दर्ज की गई है, जबकि राष्ट्रीय स्तर पर इस तरह के मामलों में 12 फीसदी का इजाफा हुआ है.
शराबबंदी से महिलाओं की स्थिति में सुधार: शराबबंदी के कारण महिलाओं के खिलाफ अपराध दर में 45 प्रतिशत की कमी दर्ज की गई है, जबकि राष्ट्रीय स्तर पर महिलाओं के खिलाफ अपराध दर में 3% की वृद्धि हुई है. राज्य में शराबबंदी कानून का सख्ती से पालन कराया जा रहा है. जिस वजह से सामाजिक वातावरण में बेहतरी आई है. शराबबंदी के बाद से बिहार में पर्यटकों की संख्या में लगातार वृद्धि हुई है. शराबबंदी को और अधिक प्रभावी बनाने के लिए नीतीश सरकार ने कानून में बदलाव कर संशोधित कानून को एक अप्रैल 2022 से लागू किया.
1.82 करोड़ लोगों ने शराब पीना छोड़ा: वर्ष 2023 में हुए सर्वे के मुताबिक, एक करोड़ 82 लाख लोगों ने शराब पीना छोड़ दिया है. सर्वे में यह बात सामने आयी है कि बिहार में 99 प्रतिशत महिलाएं और 92-93 प्रतिशत पुरुष शराबबंदी के पक्ष में हैं. शराबबंदी के बाद महिलाओं के जीवन स्तर में काफी सुधार आया है. शराबबंदी के बाद शराब कार्य से जुड़े लोगों को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने लगातार जीविकोपार्जन योजना के माध्यम से लोगों को रोजगार उपलब्ध कराने में मदद की जा रही है.
2016 से बिहार में पूर्ण शराबबंदी: बिहार की आर्थिक और सामाजिक सूरत तेजी में शराबबंदी के कारण तेजी से बदलाव हो रहा है. परिवार में शांति और समाज में सद्भाव कायम हुआ है. महिलाओं को घरेलू हिंसा, मानसिक प्रताड़ना, शोषण तथा सामाजिक बुराइयों से मुक्ति मिली है. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने नशामुक्त समाज बनाने की अपनी सोच और राष्ट्रपिता महात्मा गांधी और जननायक कर्पूरी ठाकुर के सपने को साकार करने के लिए वर्ष 2016 में बिहार में पूर्ण शराबबंदी लागू की.
महिलाओं की मांग पर शराबबंदी: पटना के श्रीकृष्ण मेमोरियल हॉल में आयोजित कार्यक्रम के दौरान 9 जुलाई 2015 को महिलाओं की मांग को ध्यान में रखते हुए मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने 5 अप्रैल 2016 से पूर्ण शराबबंदी लागू की थी. इसके लिए निचले स्तर तक जागरूकता कार्यक्रम चलाकर और स्वयं बिहार के हर क्षेत्र में जाकर सीएम ने लोगों को शराब सेवन के दुष्परिणामों के विषय में एक-एक बात बताकर उन्हें गोलबंद किया.
शराबबंदी को लेकर प्रशासन की सख्ती: वहीं, नीतीश कुमार के आह्वान पर ही शराबबंदी और नशामुक्ति के समर्थन में 21 जनवरी 2017 को दुनिया की सबसे बड़ी मानव श्रृंखला बनाई गई. करीब 11 हजार किलोमीटर से अधिक लंबी मानव श्रृंखला बनाकर इतिहास रच दिया. इस मानव श्रृंखला में लगभग तीन करोड़ से भी ज्यादा लोग शामिल हुए. शराबबंदी के सफल क्रियान्वयन को लेकर लगातार जनजागरूकता अभियान भी चलाया जा रहा है. साथ ही प्रशासन के द्वारा पूरी सख्ती बरती जा रही है.
"पूर्ण शराबबंदी करना मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के अपने कार्यकाल में लिए गए निर्णयों में से एक महत्वपूर्ण और मील का पत्थर साबित करनेवाला निर्णय हुआ. एक तरफ शराब बिक्री से राजस्व प्राप्ति का मोह था तो दूसरी तरफ शराब के सेवन से होनेवाले नुकसानों की लंबी श्रृंखला थी."- आनंद कौशल, वरिष्ठ पत्रकार
नोट: आनंद कौशल वरिष्ठ पत्रकार और स्तंभकार हैं. इस लेख में व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं.
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