शिमला: हिमाचल प्रदेश में शिमला के समीप छराबड़ा के विश्वविख्यात फाइव स्टार होटल वाइल्ड फ्लावर हॉल की ओनरशिप छोड़ने से राज्य सरकार ने साफ इनकार कर दिया है. राज्य सरकार ने हाईकोर्ट में कहा कि उसे इस बारे में ईस्ट इंडिया होटल्स (ईआईएच) और एमआर कंपनी के प्रस्ताव से सहमत नहीं है और उसे ये प्रस्ताव मंजूर नहीं है. इसके साथ ही सरकार ने होटल की ओनरशिप को ईआईएच व एमआर कंपनी को सौंपने से इनकार कर दिया. हाईकोर्ट में अब मामले की सुनवाई पहली मार्च को होगी.
हाईकोर्ट की न्यायाधीश न्यायमूर्ति ज्योत्सना रिवाल दुआ ने सरकार की तरफ से दिए गए वक्तव्य के बाद पहली मार्च को सुनवाई निर्धारित करते हुए कहा कि उस दिन मामले पर सुनवाई पूरी करनी होगी. उल्लेखनीय है कि हाईकोर्ट ने इस मामले में वाइल्ड फ्लावर हॉल होटल का कब्जा राज्य सरकार को सौंपने के आदेश जारी किए थे. अदालत ने इस संबंध में वित्तीय मामले निपटाने के लिए सरकार व कंपनी यानी दोनों पक्षों को एक नामी चार्टेड अकाउंटेंट नियुक्त करने के आदेश भी दिए थे.
सरकार के आवेदन का निपटारा करते हुए अदालत ने कहा था कि होटल के संचालन से जुड़ा ओबेरॉय ग्रुप आर्बिट्रेशन अवार्ड की अनुपालना तीन माह की तय समय सीमा के भीतर करने में असफल रहा. इसलिए हिमाचल सरकार होटल का कब्जा और प्रबंधन अपने हाथों में लेने के लिए पात्र हो गई है. पूर्व में अक्टूबर 2024 में सुनवाई के दौरान ईआईएच व एमआर कंपनी ने हाईकोर्ट में कहा था कि वो राज्य सरकार के समक्ष एक प्रस्ताव रखना चाहती है. उसी प्रस्ताव को अब राज्य सरकार ने नामंजूर कर दिया है.
क्या है पूरा मामला
इस बहुचर्चित होटल से जुड़े मामले की चर्चा देश भर में हुई थी. मामले के अनुसार शिमला के समीप छराबड़ा में स्थित होटल वाइल्ड फ्लावर हॉल में वर्ष 1993 में आग लग गई थी. इसे फिर से फाइव स्टार होटल के रूप में विकसित करने के लिए ग्लोबल टेंडर आमंत्रित किए गए थे. निविदा के तहत ईस्ट इंडिया होटल्स लिमिटेड ने भी भाग लिया. फिर हिमाचल सरकार ने ईस्ट इंडिया होटल्स के साथ साझेदारी में कार्य करने का फैसला लिया था. संयुक्त उपक्रम के तहत जॉइंट कंपनी मशोबरा रिजॉर्ट लिमिटेड के नाम से बनाई गई. करार के अनुसार कंपनी को चार साल के भीतर पांच सितारा होटल का निर्माण करना था. ऐसा न करने पर कंपनी को 2 करोड़ रुपए जुर्माना प्रतिवर्ष राज्य सरकार को अदा करना था.
फिर वर्ष 1996 में सरकार ने कंपनी के नाम जमीन को ट्रांसफर कर दिया. इसके बाद छह साल बीत जाने पर भी कंपनी पूरी तरह होटल को संचालन के लिए उपयोग लायक नहीं बना पाई. इस पर साल 2002 में हिमाचल सरकार ने कंपनी के साथ किए गए करार को रद्द कर दिया. सरकार के इस निर्णय को कंपनी लॉ बोर्ड के समक्ष चुनौती दी गई. बोर्ड ने कंपनी के पक्ष में फैसला सुनाया था. सरकार ने इस निर्णय को हाईकोर्ट की एकल पीठ के समक्ष चुनौती दी थी. हाईकोर्ट ने मामले को निपटारे के लिए आर्बिट्रेटर के पास भेजा. आर्बिट्रेटर ने वर्ष 2005 में कंपनी के साथ करार रद्द किए जाने के सरकार के फैसले को सही ठहराते हुए संपत्ति वापस लेने का हकदार बताया.
इसके बाद एकल पीठ के निर्णय को कंपनी ने खंडपीठ के सामने चुनौती दी. खंडपीठ ने कंपनी की अपील को खारिज करते हुए अपने निर्णय में कहा था कि मध्यस्थ की ओर से दिया गया फैसला सही और तर्कसंगत है. कंपनी के पास यह अधिकार बिल्कुल नहीं कि करार में जो फायदे की शर्तें थीं, उन्हें मंजूर करे और जिससे नुकसान हो रहा हो, उसे नजरअंदाज करें. बाद में राज्य सरकार ने होटल का स्वामित्व अपने पास रखने का फैसला लिया था. हाईकोर्ट ने दोनों पक्षों को एक बार फिर से सहमति बनाने के लिए कहा था. अब राज्य सरकार ने होटल की ओनरशिप छोड़ने से इनकार कर दिया है. मामले में अंतिम फैसला पहली मार्च की सुनवाई में किया जाएगा.
अक्टूबर 2022 में हुई थी अहम डवलपमेंट
हिमाचल हाईकोर्ट ने 13 अक्टूबर 2022 को वाइल्ड फ्लावर होटल की संपत्ति को लेकर ईस्ट इंडिया होटल्स (ईआईएच) की तरफ से दाखिल अपील को खारिज कर दिया था. उस समय हाईकोर्ट के न्यायाधीश न्यायमूर्ति तरलोक सिंह चौहान व न्यायमूर्ति सीबी बारोवालिया की डिवीजन बैंच ने 13 अक्टूबर 2022 को ये फैसला दिया था. पूर्व में कांग्रेस सरकार के समय में जब वर्ष 1995 में वाइल्ड फ्लावर हॉल को बनाया गया था, तब जमीन की कीमत 7 करोड़ रुपए तय की गई थी. उस दौरान पूरा प्रोजेक्ट चालीस करोड़ रुपए का था. कंपनी ने चालाकी की और प्रोजेक्ट कॉस्ट बढ़ा दी, लेकिन लैंड वैल्यू नहीं बढ़ाई.
यहां होटल वाली लैंड राज्य सरकार की है. फिर राज्य सरकार को 1995 से इक्विटी के रूप में सालाना एक करोड़ रुपए मिलना तय हुआ था, लेकिन हाईकोर्ट में केस की जल्द सुनवाई नहीं होने से हिमाचल को 29 करोड़ से अधिक की इक्विटी का नुकसान हो चुका है. फिलहाल, अब राज्य सरकार ने होटल की ओनरशिप अपने ही पास रखने का फैसला लिया है.
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