देहरादून: उत्तराखंड में दिनों दिन आपराधिक घटनाएं बढ़ रही हैं. आए दिन लूटकांड से लेकर महिला अपराध और दुष्कर्म की घटनाएं सामने आ रही हैं. रुद्रप्रयाग, टिहरी में दिनहदाड़े गोली चलना, पहाड़ी इलाकों में समुदाय विशेष के युवकों द्वारा महिलाओं से छेड़छाड़ के मामले, डेमोग्राफी चेंज की खबरों के बाद एक बार फिर से भू-कानून और मूल निवास 1950 की मांग ने जोर पकड़ लिया है. सोशल मीडिया पर इसे लेकर ट्रेंड चलाया रहा है. जिसके कारण उत्तराखंड में हिमाचल ट्रेंड कर रहा है. क्या है इसका कारण आइए आपको बताते हैं.
गैरसैंण में महारैली, सड़कों पर जनसैलाब: भू-कानून और मूल निवास 1950 की सालों पुरानी मांग को लेकर मूल निवास भू-कानून समन्वय संघर्ष समिति ने बीते रोज गैरसैंण में महारैली की. इस रैली में पहाड़ के युवाओं के साथ ही मातृ शक्ति ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया. इस दौरान हजारों की संख्या में गैरसैंण पहुंचे आंदोलकारियों ने रामलीला मैदान गैरसैंण से डाकबंगला रोड होते हुए मूल निवास, भू-कानून और गैरसैंण को स्थायी राजधानी बनाए जाने की मांग को लेकर जोरदार प्रदर्शन और नारेबाजी की. आंदोलनकारियों ने उत्तराखंड में सख्त भू कानून लागू करने की मांग. इसे लेकर आंदोलनकारियों ने हिमाचल का उदाहरण दिया.
पहाड़ जाग गया है ।
— Lusun Todariya (@LusunTodariyaUK) September 1, 2024
गैरसैंण में प्रदेश भर से जुटी जनता
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हिमाचल की तरह सख्त भू कानून की मांग: उत्तराखंड और हिमाचल दोनों ही देवभूमि हैं. दोनों ही राज्यों अधिकतर हिस्सा वनों के घिरा हुआ है. दोनों ही राज्य लगभग एक जैसे हैं. लेकिन दोनों राज्यों में केवल एक अंतर है और वो है भू-कानून, जिसके कारण दोनों राज्यों की स्थितियां बदली हैं. उत्तराखंड में जो आज हो रहा है उसे हिमाचल ने पहले ही पहचान लिया था. हिमाचल के पहले मुख्यमंत्री वाईएस परमार ने यहां के लिए सख्त कानून बनाए, जिसके हिमाचल की भूमि आज तक बची है.
सख्त भू कानून से सुरक्षित हिमाचल: उन्होंने हिमाचल में सशक्त भू कानून लागू किया. इस कदम के बाद हिमाचल में बाहर का कोई व्यक्ति जमीन खरीद सकता है. यदि किसी को जमीन खरीदनी हो तो उसे भू-सुधार कानून की धारा-118 के तहत सरकार से अनुमति लेनी होती है. यही कारण है कि हिमाचल में बाहरी राज्यों के धन्नासेठ या फिर प्रभावशाली लोग न के बराबर जमीन खरीद पाए हैं. यही कारण है कि आज हिमाचल में अपराध कम हैं. यहां की संस्कृति बची है. हिमाचल में पहाड़ियत बची है. हिमाचल सरकार की दूरदर्शिता के कारण ही आज हिमाचल सुरक्षित देवभूमि है.
उत्तराखंड में मूल निवास और भू कानून लागू करने के लिए आंदोलन और तेज होगा और प्रदेश भर में मूल निवास स्वाभिमान महारैली आयोजित होगी l
— मूल निवास-भू कानून समन्वय संघर्ष समिति, उत्तराखंड (@ukmoolniwas) March 13, 2024
लेकर रहेंगे मूल-निवास और भू-कानून #मूल_निवास_भू_कानून_आंदोलन pic.twitter.com/xbqXsuItsW
उत्तराखंड में लचीला भू कानून, क्राइम कैपिटल का लूपहोल: उत्तराखंड में ठीक इसके उलट है. उत्तराखंड का भू कानून बेहद लचीला है. उत्तराखंड में कोई भी कितनी भी जमीन ले सकता है. राज्य गठन के बाद निर्वाचित सरकार ने बाहरी व्यक्ति के लिए 500 वर्ग मीटर भूमि खरीद का नियम बनाया था. बाहरी तब यहां कृषि भूमि खरीद ही नहीं सकता था. साल 2018 में इन्वेस्टर्स समिट से पहले तात्कालिक मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने भू-कानून के नियमों में बड़ा बदलाव किया. उन्होंने उत्तराखंड में जमीनों के खरीदने की राह खोली.
