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हाईकोर्ट ने 17 साल जेल में बिताने वाले आरोपी को उम्रकैद की सजा से किया बरी

कन्नौज में हुई हत्या का का था आरोपी, दो की हत्या हुई, प्राथमिकी सिर्फ एक दर्ज, हाईकोर्ट ने अभियुक्त को दिया संदेह का लाभ

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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : 3 hours ago

इलाहाबाद हाईकोर्ट
इलाहाबाद हाईकोर्ट (Etv Bharat)

प्रयागराजः 17 साल जेल में बिता चुके अभियुक्त को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने संदेह का लाभ देते हुए बरी कर दिया है. कोर्ट ने कहा कि ट्रायल कोर्ट के फैसले में कई विसंगतियां हैं, जिससे पूरी जांच संदिग्ध हो जाती है. इसलिए अभियुक्त संदेह का लाभ पाने का हकदार है. अभियुक्त महफूज की सजा के खिलाफ़ अपील पर न्यायमूर्ति अरविंद सिंह सांगवान और न्यायमूर्ति मोहम्मद अजहर हुसैन इदरीसी की पीठ ने यह आदेश दिया.


कन्नौज के कोतवाली में महफूज़ और मुद्दू पर दिनेश की हत्या का मुकदमा दर्ज कराया गया था. आरोप लगाया कि 19 अक्तूबर 2006 को दिनेश अपने भाई के साथ मछली बेचकर घर लौट रहा था. इसी दौरान महफूज और मुद्दू ने दिनेश को को रास्ते में रोक लिया और पैसे मांगे. जब दिनेश ने पैसे देने से इन्कार कर दिया तो मुद्दू ने उसे पकड़ लिया और महफूज ने पिस्तौल से गोली मार दी. जिससे दिनेश की मौत हो गई. दिनेश के भाई (शिकायतकर्ता) ने पूरी घटना खुद देखने का दावा किया था.

यह भी आरोप लगाया कि ग्रामीण घटनास्थल पर एकत्र हुए और मुद्दू को पकड़ने की कोशिश की, जिसे मामूली चोटें आईं थी, लेकिन वह अपनी बंदूक लहराते हुए भागने में सफल रहा. बाद में मुद्दू की मौत हो गई. इस घटना में दिनेश की मौत पर मुकदमा दर्ज किया गया, लेकिन मुद्दू की मौत पर कोई मुकदमा पुलिस ने दर्ज नहीं किया. ट्रायल कोर्ट ने मामले की सुनवाई करते हुए मई 2013 में दिनेश की हत्या में महफूज को दोषी ठहराते हुए आजीवन कारावास की सजा सुनाई. महफूज ने इसे हाईकोर्ट में चुनौती दी.

याची के वकील ने कोर्ट में दलील दी कि इस मामले में दिनेश और मुद्दू की मौतें हुई थी. इसके बावजूद सिर्फ दिनेश की हत्या के लिए एफआईआर दर्ज की गई थी. पुलिस ने ​शिकायतकर्ता व प्रत्यक्षदर्शी को बचाने के लिए एफआईआर दर्ज नहीं की थी. यह भी कहा कि दोनों गवाहों के बयानों में विरोधाभास थे.

कोर्ट ने पक्षकारों के वकील को सुनने और साक्ष्य का अवलोकन करने के बाद कहा कि गवाओं के बयानों में विरोधभास है. अभियोजन पक्ष यह स्पष्ट करने में विफल रहा कि अपीलकर्ता के भाई मुद्दू की हत्या के संबंध में कोई एफआईआर क्यों दर्ज नहीं की गई. अपीलकर्ता को घटना के एक साल बाद गिरफ्तार किया गया. उसके पास से कोई हथियार बरामद नहीं हुआ. पुलिस ने घटनास्थल पर कोई खाली कारतूस बरामद नहीं किया.


कोर्ट ने कहा कि पोस्टमार्टम करने वाले डॉ. नरेन्द्र कुमार ने कहा कि उन्होंने पहले मुद्दू का और फिर दिनेश का पोस्टमार्टम किया. इससे संदेह पैदा होता है कि दिनेश की हत्या से पहले मुद्दू की हत्या की गई थी. घटनास्थल पर भीड़ ने मुद्दू की पीट-पीटकर हत्या कर दी. इसके बाद भी कोई एफआईआर या जांच न होने से यह स्पष्ट है कि पुलिस ने उचित जांच नहीं की. इसलिए अपीलकर्ता को संदेह का लाभ दिया जाना चाहिए. न्यायालय ने अपील को स्वीकार करते हुए दोषसिद्धि और सजा के आदेश को रद्द कर दिया.

