शिमला: हिमाचल के मंडी जिले में स्थित शानन बिजली घर से पंजाब सरकार सालाना 200 करोड़ रुपए से अधिक की कमाई करती है. ब्रिटिश शासनकाल के समय का ये प्रोजेक्ट 99 साल की लीज पर था. इस महीने 2 मार्च को लीज की अवधि खत्म होने पर हिमाचल का इस पर हक बनता है, लेकिन पंजाब सरकार खजाना भरने वाली इस दुधारू गाय को आसानी से छोड़ना नहीं चाहती है. यही कारण है कि पंजाब सरकार इस मामले को फिर से सुप्रीम कोर्ट में ले गई है. उधर, हिमाचल सरकार भी अपना हक आसानी से छोडने वाली नहीं है. हिमाचल सरकार भी सुप्रीम कोर्ट में अपना पक्ष रखने की तैयारी कर रही है.
सुप्रीम कोर्ट करेगा फैसला
सुप्रीम कोर्ट में ये मामला जस्टिस अभय एस ओक और जस्टिस उज्जल भुइयां की खंडपीठ सुन रही है. फिलहाल, सर्वोच्च अदालत ने 8 अप्रैल को आगामी सुनवाई तक यथास्थिति बनाए रखने के आदेश दिए हैं. वहीं, केंद्र सरकार के उर्जा मंत्रालय ने भी 1 मार्च को लिखे पत्र में पंजाब और हिमाचल को इस परियोजना को लेकर कोई सख्त कदम न उठाने के लिए कहा है. यानी परियोजना को लेकर यथास्थिति बनाए रखने को कहा गया है. ऐसे में हिमाचल को अब सुप्रीम कोर्ट में अपना पक्ष मजबूती से रखना होगा.
पूर्व आईएएस अधिकारी और हिमाचल सरकार में वित्त सचिव रहे केआर भारती का कहना है कि कायदे से शानन परियोजना पर हिमाचल का हक है. लीज की शर्तें भी इसी तरफ इशारा करती है. ये प्रोजेक्ट हमारे प्रदेश की भूमि पर है और पंजाब पुनर्गठन एक्ट के बाद लीज की अवधि खत्म होने पर इस परियोजना पर हिमाचल का हक बनता है. आखिर क्या है शानन बिजली घर परियोजना और ब्रिटिश हुकूमत के समय क्या समझौता हुआ था ? आइये जानते हैं.
मंडी रियासत के राजा ने दी थी जमीन
देश पर ब्रिटिश शासन के दौरान मंडी रियासत के राजा जोगेंद्र सेन ने शानन बिजलीघर के लिए जमीन उपलब्ध करवाई थी. उस दौरान जो समझौता हुआ था, उसके अनुसार लीज अवधि 99 साल रखी गई थी, यानी 99 साल पूरे होने पर ये बिजलीघर उस धरती (मंडी रियासत के तहत जमीन) की सरकार को मिलना था, जहां पर ये स्थापित किया गया था. उल्लेखनीय है कि भारत की आजादी के बाद हिमाचल प्रदेश पंजाब का ही हिस्सा था. वैसे हिमाचल का गठन 15 अप्रैल 1948 को हुआ था, लेकिन पूर्ण राज्य का दर्जा 1971 में मिला था. खैर, उस समय पंजाब पुनर्गठन एक्ट के दौरान शानन बिजली घर पंजाब सरकार के स्वामित्व में ही रहा.
पंजाब पुनर्गठन एक्ट-1966 की शर्तों के अनुसार इस बिजली प्रोजेक्ट को प्रबंधन के लिए पंजाब सरकार को हस्तांतरित किया गया था. गौरतलब है कि मंडी में जोगेंद्रनगर की ऊहल नदी पर स्थापित शानन बिजली घर अंग्रेजों के शासन के दौरान वर्ष 1932 में केवल 48 मेगावाट बिजली उत्पादन की क्षमता वाला प्रोजेक्ट था. बाद में पंजाब बिजली बोर्ड ने इसकी उत्पादन क्षमता को बढ़ाया. बिजलीघर शुरू होने के पचास साल पश्चात वर्ष 1982 में शानन प्रोजेक्ट 60 मेगावाट उर्जा उत्पादन वाला हो गया. अब इसकी क्षमता पचास मेगावाट और बढ़ाई गई है, जिससे ये अब कुल 110 मेगावाट का प्रोजेक्ट है. इस कमाऊ पूत को पंजाब अपने हाथ से नहीं जाने देना चाहता है.
