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हाईकोर्ट का हिमाचल सरकार पर गंभीर आरोप, गोविंद सागर झील में डंपिंग के दोषियों को बचा रही सरकार, 50 हजार की कॉस्ट के साथ नकारी वन विभाग की स्टेटस रिपोर्ट - Himachal High Court - HIMACHAL HIGH COURT

Himachal HC accuses Himachal Govt of protecting culprits in Govind Sagar lake dumping case: हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने हिमाचल सरकार पर गंभीर आरोप लगाए हैं. कोर्ट ने कहा गोविंद सागर झील में डंपिंग के दोषियों को सरकार बचा रही है. इसके अलावा कोर्ट ने 50 हजार की कॉस्ट के साथ वन विभाग की स्टेटस रिपोर्ट को भी नकार दिया है. पढ़िए पूरी खबर...

Himachal High Court
हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट (ETV Bharat)
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By ETV Bharat Himachal Pradesh Team

Published : Jul 25, 2024, 6:04 PM IST

शिमला: हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने राज्य सरकार पर गंभीर आरोप लगाया है. अदालत ने कहा कि प्रदेश सरकार गोविंद सागर झील में अवैध डंपिंग करवाने के दोषियों को बचा रही है. हाईकोर्ट ने कड़ा रुख अपनाते हुए इस मामले में वन विभाग की स्टेटस रिपोर्ट भी नकार दी है. यही नहीं, स्टेटस रिपोर्ट को नकारते हुए कोर्ट ने वन विभाग पर 50 हजार रुपए की कॉस्ट लगाई और ताजा स्टेट्स रिपोर्ट दायर करने के आदेश दिए.

उल्लेखनीय है कि हाई कोर्ट ने गोविंद सागर झील में अवैध डंपिंग को गंभीरता से लेते हुए दोषियों पर दंडात्मक कार्रवाई करने के आदेश जारी किए थे. अदालत ने मुख्य सचिव को कार्रवाई की निगरानी करने के आदेश देते हुए स्टेट्स रिपोर्ट भी तलब की थी. कोर्ट ने स्पष्ट किया था कि कानून का उल्लंघन कर डंपिंग करवाने वाले दोषी वन कर्मियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करते हुए इसे अंजाम तक ले जाने की जिम्मेवारी मुख्य सचिव की होगी.

मामले की सुनवाई मुख्य न्यायाधीश एमएस रामचंद्र राव व न्यायाधीश सत्येन वैद्य की खंडपीठ कर रही है. पीठ ने फोरलेन विस्थापित और प्रभावित समिति के महासचिव मदन लाल द्वारा जनहित में दायर याचिका पर ये आदेश पारित किए थे. मामले की सुनवाई के दौरान स्टेट्स रिपोर्ट का अवलोकन करने पर कोर्ट ने पाया कि सरकार ने दोषियों के खिलाफ दंडात्मक कार्यवाई न करने के पीछे के कारण बताने की बजाए केवल कुछ विभागीय कार्यवाही की बात बताई. वहीं, कोर्ट ने स्टेट्स रिपोर्ट के माध्यम से वे कारण पूछे थे जिनकी वजह से दोषियों के खिलाफ कोई दंडात्मक कार्रवाई नहीं की गई थी. कोर्ट ने स्टेट्स रिपोर्ट को अस्वीकार करते हुए कहा कि सरकार जानबूझ कर कोर्ट के प्रश्न का उत्तर न देकर दोषियों को बचाना चाहती है.

