लखनऊ: उत्तर प्रदेश में आज मकर संक्रांति धूमधाम से मनाई जा रही है. मकर संक्रांति पर स्नान और दान करने की परंपरा लोगों ने निभाई. वहीं, इस दिन पतंगबाजी की परंपरा है, जो निभाई गई. ऐसे में नवाबों के शहर लखनऊ से पतंगबाजी का गहरा जुड़ाव सालों से है.
लखनऊ में पतंगबाजी सिर्फ एक खेल नहीं, बल्कि एक सांस्कृतिक धरोहर रही है. इसे "पतंगबाजी की यूनिवर्सिटी" कहा जाता है. इस परंपरा की शुरुआत नवाबों ने की थी. जिन्होंने गरीबों की आर्थिक सहायता के लिए पतंगों में सोने-चांदी के सिक्के जड़कर उड़ाए थे. यह खेल अंग्रेजों के खिलाफ विरोध का भी प्रतीक बना, जब पतंगों पर 'साइमन गो बैक' और 'भारत छोड़ो' जैसे नारे लिखे गए थे.
पतंगबाजी से आंख और गर्दन की एक्सरसाइजः अमरनाथ कौल ने ईटीवी भारत से बातचीत करते हुए बताया कि पिछले 75 साल से पतंगबाजी कर रहा हूं. इस उम्र में भी मैदान में जाकर के पतंगबाजी करता हूं. यह खेल फिटनेस के लिए बेहद लाभदायक है. आंख और गर्दन की एक्सरसाइज के लिए काफी अच्छा माना जाता है. 75 साल में क्लब के मातहत ऑल इंडिया लेवल के 8 मेडल और राज्य स्तरीय 8 पुरस्कार जीते हैं. कौल कहते हैं कि अब पतंग का दौरा फास्ट हो गया है. पहले पतंगबाजी का लोग शौक करते थे लेकिन अब मैदान नहीं रहे और न ही वो दौर रहा.
नवाबों ने पतंगबाजी से गरबा परवरी कीः अमरनाथ कौल बताते हैं कि लखनऊ में जब सूखा पड़ा तो उसे वक्त नवाबों ने खुद्दार गरीबों की गुरबा परवरी के लिए पतंगबाजी शुरू की थी. पतंग में सोने चांदी के सिक्के जड़ करके उनकी आर्थिक सहायता की. लेकिन जब अंग्रेजों का जमाना आया तो लखनऊ में उनके विरुद्ध न सिर्फ हथियारों से जंग लड़ी गई बल्कि पतंग का भी इस्तेमाल किया गया. पतंग को अंग्रेजों के खिलाफ विरोध को प्रतीक बनाया. "साइमन गो बैक", "भारत छोड़ो" नारा लिख गया. अब मकर संक्रांति जमघट रक्षाबंधन के पर्व पर पतंगबाजी की जाती है. लखनऊ में युवाओं में खास उत्साह देखने को मिल रहा है.
मकर संक्रांति पर क्यों उड़ाते हैं पतंग
अमरनाथ कौल कहते हैं कि सूर्य मकर संक्रांति त्योहार पर मकर राशि में आता है और इस राशि में दान पुण्य का बहुत महत्व है. महाकुंभ का भी इसी राशि में आयोजन होता है. उन्होंने कहा कि लोग अपने कपड़े दान करते हैं. धन दान करते हैं लेकिन आकाश में किया दान करते तो पतंग उड़ा के हम आकाश में दान करते हैं. इस दिन अपनी मनोकामना को लेकर के पतंग उड़ाते हैं. जो पतंग कट जाता है या जिसे छोड़ देते उससे आप की मनोकामना पूरी होती है.
एक हजार रुपये में भी बिक रही पतंगः व्यापारी गुड्डू पतंग वाले बताते हैं कि मकर संक्रांति के पर्व पर पतंग की बिक्री में बढ़ोतरी होती है. अलग-अलग तरीके के पतंग बिकते हैं. पतंग की शुरुआत 5 रुपये से लेकर के 1000 तक होती है. 1000 रुपये की पतंग में जो जोड़ लगाते हैं, वह बहुत ही अहम माने जाते हैं. इस पतंग के बड़े कारीगर ही बना सकते हैं. 1000 की पतंग खरीदने वाले लोगों की संख्या कम है. लेकिन पतंग के जो बड़े शौकीन हैं, वह महंगे पतंग खरीदते हैं. लखनऊ के पतंग के कारीगर अली नवाब सिर्फ भारत के अलग-अलग राज्यों में पतंग बनाकर भेजते थे. बॉलीवुड से लेकर के देश-विदेश तक पतंग भेजते थे.
40 साल से पतंग उड़ा रहे मोहम्मद यूनुस बताते हैं कि एक जमाना था, जब पतंगबाजी करने के लिए हम 50 किलोमीटर तक साइकिल से चले जाते थे. लेकिन अब पतंगबाजी का क्रेज धीरे-धीरे कम होता जा रहा है. अब मैदान खत्म हो गए हैं, लोग छत से पतंग उड़ा रहे हैं. वहीं, एक निजी संगठन के आंकड़ों के मुताबिक चाइनीज मांझे के प्रयोग से हर साल करीब 2000 पक्षी पशु और मानव इसके जद में आते हैं, जिन्हें जान हानी का सामना करना पड़ता है.
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