हिमाचल का पक्ष मजबूत
शानन बिजलीघर को लेकर यदि कानूनी पहलुओं पर गौर करें तो हिमाचल की स्थिति मजबूत है. लीज अवधि व अन्य शर्तों को तर्कों की कसौटी पर कसा जाए तो हिमाचल लाभ में है. शानन प्रोजेक्ट की धरती के मालिक हिमाचल का तर्क है कि आजादी से पहले ब्रिटिश इंडिया सरकार का उत्तराधिकार अब केंद्र सरकार का उत्तराधिकार है. इसी प्रकार, अंग्रेज सरकार के साथ समझौता करने वाले मंडी के राजा का कानूनी वारिस वाला हक हिमाचल सरकार का बनता है. हिमाचल सरकार चाहती थी कि यदि बात कानूनी लड़ाई तक पहुंचे तो पहले पंजाब सरकार सुप्रीम कोर्ट जाए. पंजाब सरकार ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया है और कहा है कि हिमाचल जबरन इस परियोजना को लेना चाहता है. अब हिमाचल के पास सुप्रीम कोर्ट में अपने पक्ष में तर्क रखने का अवसर है. राज्य सरकार ये कह सकेगी कि मालिकाना हक होने के बाद भी शानन प्रोजेक्ट उसे वापिस नहीं किया जा रहा.
उल्लेखनीय है कि लीज अवधि खत्म होने के बाद सीएम सुखविंदर सिंह सुक्खू ने कहा है कि सुप्रीम कोर्ट में मजबूती से अपना पक्ष रखा जाएगा. राज्य सरकार का मानना है कि लीज पर दी गई संपत्ति का मालिकाना हक स्थानांतरित नहीं हो सकता. ये भी ध्यान रखना जरूरी है कि पूर्व में शानन प्रोजेक्ट पंजाब बिजली बोर्ड को इसलिए ट्रांसफर हुआ था, क्योंकि वर्ष 1966 में हिमाचल में राज्य बिजली बोर्ड अस्तित्व में नहीं था. अब हिमाचल में राज्य बिजली बोर्ड है और सरकार के तर्क भी मजबूत हैं. वरिष्ठ मीडिया कर्मी नवनीत शर्मा का कहना है कि ये प्रोजेक्ट हिमाचल को ही मिलेगा, क्योंकि राज्य का कानूनी पक्ष मजबूत है.
कब और किसके बीच हुआ समझौता ?
भारत में ब्रिटिश हुकूमत के समय मार्च 1925 में तत्कालीन मंडी रियासत के राजा जोगेंद्र सेन ने ब्रिटिश हुकूमत के साथ एक समझौता किया था. ये समझौता मंडी के राजा और सेक्रेटरी ऑफ स्टेट इन इंडिया के दरम्यान हुआ था. इस समझौते में प्रोजेक्ट की लीज 99 साल थी और बाद में ये परियोजना हिमाचल को हस्तांतरित होनी थी. आंकड़ों के अनुसार शानन प्रोजेक्ट पर उस समय 2.53 करोड़ रुपए से अधिक की निर्माण लागत आई थी. वर्ष 1932 में शानन पावर हाउस बनकर तैयार हुआ था.
दिलचस्प बात है कि तब 10 मार्च 1933 को इसका उद्घाटन तत्कालीन पंजाब के विख्यात और ऐतिहासिक शहर लाहौर में हुआ था. ये प्रोजेक्ट ऊहल नदी पर बना है. इस पावर हाऊस का सपना ब्रिटिश हुकूमत के दौरान संयुक्त पंजाब के चीफ इंजीनियर कर्नल बेट्टी ने देखा था. ऐतिहासिक तथ्यों के अनुसार तत्कालीन वायसराय ने लाहौर के शालीमार रिसिविंग स्टेशन से स्विच दबाकर इस परियोजना की शुरुआत की थी.
पहले से उठती रही हिमाचल के हक की आवाज
हिमाचल प्रदेश की ओर से पंजाब पुनर्गठन एक्ट के अनुसार इस परियोजना पर दावे के मामले को केंद्र सरकार के समक्ष कई बार उठा चुका है. पूर्व सीएम शांता कुमार ने पूर्व पीएम मोरारजी देसाई को भी हिमाचल के साथ हो रहे भेदभाव से अवगत करवाया था. हिमाचल बिजली परियोजनाओं में अपने हिस्से की मांग करता रहा है. बाद में हिमाचल प्रदेश को ब्यास-सतलुज परियोजना में 15 प्रतिशत हिस्सा मिलना शुरू हुआ था. पंजाब पुनर्गठन एक्ट के अनुसार 1966 से आज तक इस परियोजना से जो भी आय पंजाब सरकार लेती रही है, वह हिमाचल को मिलनी चाहिए. पंजाब पुनर्गठन अधिनियम में लिखा है कि संयुक्त पंजाब की जो संपत्ति जिस प्रदेश में स्थित है वह उसी प्रदेश की होगी. संसद से पास किए गए इस कानून को भी लागू नहीं किया गया.