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माहे रमजान की शुरुआत कब और कैसे हुई, रोजे की क्या है फजीलत, क्यों खास है शब-ए-कद्र की रात - history Islamic month Ramjaan

इस्लामिक माह रमजान की शुरुआत कब और कैसे हुई, रमजान के रोजे की क्या फजीलत (विशेषता) है, रोजे रखने के क्या शारीरिक फायदे हैं, इसके अतिरिक्त रमजान में पढ़ी जाने वाली तरावीह की नमाज़ क्या महत्व है. खजूर से रोजा इफ्तार (उपवास तोड़ना) के क्या फायदे हैं? आइए जानते हैं.

history Islamic month Ramjaan
इस्लामिक माह रमजान की शुरुआत कब और कैसे हुई
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By ETV Bharat Madhya Pradesh Team

Published : Mar 30, 2024, 10:05 PM IST

इस्लामिक माह रमजान की शुरुआत कब और कैसे हुई

राजगढ़। इस्लामिक माह रमजान के दो अशरे यानी कि शुरुआत के 20 दिन गुजर चुके हैं. रमजान का आखिरी अशरा यानी कि आखिर के 10 दिन बाकी हैं. इन्हीं 10 दिन की ताक रात (अवसर की प्रतीक्षा) से मुताल्ल्लिक (संबंधित) एक ऐसी रात का जिक्र किया जाता है, जो हजार महीनों से भीं अफ़ज़ल है और इस रात में इबादत करना हजार महीनों से भी अफ़ज़ल है, जिसमे इस रात को पाने के लिए मुस्लिम धर्मवालंबियो द्वारा अहतेकाफ करना भी शामिल है. देखिए शब ए कद्र (खास रात) से मुताल्लिक (संबंधित) राजगढ़ के अब्दुल वसीम अंसारी की स्पेशल रिपोर्ट.

रमजान माह के 30 दिन को 3 भागों में बांटा

बता दें कि इस्लामिक माह के अनुसार रामजानुअल मुबारक के 30 दिन के रोजे को 3 अशरे यानी दस-दस दिन के 3 भागों में बांटा गया है, जिसका मतलब यह है कि रमजान का चांद नजर आने के बाद आने वाले दस दिन रहमत (दया), दस दिन मगफिरत (माफी) और 10 दिन जहन्नम की आग से आजादी के होते हैं. जिसकी उलेमाओ (इस्लाम के विद्वान ) ने तफसीर (स्पष्टीकरण) भी बयान की है. वहीं इसी माह के आखिरी अशरे की ताक रातों (अवसर की प्रतीक्षा) में एक रात ऐसी भी है, जिसे उलेमा (इस्लाम के विद्वान) हज़ार महीने से भी अफ़ज़ल बताते हैं. इस रात को पाने के लिए इस्लाम धर्म का अनुसरण करने वाले मुस्लिम समुदाय के लोग अहतेकाफ़ (ईश्वर भक्ति के लिए समर्पित) की नीयत से मस्जिद के एक कोने में बैठते हैं और ईनाम की रात यानी की ईद का चांद नज़र आने के बाद जो रात होती है, उसे ईनाम की रात कहा जाता है. ईद वाले दिन को ईनाम का दिन बताया गया है, जिसमे रो-रोकर दुआएं की जाती हैं.

मुहम्मद सुलेमान से ईटीवी भारत की खास बातचीत

ईटीवी भारत ने राजगढ़ की शफी मस्जिद के पेश इमाम वा आलिम (विद्वान) मुहम्मद सुलेमान से खास बातचीत की. उन्होंने बताया "रमजान का पहला अशरा यानी कि शुरुवात के 10 दिन रहमत (दया) है. दूसरे 10 दस दिन मगफिरत (माफ़ी की रात) और आख़िर के 10 दिन जहन्नम से आजादी के हैं. आखिरी अशरे (10 दिन) में आने वाली रात शब ए कद्र की रात है, जो मखसूस (खास रात) है और इसके फजाइल (विशेषता) है, वो बेशुमार है, और इसी फजाइल (विशेषता) की वजह से इस रात पर अल्लाह रब्बुल इज्जत (ईश्वर) ने पूरी सूरत (कुरआन की आयत के माध्यम से जिक्र) नाजिल फरमाई है, क्योंकि अल्लाह (ईश्वर) ने कुरआन ए करीम को इस रात के अंदर उतारा है, ये भी इसकी फजीलतों (विशेषताओं) में शुमार है. शबे कद्र की एक रात हज़ार महीनों से अफ़ज़ल है. इस एक रात के अंदर इबादत करना ऐसा है, जैसे किसी इंसान ने हजार महीने इबादत की हो."

