शिमला: शिक्षा विभाग में भाषा अध्यापकों की बैच वाइज भर्ती के लिए बीएड डिग्री की तारीख से बैच की गणना के नियम को सही ठहराया है. राज्य सरकार ने 31 मार्च 2014 के बाद से होने वाली बैच वाइज भर्ती के लिए बीएड के मूल प्रमाण पत्र जारी करने की तिथि से ही बैच माने जाने वाली अधिसूचना जारी की थी. यह अधिसूचना 16 नवंबर 2013 को जारी की गई थी. प्रार्थियों ने इस अधिसूचना को सरकार का मनमाना निर्णय बताते हुए हाईकोर्ट में चुनौती दी थी.
हाईकोर्ट के न्यायाधीश न्यायमूर्ति अजय मोहन गोयल ने प्रार्थियों की याचिका को खारिज करते हुए कहा कि नियमानुसार बीएड डिग्री किसी अभ्यर्थी को भाषा अध्यापक के पद पर नियुक्ति के लिए एक महत्वपूर्ण योग्यता है. ऐसे में इसे हासिल करने की तिथि से बैच के लिए गिना जाना मनमाना प्रतीत नहीं होता. कोर्ट ने कहा कि पूरी योग्यता प्राप्त करने के बाद ही उम्मीदवार को संबंधित बैच की गणना के लिए पात्र माना जा सकता है.
अदालत ने कहा कि प्रारंभिक शिक्षा में डिप्लोमा या बीएड डिग्री के बिना केवल बीए या पीजी की डिग्री किसी इच्छुक अभ्यर्थी को भाषा अध्यापक के लिए योग्य नहीं बनाती. अदालत ने ये भी कहा कि संयोग से सिर्फ बीए अथवा स्नातक की डिग्री किसी उम्मीदवार को लिपिक से लेकर आईएएस तक कई पदों के लिए योग्य बनाती है, लेकिन अकेली बीए की डिग्री उम्मीदवार को भाषा शिक्षक के पद के लिए आवेदन करने योग्य नहीं बनाती. इसके लिए उम्मीदवार के पास बीएड की डिग्री होना भी जरूरी है.
हाईकोर्ट ने कहा कि जिस संशोधन के अनुसार 31 मार्च 2014 के बाद बैचवाइज भर्ती के लिए बैच की गणना बीएड के मूल प्रमाण पत्र जारी होने की तिथि से की जाएगी, उसमें कोई गलती नजर नहीं आती है. याचिका दाखिल करने वाले प्रार्थियों का कहना था कि वे बेरोजगार हैं और भाषा शिक्षक के रूप में नियुक्त होने के लिए पूरी तरह से पात्र हैं. उनका कहना था कि वे आरएंडपी (रिक्रूटमेंट एंड प्रमोशन) नियमों के अनुसार संबंधित पद पर नियुक्ति के लिए अपेक्षित मानदंडों को पूरा करते हैं. याचिकाकर्ताओं ने हिंदी में वैकल्पिक विषय के रूप में पचास प्रतिशत से अधिक अंकों के साथ बीए किया है. उन्होंने बीएड की अनिवार्य योग्यता भी हासिल करने के साथ ही अनिवार्य शिक्षक पात्रता (टीईटी) परीक्षा भी पास की है.
याचिकाकर्ताओं की दलील
मामले में याचिकाकर्ताओं के अनुसार पहले बैचवाइज भर्ती के लिए पात्रता उस तिथि से निर्धारित की जाती थी, जब उम्मीदवारों ने बीए की योग्यता हासिल कर ली होती थी. याचिका में दलील दी गई थी कि वर्ष 2013 में संशोधन के लागू होने के बाद 31 मार्च 2014 के बाद बैचवाइज सभी भर्तियां बीएड के मूल प्रमाण पत्र जारी करने की तिथि से मानी गई.
प्रार्थियों का आरोप था कि यह कट-ऑफ डेट मनमानी है. साथ ही बीएड डिग्री के मूल प्रमाण-पत्र जारी करने की तिथि के आधार पर 31 मार्च 2014 के बाद योग्यता की गणना करने के लिए जो वर्गीकरण किया गया है, वह भारतीय संविधान के अनुच्छेद-14 का उल्लंघन है. यह वर्गीकरण न तो किसी तार्किक अंतर पर आधारित है और न ही इसका मकसद अर्थात भाषा शिक्षक के पद के विरुद्ध शिक्षकों की नियुक्ति के साथ इसका कोई संबंध है.
सरकार ने अपने आदेश का बचाव करते हुए कहा था कि वर्ष 2013 में शामिल किए गए संशोधन के अनुसार, अब पदों को स्नातक की बजाय बीएड पास करने की डेट से बैच की गणना कर भरा जाता है. यह नियम वर्ष 2013 से प्रचलन में हैं और उसके बाद बैचवाइज भर्ती इन नियमों के अनुसार ही की जा रही है. सरकार का तर्क था कि चयन का मापदंड कानूनन उचित है. क्योंकि बीए के साथ-साथ बीएड की डिग्री ही उम्मीदवार को भाषा शिक्षक की नियुक्ति के लिए योग्य बनाती है. इसलिए अधिसूचना और आदेश में कोई कमी नहीं है.
पहले योग्यता का आकलन बीए पास होने की तिथि से किया जाता था, लेकिन यह महसूस किया गया कि चूंकि बीए के साथ बीएड की डिग्री ही उम्मीदवार को भाषा शिक्षक के रूप में नियुक्ति के लिए योग्य बनाती है, इसलिए नियमों में आवश्यक संशोधन किया गया है. सरकार का कहना था कि नियोक्ता के पास आरएंडपी नियमों में आवश्यक संशोधन करने का विशेषाधिकार है. हाईकोर्ट ने भी सुनवाई के बाद इस नियम को सही ठहराया है.
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