उल्लेखनीय है कि कोर्ट ने पर्यावरण की दृष्टि से इसे गंभीर मुद्दा बताया था और कहा था कि सरकार के कर्ताधर्ताओं द्वारा पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने वालों के खिलाफ कोई कार्रवाई न करने का सीधा मतलब है कि वे अपने संवैधानिक और कानूनी दायित्वों के निर्वहन करने विफल रहे. कोर्ट ने कहा था कि यह सरकार का संवैधानिक दायित्व है कि वह पर्यावरण को बचाने और सुधारने के पुरजोर प्रयास करे और देश के वन्य एवं जल प्राणियों की रक्षा करे. प्रार्थी के अनुसार नेशनल हाईवे अथॉरिटी ऑफ इंडिया ने ठेकेदार को किरतपुर-मनाली सड़क को चौड़ा करने का कार्य सौंपा है. स्थानीय लोगों के कठोर विरोध के बावजूद भी भाखड़ा बांध जलाशय में अवैध रूप से सड़क का मलबा फेंका जा रहा है. इसके बारे में स्थानीय प्रशासन और एनएचएआई को कई शिकायतें की गई हैं.

प्रार्थी के अनुसार बिलासपुर के बरमाणा और तुनहु में एम्स के पास मलबे को डंप किया जा रहा है. इसके अलावा रघुनाथपुरा-मंडी भराड़ी सड़क को चौड़ा करते समय मलबे को बिलासपुर जिले में भाखड़ा बांध के जलाशय में अवैध रूप से डंप किया जा रहा है. प्रार्थी के अनुसार अवैध डंपिंग से न केवल पर्यावरण को नुकसान हो रहा है बल्कि, झील में मछलियों की कमी भी देखी जा रही है. इसका मुख्य कारण झील में अवैध डंपिंग से गाद के स्तर में वृद्धि है. गाद की वजह से बिलासपुर जिले के सबसे बड़े जल निकाय गोविंद सागर में विभिन्न मछली प्रजातियों के प्रजनन को नुकसान पहुंचाया गया है. 51 मछली प्रजातियों जैसे कि सिल्वर कार्प, सिंहरा, महेसेर, और जीआईडी के साथ गोविंद सागर राज्य के महत्वपूर्ण मत्स्य पालन का केंद्र था. अवैध डंपिंग के कारण यहां अब मछलियों के प्रजनन में भी कमी दर्ज की गई है. हिमाचल प्रदेश रोड एंड इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट कॉरपोरेशन के ठेकेदार पर मंडवान और अन्य नालों में मलबे के ट्रक को खाली करने का आरोप लगाया गया है. प्रार्थी ने अदालत से गुहार लगाई है कि गोविंद सागर में अवैध डंपिंग पर तुरंत प्रभाव से रोक लगाई जाए और दोषी लोगों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाए.

ये भी पढ़ें: कुल्लू में सरकारी वन भूमि से तुरंत हटाए जाएं अवैध कब्जे, लापरवाही करने वाले अफसरों पर गिरेगी हाई कोर्ट की गाज

शिमला: हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने राज्य सरकार पर गंभीर आरोप लगाया है. अदालत ने कहा कि प्रदेश सरकार गोविंद सागर झील में अवैध डंपिंग करवाने के दोषियों को बचा रही है. हाईकोर्ट ने कड़ा रुख अपनाते हुए इस मामले में वन विभाग की स्टेटस रिपोर्ट भी नकार दी है. यही नहीं, स्टेटस रिपोर्ट को नकारते हुए कोर्ट ने वन विभाग पर 50 हजार रुपए की कॉस्ट लगाई और ताजा स्टेट्स रिपोर्ट दायर करने के आदेश दिए.

उल्लेखनीय है कि हाई कोर्ट ने गोविंद सागर झील में अवैध डंपिंग को गंभीरता से लेते हुए दोषियों पर दंडात्मक कार्रवाई करने के आदेश जारी किए थे. अदालत ने मुख्य सचिव को कार्रवाई की निगरानी करने के आदेश देते हुए स्टेट्स रिपोर्ट भी तलब की थी. कोर्ट ने स्पष्ट किया था कि कानून का उल्लंघन कर डंपिंग करवाने वाले दोषी वन कर्मियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करते हुए इसे अंजाम तक ले जाने की जिम्मेवारी मुख्य सचिव की होगी.

