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निजता के अधिकार पर HC: कानूनी प्रक्रिया के खिलाफ फोन टैपिंग अवैध, पत्नी व सास की फोन रिकॉर्डिंग से जुड़ा मामला

हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने फोन टैपिंग को अवैध करार दिया है. हाईकोर्ट ने निजता के अधिकार को लेकर एक महत्वपूर्ण व्यवस्था दी है.

हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट शिमला
हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट शिमला (फाइल फोटो)
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By ETV Bharat Himachal Pradesh Team

Published : Nov 5, 2024, 7:25 PM IST

शिमला: हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने साक्ष्य जुटाने के लिए कानून की तय प्रक्रिया का पालन किए बिना फोन टैपिंग को अवैध करार दिया है. हाईकोर्ट ने एक मामले में निजता के अधिकार को लेकर एक महत्वपूर्ण व्यवस्था दी है. अदालत ने कहा है कि कानून का उल्लंघन कर जुटाए गए साक्ष्य मान्य नहीं होते. ये व्यवस्था हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट के न्यायाधीश न्यायमूर्ति बिपिन चंद्र नेगी ने दी है.

न्यायमूर्ति ने अपनी व्यवस्था में कहा है कि कानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया के विपरीत टेलीफोन टैपिंग कर साक्ष्य जुटाना अवैध है. इस तरह से कानून को दरकिनार कर जुटाए गए साक्ष्य मान्य नहीं होते. ये व्यवस्था अदालत के समक्ष आए एक पारिवारिक मामले में दी गई है. इस मामले में पत्नी व उसकी मां के बीच टेलीफोन पर हुई बातचीत की रिकॉर्डिंग को अदालत के रिकॉर्ड पर लाए जाने की गुहार लगाई थी.

अपनी व्यवस्था में न्यायमूर्ति बिपिन चंद्र नेगी ने कहा है कि निजता के अधिकार को भारतीय संविधान के अनुच्छेद-21 का अभिन्न अंग माना गया है. उल्लेखनीय है कि एक पारिवारिक मामले में पत्नी और उसकी मां की आपसी बातचीत की टेलीफोन रिकॉर्डिंग को साक्ष्य के रूप में मान्यता देते हुए अदालत के रिकॉर्ड में लाने की गुहार की गई थी.

इस टेलीफोन रिकार्डिंग को साक्ष्य के तौर पर रिकॉर्ड पर लेने के लिए याचिका दाखिल कर गुहार लगाई गई थी. हाईकोर्ट ने इस याचिका को खारिज करते हुए कहा कि टेलीफोन पर बातचीत किसी व्यक्ति के निजी जीवन का एक महत्वपूर्ण पहलू है. किसी के घर अथवा कार्यालय की गोपनीयता को देखते हुए टेलीफोन पर बातचीत करने का अधिकार निश्चित रूप से गोपनीयता के अधिकार के दायरे में आता है इसलिए स्थापित प्रक्रिया का पालन कर ही वैध रूप से साक्ष्य जुटाए जा सकते हैं.

मामले के अनुसार याचिका दाखिल करने वाले प्रार्थी पति ने पारिवारिक न्यायालय में प्रतिवादी पत्नी की उसकी मां (पति की सास) के साथ रिकॉर्ड की गई बातचीत को अदालत के रिकॉर्ड में रखने की मांग की थी. ट्रायल कोर्ट ने प्रार्थी के आवेदन को खारिज कर रिकॉर्डिंग को ऑन रिकॉर्ड पर लाने की मांग खारिज कर दी थी. इन आदेशों को प्रार्थी ने हाईकोर्ट में चुनौती दी थी. हाईकोर्ट ने प्रार्थी की याचिका को खारिज करते हुए कहा कि कानून के तहत इस तरह के साक्ष्य को अवैध माना जाता है, क्योंकि यह उसकी निजता के अधिकार का उल्लंघन है.

ये भी पढ़ें: सौ करोड़ के सुपर स्पेशलिटी अस्पताल का जनता को मिले पूरा लाभ, हाई कोर्ट ने मुख्य सचिव को दिए ये निर्देश

शिमला: हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने साक्ष्य जुटाने के लिए कानून की तय प्रक्रिया का पालन किए बिना फोन टैपिंग को अवैध करार दिया है. हाईकोर्ट ने एक मामले में निजता के अधिकार को लेकर एक महत्वपूर्ण व्यवस्था दी है. अदालत ने कहा है कि कानून का उल्लंघन कर जुटाए गए साक्ष्य मान्य नहीं होते. ये व्यवस्था हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट के न्यायाधीश न्यायमूर्ति बिपिन चंद्र नेगी ने दी है.

न्यायमूर्ति ने अपनी व्यवस्था में कहा है कि कानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया के विपरीत टेलीफोन टैपिंग कर साक्ष्य जुटाना अवैध है. इस तरह से कानून को दरकिनार कर जुटाए गए साक्ष्य मान्य नहीं होते. ये व्यवस्था अदालत के समक्ष आए एक पारिवारिक मामले में दी गई है. इस मामले में पत्नी व उसकी मां के बीच टेलीफोन पर हुई बातचीत की रिकॉर्डिंग को अदालत के रिकॉर्ड पर लाए जाने की गुहार लगाई थी.

अपनी व्यवस्था में न्यायमूर्ति बिपिन चंद्र नेगी ने कहा है कि निजता के अधिकार को भारतीय संविधान के अनुच्छेद-21 का अभिन्न अंग माना गया है. उल्लेखनीय है कि एक पारिवारिक मामले में पत्नी और उसकी मां की आपसी बातचीत की टेलीफोन रिकॉर्डिंग को साक्ष्य के रूप में मान्यता देते हुए अदालत के रिकॉर्ड में लाने की गुहार की गई थी.

इस टेलीफोन रिकार्डिंग को साक्ष्य के तौर पर रिकॉर्ड पर लेने के लिए याचिका दाखिल कर गुहार लगाई गई थी. हाईकोर्ट ने इस याचिका को खारिज करते हुए कहा कि टेलीफोन पर बातचीत किसी व्यक्ति के निजी जीवन का एक महत्वपूर्ण पहलू है. किसी के घर अथवा कार्यालय की गोपनीयता को देखते हुए टेलीफोन पर बातचीत करने का अधिकार निश्चित रूप से गोपनीयता के अधिकार के दायरे में आता है इसलिए स्थापित प्रक्रिया का पालन कर ही वैध रूप से साक्ष्य जुटाए जा सकते हैं.

मामले के अनुसार याचिका दाखिल करने वाले प्रार्थी पति ने पारिवारिक न्यायालय में प्रतिवादी पत्नी की उसकी मां (पति की सास) के साथ रिकॉर्ड की गई बातचीत को अदालत के रिकॉर्ड में रखने की मांग की थी. ट्रायल कोर्ट ने प्रार्थी के आवेदन को खारिज कर रिकॉर्डिंग को ऑन रिकॉर्ड पर लाने की मांग खारिज कर दी थी. इन आदेशों को प्रार्थी ने हाईकोर्ट में चुनौती दी थी. हाईकोर्ट ने प्रार्थी की याचिका को खारिज करते हुए कहा कि कानून के तहत इस तरह के साक्ष्य को अवैध माना जाता है, क्योंकि यह उसकी निजता के अधिकार का उल्लंघन है.

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