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मकान मालिक-किराएदार विवाद में हाईकोर्ट का बड़ा फैसला, जानिए - HIGH COURT ALLAHABAD

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सुनाया महत्वपूर्ण फैसला. कहा, मकान मालिक अपनी वास्तविक आवश्यकता का निर्णायक होता है.

high court allahabad tenant cannot interfere landlord needs decisions status latest order.
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सुनाया महत्वपूर्ण फैसला. (photo credit: etv bharat archive)
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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : 2 hours ago

प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसला दिया है कि मकान मालिक अपनी वास्तविक आवश्यकता का निर्णायक होता है. किरायेदार यह तय नहीं कर सकते कि मकान मालिक अपनी संपत्ति का उपयोग कैसे करे. कोर्ट ने इस बात पर जोर दिया कि वास्तविक आवश्यकता सिद्ध होने पर मकान मालिक की संपत्ति पर उनका अधिकार सर्वोपरि है. मामला एक दुकान का है, जिस पर किरायेदार याची श्याम सुंदर अग्रवाल का कब्जा था. उन्होंने मकान मालिक गीता देवी और उनके परिवार द्वारा दायर बेदखली प्रार्थना पत्र को चुनौती दी थी. मकान मालिक ने इस दुकान को अपने बेटों के लिए स्वतंत्र व्यवसाय स्थापित करने के लिए खाली कराने की मांग की थी क्योंकि परिवार के मुखिया के निधन के बाद उनके जीवन-यापन का साधन सीमित हो गया था.

किरायेदार के अधिवक्ता ने तर्क दिया कि मकान मालिक के पास पहले से एक अन्य दुकान है और वे वहां संयुक्त व्यवसाय जारी रख सकते हैं. उन्होंने दावा किया कि मकान मालिक की वास्तविक आवश्यकता का तर्क टिकाऊ नहीं है और मकान मालिक पर्याप्त वैकल्पिक व्यवस्था होने के बावजूद किरायेदार को बेदखल करना चाह रहे हैं.

मकान मालिकों की ओर से अधिवक्ता शाश्वत आनंद ने तर्क दिया कि दुकान की आवश्यकता उनके बेरोजगार बेटों के लिए स्वतंत्र व्यवसाय स्थापित करने के लिए वास्तविक और आवश्यक है. उन्होंने कहा कि परिवार के मुखिया के निधन के बाद परिस्थितियां बदल गई हैं और बेटों के जीवन-यापन के लिए संपत्ति का उपयोग करना अनिवार्य हो गया है. कोर्ट ने किरायेदार के तर्कों को खारिज करते हुए कहा कि मकान मालिक अपनी संपत्ति की आवश्यकता का अंतिम निर्णायक होता है.

कोर्ट ने शिव सरूप गुप्ता बनाम डॉ. महेश चंद्र गुप्ता के मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला देते हुए कहा कि यह स्थापित कानूनी स्थिति है कि मकान मालिक हमेशा अपनी आवश्यकता का निर्णायक होता है और किरायेदार यह तय नहीं कर सकता कि संपत्ति का उपयोग कैसे किया जाए. कोर्ट ने कहा कि मकान मालिक द्वारा अपने बेटों के लिए स्वतंत्र व्यवसायिक स्थान प्रदान करने का निर्णय वास्तविक और उचित है। किरायेदार का यह सुझाव कि मकान मालिक संयुक्त व्यवसाय जारी रख सकता है, न केवल अप्रासंगिक है बल्कि ऐसा सुझाव देने का अधिकार भी किरायेदार को नहीं है.


प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसला दिया है कि मकान मालिक अपनी वास्तविक आवश्यकता का निर्णायक होता है. किरायेदार यह तय नहीं कर सकते कि मकान मालिक अपनी संपत्ति का उपयोग कैसे करे. कोर्ट ने इस बात पर जोर दिया कि वास्तविक आवश्यकता सिद्ध होने पर मकान मालिक की संपत्ति पर उनका अधिकार सर्वोपरि है. मामला एक दुकान का है, जिस पर किरायेदार याची श्याम सुंदर अग्रवाल का कब्जा था. उन्होंने मकान मालिक गीता देवी और उनके परिवार द्वारा दायर बेदखली प्रार्थना पत्र को चुनौती दी थी. मकान मालिक ने इस दुकान को अपने बेटों के लिए स्वतंत्र व्यवसाय स्थापित करने के लिए खाली कराने की मांग की थी क्योंकि परिवार के मुखिया के निधन के बाद उनके जीवन-यापन का साधन सीमित हो गया था.

किरायेदार के अधिवक्ता ने तर्क दिया कि मकान मालिक के पास पहले से एक अन्य दुकान है और वे वहां संयुक्त व्यवसाय जारी रख सकते हैं. उन्होंने दावा किया कि मकान मालिक की वास्तविक आवश्यकता का तर्क टिकाऊ नहीं है और मकान मालिक पर्याप्त वैकल्पिक व्यवस्था होने के बावजूद किरायेदार को बेदखल करना चाह रहे हैं.

मकान मालिकों की ओर से अधिवक्ता शाश्वत आनंद ने तर्क दिया कि दुकान की आवश्यकता उनके बेरोजगार बेटों के लिए स्वतंत्र व्यवसाय स्थापित करने के लिए वास्तविक और आवश्यक है. उन्होंने कहा कि परिवार के मुखिया के निधन के बाद परिस्थितियां बदल गई हैं और बेटों के जीवन-यापन के लिए संपत्ति का उपयोग करना अनिवार्य हो गया है. कोर्ट ने किरायेदार के तर्कों को खारिज करते हुए कहा कि मकान मालिक अपनी संपत्ति की आवश्यकता का अंतिम निर्णायक होता है.

कोर्ट ने शिव सरूप गुप्ता बनाम डॉ. महेश चंद्र गुप्ता के मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला देते हुए कहा कि यह स्थापित कानूनी स्थिति है कि मकान मालिक हमेशा अपनी आवश्यकता का निर्णायक होता है और किरायेदार यह तय नहीं कर सकता कि संपत्ति का उपयोग कैसे किया जाए. कोर्ट ने कहा कि मकान मालिक द्वारा अपने बेटों के लिए स्वतंत्र व्यवसायिक स्थान प्रदान करने का निर्णय वास्तविक और उचित है। किरायेदार का यह सुझाव कि मकान मालिक संयुक्त व्यवसाय जारी रख सकता है, न केवल अप्रासंगिक है बल्कि ऐसा सुझाव देने का अधिकार भी किरायेदार को नहीं है.




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