अल्लाह कैसे करते हैं दुआएं पूरी

मौलाना बताते हैं "जिस तरह से मुस्लिम धर्म का अनुसरण करने वाले पुरुष मस्जिद के अंदर बैठकर अहतेकाफ (ईश्वर भक्ति के लिए समर्पित) रहते हैं, उसी तरह से महिलाएं अपने घर के किसी एक कोने में अहतेकाफ़ करती हैं. अहतेकाफ़ करने वाला शख्स जब ईश्वर भक्ति में लीन होकर अपने लिए, अपने परिवार के लिए, अपने अहलो अयाल (खानदान) के लिए , अपनी बस्ती और अपने शहर के लिए जब वो गिड़गिड़ाकर अल्लाह (ईश्वर) से दुआएं करता है तो उसकी दुआएं कुबूल होती हैं. और वो शहर और बस्ती जहां बंदा अहतेकाफ़ में बैठा है, वह अल्लाह के अजाब (प्राकृतिक आपदाओं) से महफूज (सुरक्षित) रहती है."

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कौन-कौन बंदा होता है ईनाम का हकदार

मौलाना बताते हैं "ईद का दिन मुस्लिम धर्मावलंबियो के लिए इनाम का दिन होता है, और इस दिन बंदा रो-रोकर अपनी परेशानियां अल्लाह (ईश्वर) के सामने पेश करता है. जिसने इस माह का एहतिराम (आदर) जैसा कि करना चाहिए था, किया यानी कि रोजे रखे, तरावीह पढ़ी और बुरी बातों से बचा वो सब कुछ किया जो करना चहिए था, वह बंदा इनाम का हकदार होता है और वह खाली हाथ नहीं लौटता, लेकिन उसके विपरीत कुछ लोग ऐसे भी हैं, जिन्होंने इस माह को भी दूसरे आम महीनों की तरह बगैर कुछ किए हुए ही गुजार दिया, वे लोग जरूर खाली हाथ लौटते हैं. लेकिन यदि ये लोग भी रो-रोकर आइंदा वक्त के लिए सच्चे दिल से तौबा करें तो गुंजाइश है कि उन्हें भी ईद के दिन ईनाम दे दिया जाए, लेकिन शर्त ये है कि उनकी तौबा सच्ची और पक्की हो और आइंदा पूरे एहतेराम के साथ अपनी जिंदगी बशर करने का इरादा हो."

इस्लामिक माह रमजान की शुरुआत कब और कैसे हुई

राजगढ़। इस्लामिक माह रमजान के दो अशरे यानी कि शुरुआत के 20 दिन गुजर चुके हैं. रमजान का आखिरी अशरा यानी कि आखिर के 10 दिन बाकी हैं. इन्हीं 10 दिन की ताक रात (अवसर की प्रतीक्षा) से मुताल्ल्लिक (संबंधित) एक ऐसी रात का जिक्र किया जाता है, जो हजार महीनों से भीं अफ़ज़ल है और इस रात में इबादत करना हजार महीनों से भी अफ़ज़ल है, जिसमे इस रात को पाने के लिए मुस्लिम धर्मवालंबियो द्वारा अहतेकाफ करना भी शामिल है. देखिए शब ए कद्र (खास रात) से मुताल्लिक (संबंधित) राजगढ़ के अब्दुल वसीम अंसारी की स्पेशल रिपोर्ट.

रमजान माह के 30 दिन को 3 भागों में बांटा

बता दें कि इस्लामिक माह के अनुसार रामजानुअल मुबारक के 30 दिन के रोजे को 3 अशरे यानी दस-दस दिन के 3 भागों में बांटा गया है, जिसका मतलब यह है कि रमजान का चांद नजर आने के बाद आने वाले दस दिन रहमत (दया), दस दिन मगफिरत (माफी) और 10 दिन जहन्नम की आग से आजादी के होते हैं. जिसकी उलेमाओ (इस्लाम के विद्वान ) ने तफसीर (स्पष्टीकरण) भी बयान की है. वहीं इसी माह के आखिरी अशरे की ताक रातों (अवसर की प्रतीक्षा) में एक रात ऐसी भी है, जिसे उलेमा (इस्लाम के विद्वान) हज़ार महीने से भी अफ़ज़ल बताते हैं. इस रात को पाने के लिए इस्लाम धर्म का अनुसरण करने वाले मुस्लिम समुदाय के लोग अहतेकाफ़ (ईश्वर भक्ति के लिए समर्पित) की नीयत से मस्जिद के एक कोने में बैठते हैं और ईनाम की रात यानी की ईद का चांद नज़र आने के बाद जो रात होती है, उसे ईनाम की रात कहा जाता है. ईद वाले दिन को ईनाम का दिन बताया गया है, जिसमे रो-रोकर दुआएं की जाती हैं.