उत्तराखंड में कमजोर भू कानून: 6 अक्टूबर 2018 त्रिवेंद्र रावत ने भू कानून को लेकर एक नया अध्यादेश 'उत्तर प्रदेश जमींदारी विनाश एवं भूमि सुधार अधिनियम, 1950 में संशोधन का विधेयक' पारित किया. जिसमें धारा 143 (क), धारा 154 (2) जोड़ी गई. जिसके चलते पहाड़ों में भूमि खरीद की अधिकतम सीमा को समाप्त कर दिया गया. इसके अलावा, उत्तराखंड के मैदानी जिलों देहरादून, हरिद्वार, उधम सिंह नगर में भूमि की चकबंदी (सीलिंग) को भी खत्म कर दिया गया. इसके बाद से ही प्रदेश में सख्त भू-कानून की मांग ने जोर पकड़ा. इसके साथ ही मूल निवास 1950 भी इससे साथ जुड़ गया है.
क्यों जरूरी है सख्त भू कानून: सख्त भू कानून की मांग पहाड़ी अस्तित्व, संस्कृति को बचाने के लिए की जा रही है. सशक्त भू कानून नहीं होने की वजह से राज्य की जमीन को राज्य से बाहर के लोग बड़े पैमाने पर खरीद रहे हैं. राज्य के संसाधन पर बाहरी लोग हावी हो रहे हैं. यहां के मूल निवासी और भूमिधर अब भूमिहीन हो रहे हैं, इसका असर पर्वतीय राज्य की संस्कृति, परंपरा, अस्मिता और पहचान पर पड़ रहा है. इसी के क्रम में मूल निवास 1950 को भी देखा जा रहा है. मूल निवास 1950 उत्तराखंडियों को रोजगार में प्राथमिकता देने का जरिया है. इसके साथ ही इसके संस्कृति का संरक्षण होगा.
सख्त भू कानून के कारण ट्रेंडिंग में हिमाचल: यही कारण है कि उत्तराखंड में हिमाचल की तरह सख्त भू-कानून की मांग हो रही है, जिससे उत्तराखंड की संस्कृति, परंपरा और अस्मिता को बचाया जा सके. इसके लिए मूल निवास भू-कानून समन्वय संघर्ष समिति लगातार कोशिशें कर रही है. प्रदेशभर में इसे लेकर स्वाभिमान रैलियां निकाली जा रही हैं. युवाओं को जागरुक किया जा रहा है. सरकार पर इसे लेकर दबाव बनाया जा रहा है. जिससे प्रदेश में सख्त भू कानून के साथ मूल निवास 1950 लागू किया जा सके.
क्या कहते हैं जानकार: उत्तराखंड राज्य के जानकार जय सिंह रावत बताते हैं कि, उत्तराखंड में भी भू कानून हिमाचल की तरह पहले ही बन जाता, लेकिन किसी भी सरकार ने इस पर गंभीरता से नहीं सोचा. उन्होंने कहा उत्तराखंड में भू-कानून सभी सरकारों को चाहिए, मगर इसके लिए कोई कदम नहीं बढ़ा रहा है. सरकारें इसे लेकर तरह तरह की दलीलें दे रही हैं. जय सिंह रावत ने कहा आज पहाड़ों की हालत क्या हो गई है? ये किसी से छुपा नहीं है. कानून व्यवस्था पूरी तरह से लचर है. हम निवेशक-निवेशक करते रहेंगे और पहाड़ खत्म होते रहेंगे. उन्होंने कहा अच्छा होगा कि भू0कानून और मूलनिवास पर सरकार एक्सपर्ट से राय लें. जिसके बाद इस दिशा में कदम आगे बढ़ाए.
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