मामले की सुनवाई मुख्य न्यायाधीश एमएस रामचंद्र राव व न्यायाधीश सत्येन वैद्य की खंडपीठ कर रही है. पीठ ने फोरलेन विस्थापित और प्रभावित समिति के महासचिव मदन लाल द्वारा जनहित में दायर याचिका पर ये आदेश पारित किए थे. मामले की सुनवाई के दौरान स्टेट्स रिपोर्ट का अवलोकन करने पर कोर्ट ने पाया कि सरकार ने दोषियों के खिलाफ दंडात्मक कार्यवाई न करने के पीछे के कारण बताने की बजाए केवल कुछ विभागीय कार्यवाही की बात बताई. वहीं, कोर्ट ने स्टेट्स रिपोर्ट के माध्यम से वे कारण पूछे थे जिनकी वजह से दोषियों के खिलाफ कोई दंडात्मक कार्रवाई नहीं की गई थी. कोर्ट ने स्टेट्स रिपोर्ट को अस्वीकार करते हुए कहा कि सरकार जानबूझ कर कोर्ट के प्रश्न का उत्तर न देकर दोषियों को बचाना चाहती है.

उल्लेखनीय है कि कोर्ट ने पर्यावरण की दृष्टि से इसे गंभीर मुद्दा बताया था और कहा था कि सरकार के कर्ताधर्ताओं द्वारा पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने वालों के खिलाफ कोई कार्रवाई न करने का सीधा मतलब है कि वे अपने संवैधानिक और कानूनी दायित्वों के निर्वहन करने विफल रहे. कोर्ट ने कहा था कि यह सरकार का संवैधानिक दायित्व है कि वह पर्यावरण को बचाने और सुधारने के पुरजोर प्रयास करे और देश के वन्य एवं जल प्राणियों की रक्षा करे. प्रार्थी के अनुसार नेशनल हाईवे अथॉरिटी ऑफ इंडिया ने ठेकेदार को किरतपुर-मनाली सड़क को चौड़ा करने का कार्य सौंपा है. स्थानीय लोगों के कठोर विरोध के बावजूद भी भाखड़ा बांध जलाशय में अवैध रूप से सड़क का मलबा फेंका जा रहा है. इसके बारे में स्थानीय प्रशासन और एनएचएआई को कई शिकायतें की गई हैं.

प्रार्थी के अनुसार बिलासपुर के बरमाणा और तुनहु में एम्स के पास मलबे को डंप किया जा रहा है. इसके अलावा रघुनाथपुरा-मंडी भराड़ी सड़क को चौड़ा करते समय मलबे को बिलासपुर जिले में भाखड़ा बांध के जलाशय में अवैध रूप से डंप किया जा रहा है. प्रार्थी के अनुसार अवैध डंपिंग से न केवल पर्यावरण को नुकसान हो रहा है बल्कि, झील में मछलियों की कमी भी देखी जा रही है. इसका मुख्य कारण झील में अवैध डंपिंग से गाद के स्तर में वृद्धि है. गाद की वजह से बिलासपुर जिले के सबसे बड़े जल निकाय गोविंद सागर में विभिन्न मछली प्रजातियों के प्रजनन को नुकसान पहुंचाया गया है. 51 मछली प्रजातियों जैसे कि सिल्वर कार्प, सिंहरा, महेसेर, और जीआईडी के साथ गोविंद सागर राज्य के महत्वपूर्ण मत्स्य पालन का केंद्र था. अवैध डंपिंग के कारण यहां अब मछलियों के प्रजनन में भी कमी दर्ज की गई है. हिमाचल प्रदेश रोड एंड इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट कॉरपोरेशन के ठेकेदार पर मंडवान और अन्य नालों में मलबे के ट्रक को खाली करने का आरोप लगाया गया है. प्रार्थी ने अदालत से गुहार लगाई है कि गोविंद सागर में अवैध डंपिंग पर तुरंत प्रभाव से रोक लगाई जाए और दोषी लोगों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाए.

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