मुहम्मद सुलेमान से ईटीवी भारत की खास बातचीत

ईटीवी भारत ने राजगढ़ की शफी मस्जिद के पेश इमाम वा आलिम (विद्वान) मुहम्मद सुलेमान से खास बातचीत की. उन्होंने बताया "रमजान का पहला अशरा यानी कि शुरुवात के 10 दिन रहमत (दया) है. दूसरे 10 दस दिन मगफिरत (माफ़ी की रात) और आख़िर के 10 दिन जहन्नम से आजादी के हैं. आखिरी अशरे (10 दिन) में आने वाली रात शब ए कद्र की रात है, जो मखसूस (खास रात) है और इसके फजाइल (विशेषता) है, वो बेशुमार है, और इसी फजाइल (विशेषता) की वजह से इस रात पर अल्लाह रब्बुल इज्जत (ईश्वर) ने पूरी सूरत (कुरआन की आयत के माध्यम से जिक्र) नाजिल फरमाई है, क्योंकि अल्लाह (ईश्वर) ने कुरआन ए करीम को इस रात के अंदर उतारा है, ये भी इसकी फजीलतों (विशेषताओं) में शुमार है. शबे कद्र की एक रात हज़ार महीनों से अफ़ज़ल है. इस एक रात के अंदर इबादत करना ऐसा है, जैसे किसी इंसान ने हजार महीने इबादत की हो."

अल्लाह कैसे करते हैं दुआएं पूरी

मौलाना बताते हैं "जिस तरह से मुस्लिम धर्म का अनुसरण करने वाले पुरुष मस्जिद के अंदर बैठकर अहतेकाफ (ईश्वर भक्ति के लिए समर्पित) रहते हैं, उसी तरह से महिलाएं अपने घर के किसी एक कोने में अहतेकाफ़ करती हैं. अहतेकाफ़ करने वाला शख्स जब ईश्वर भक्ति में लीन होकर अपने लिए, अपने परिवार के लिए, अपने अहलो अयाल (खानदान) के लिए , अपनी बस्ती और अपने शहर के लिए जब वो गिड़गिड़ाकर अल्लाह (ईश्वर) से दुआएं करता है तो उसकी दुआएं कुबूल होती हैं. और वो शहर और बस्ती जहां बंदा अहतेकाफ़ में बैठा है, वह अल्लाह के अजाब (प्राकृतिक आपदाओं) से महफूज (सुरक्षित) रहती है."

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कौन-कौन बंदा होता है ईनाम का हकदार

मौलाना बताते हैं "ईद का दिन मुस्लिम धर्मावलंबियो के लिए इनाम का दिन होता है, और इस दिन बंदा रो-रोकर अपनी परेशानियां अल्लाह (ईश्वर) के सामने पेश करता है. जिसने इस माह का एहतिराम (आदर) जैसा कि करना चाहिए था, किया यानी कि रोजे रखे, तरावीह पढ़ी और बुरी बातों से बचा वो सब कुछ किया जो करना चहिए था, वह बंदा इनाम का हकदार होता है और वह खाली हाथ नहीं लौटता, लेकिन उसके विपरीत कुछ लोग ऐसे भी हैं, जिन्होंने इस माह को भी दूसरे आम महीनों की तरह बगैर कुछ किए हुए ही गुजार दिया, वे लोग जरूर खाली हाथ लौटते हैं. लेकिन यदि ये लोग भी रो-रोकर आइंदा वक्त के लिए सच्चे दिल से तौबा करें तो गुंजाइश है कि उन्हें भी ईद के दिन ईनाम दे दिया जाए, लेकिन शर्त ये है कि उनकी तौबा सच्ची और पक्की हो और आइंदा पूरे एहतेराम के साथ अपनी जिंदगी बशर करने का इरादा हो."

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