जयपुर : भारत में सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषा यदि कोई है तो वो हिंदी है. बात करें राजस्थान की राजधानी जयपुर की तो यहां की मातृभाषा ही नहीं राज कार्य की भाषा भी हिंदी ही है. हिंदी से ये जुड़ाव कोई नया नहीं है. जयपुर की विरासत में हिंदी रची बसी हुई है. यहां के दरवाजे, चौपड़, गली-मोहल्ले बाजार और बाजारों की दुकानों पर भी हिंदी भाषा में ही नाम उकेरे हुए हैं. यहां तक कि अंग्रेजी के शब्दों को भी हिंदी की शब्दावली में ही लिखा गया है.
अंग्रेजी शब्द की भी हिंदी शब्दावली : इतिहासकार देवेंद्र कुमार भगत के अनुसार जयपुर में हिंदी का प्रचलन सवाई राम सिंह के समय से बढ़ा. यहां राजस्थानी भाषा के दो रूप डिंगल और पिंगल भी हिंदी के देसी वर्जन कहे जा सकते हैं. जयपुर में गलियों, चौपड़ों और दरवाजों के नाम सब हिंदी में हैं. यहां तक की बाजारों की सभी दुकानों पर हिंदी में नाम लिखे हुए हैं. यदि किसी के नाम की शब्दावली अंग्रेजी में भी है तो उस अंग्रेजी शब्द को भी हिंदी शब्दावली में ही लिखा गया है.
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ऐसे बढ़ा हिंदी की प्रचलन : उन्होंने बताया कि हिंदी भाषा को प्रचारित और प्रसारित करने के लिए जयपुर के जवाहर मल जैन ने काशी नागरी प्रचारिणी सभा में भी पैसा दिया था. चंद्रधर शर्मा गुलेरी का हिंदी साहित्य भी जयपुर से ही निकला. 1934 में जयपुर में हिंदी का प्रचलन राजकीय भाषा के रूप में शुरू हुआ. उस दौरान यहां की अदालतों के फैसलों को फारसी से हिंदी में ट्रांसलेट किया जाता था. यहां तक की स्वाधीनता आंदोलन भी हिंदी पर ही टिका हुआ था. यही नहीं जयपुर के तो एजुकेशन सिस्टम में भी हिंदी भाषा रच-बस गई थी. इसके अलावा महाजनी भाषा रोकड़, बही-खाते भी हिंदी में ही तैयार किए जाते थे.
व्यापारियों से अपील : वहीं, जयपुर के एकमात्र हेरिटेज बाजार त्रिपोलिया बाजार के अध्यक्ष राजेंद्र गुप्ता ने बताया कि स्टेट पीरियड से ही जयपुर की दुकानों पर नाम पट्टिका हिंदी में ही लिखे गए थे और इसे जयपुर के व्यापारियों ने आज भी जिंदा रखा हुआ है. परकोटा के बाजारों में आज भी जितनी दुकानें हैं, उन सभी के नाम हिंदी में ही लिखे हुए हैं. उन्होंने व्यापारियों से यही अपील है कि ग्राहकों के बिल हिंदी में काटें ताकि ग्राहक उसे आसानी से पढ़ सकें. इसके अलावा ट्रेडिंग में जब चेक से पेमेंट होता है तो उसमें भी नाम और धनराशि लिखने में हिंदी का प्रयोग करें. हालांकि जो भी कंपनी अपने प्रॉडक्ट्स बेचना चाहती है या विज्ञापन आते हैं, वो इंग्लिश में लिखते हैं. उनसे भी यही निवेदन है कि विज्ञापन उस भाषा में लिखें जिसे आम आदमी समझ-पढ़ सकें.
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हिंदी को आगे बढ़ाएं : जयपुर व्यापार महासंघ के अध्यक्ष सुभाष गोयल का कहना है कि हिंदी हमारी मातृभाषा है. यही वजह है कि स्टेट पीरियड से लेकर आज तक व्यापारी वर्ग हिंदी को साथ लेकर चल रहा है. यहां के व्यापारी और उपभोक्ता के बीच कम्युनिकेशन हिंदी में होता है. दुकानों के नाम हिंदी में हैं. यहां तक की बही-खाता भी आज तक हिंदी में ही लिखे जा रहे हैं. हालांकि, परकोटे के बाहर अधिकतर बाजारों से अब हिंदी दूर होती जा रही है. बड़े-बड़े शोरूम और ग्लो शाइन बोर्ड के जमाने में हिंदी पीछे छूट गई है. शहर का सबसे बड़ा और प्रमुख एमआई रोड इसका जीता-जागता उदाहरण है. एमआई रोड व्यापार मंडल के महामंत्री सुरेश सैनी कहते हैं कि जयपुर का इतिहास गवाह है कि यहां राजा महाराजाओं के समय से लेकर अब तक बाजारों और दुकानों में एकरूपता रही है. यहां के लोग हिंदी समझने वाले, हिंदी को महत्व देने वाले और हिंदी भाषी ही हैं. ऐसे में उनके व्यापार मंडल के व्यापारियों से यही अपील है कि वो जयपुर की विरासत को जिंदा रखें और विरासत को आगे बढ़ाए.