महासमुंद: क्या आपने कभी ऐसा सुना है कि किसी गांव में होलिका दहन नहीं होता लेकिन होली का त्योहार मनाया जाता है. महासमुंद जिले के घोड़ारी और मुढेना गांव में पिछले 200 सालों से होलिका दहन नहीं किया गया. घोड़ारी और मुढेना गांव के लोग होलिका दहन जरूर नहीं करते हैं लेकिन होली बड़े ही उत्साह और मौज में मनाते हैं. गांव वालों का कहना है कि पीढ़ियों से ये परंपरा चला आ रही है जिसका पालन वो आज भी करते हैं.
200 सालों से नहीं हुआ होलिका दहन: गांव के लोगों का कहना है कि उनके पूर्वजों के समय से होलिका दहन नहीं किया जा रहा है. दादा-परदादा के जमाने से घोड़ारी और मुढेना गांव में कहीं भी होलिका नहीं जलाई जाती है. घोडारी गांव की आबादी करीब 4500 लोगों की है. मुढेना गांव की आबादी 2500 के आस पास है. करीब 7000 की आबादी वाले दोनों गांवों में आज तक सम्मत नहीं जलाया गया है. होलिका दहन के अगले दिन गांव वाले सिर्फ सूखी होली खेलते हैं. गीली होली से भी इन दोनों गांवों के लोगों को परहेज है.
क्या है इसके पीछे की मान्यता: गांव वालों की मान्यता है कि कई साल पहले यहां भयंकर महामारी फैली थी. महामारी के बाद लोगों ने ये फैसला लिया कि वो इन दोनों गांवों में होलिका दहन नहीं करेंगे. गांव वालों का दावा है कि जब से होलिका दहन बंद हुआ तब से गांव में कभी भी महामारी की नौबत नहीं आई. सालों से चली आ रही इस अनोखी परंपरा का 200 सालों से लोग पालन करते आ रहे हैं. घोड़ारी और मुढेना गांव की इन अनोखी परंपरा को जो भी सुनता है आश्चर्य करता है.