इसे भी पढ़ें-प्रेशर मशीन से प्राइवेट पार्ट में हवा भरकर किशोर को मार डाला, 3 साल बाद आरोपी को 10 साल की सजा

प्रयागराजः 17 साल जेल में बिता चुके अभियुक्त को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने संदेह का लाभ देते हुए बरी कर दिया है. कोर्ट ने कहा कि ट्रायल कोर्ट के फैसले में कई विसंगतियां हैं, जिससे पूरी जांच संदिग्ध हो जाती है. इसलिए अभियुक्त संदेह का लाभ पाने का हकदार है. अभियुक्त महफूज की सजा के खिलाफ़ अपील पर न्यायमूर्ति अरविंद सिंह सांगवान और न्यायमूर्ति मोहम्मद अजहर हुसैन इदरीसी की पीठ ने यह आदेश दिया.


कन्नौज के कोतवाली में महफूज़ और मुद्दू पर दिनेश की हत्या का मुकदमा दर्ज कराया गया था. आरोप लगाया कि 19 अक्तूबर 2006 को दिनेश अपने भाई के साथ मछली बेचकर घर लौट रहा था. इसी दौरान महफूज और मुद्दू ने दिनेश को को रास्ते में रोक लिया और पैसे मांगे. जब दिनेश ने पैसे देने से इन्कार कर दिया तो मुद्दू ने उसे पकड़ लिया और महफूज ने पिस्तौल से गोली मार दी. जिससे दिनेश की मौत हो गई. दिनेश के भाई (शिकायतकर्ता) ने पूरी घटना खुद देखने का दावा किया था.

यह भी आरोप लगाया कि ग्रामीण घटनास्थल पर एकत्र हुए और मुद्दू को पकड़ने की कोशिश की, जिसे मामूली चोटें आईं थी, लेकिन वह अपनी बंदूक लहराते हुए भागने में सफल रहा. बाद में मुद्दू की मौत हो गई. इस घटना में दिनेश की मौत पर मुकदमा दर्ज किया गया, लेकिन मुद्दू की मौत पर कोई मुकदमा पुलिस ने दर्ज नहीं किया. ट्रायल कोर्ट ने मामले की सुनवाई करते हुए मई 2013 में दिनेश की हत्या में महफूज को दोषी ठहराते हुए आजीवन कारावास की सजा सुनाई. महफूज ने इसे हाईकोर्ट में चुनौती दी.

याची के वकील ने कोर्ट में दलील दी कि इस मामले में दिनेश और मुद्दू की मौतें हुई थी. इसके बावजूद सिर्फ दिनेश की हत्या के लिए एफआईआर दर्ज की गई थी. पुलिस ने ​शिकायतकर्ता व प्रत्यक्षदर्शी को बचाने के लिए एफआईआर दर्ज नहीं की थी. यह भी कहा कि दोनों गवाहों के बयानों में विरोधाभास थे.

कोर्ट ने पक्षकारों के वकील को सुनने और साक्ष्य का अवलोकन करने के बाद कहा कि गवाओं के बयानों में विरोधभास है. अभियोजन पक्ष यह स्पष्ट करने में विफल रहा कि अपीलकर्ता के भाई मुद्दू की हत्या के संबंध में कोई एफआईआर क्यों दर्ज नहीं की गई. अपीलकर्ता को घटना के एक साल बाद गिरफ्तार किया गया. उसके पास से कोई हथियार बरामद नहीं हुआ. पुलिस ने घटनास्थल पर कोई खाली कारतूस बरामद नहीं किया.


कोर्ट ने कहा कि पोस्टमार्टम करने वाले डॉ. नरेन्द्र कुमार ने कहा कि उन्होंने पहले मुद्दू का और फिर दिनेश का पोस्टमार्टम किया. इससे संदेह पैदा होता है कि दिनेश की हत्या से पहले मुद्दू की हत्या की गई थी. घटनास्थल पर भीड़ ने मुद्दू की पीट-पीटकर हत्या कर दी. इसके बाद भी कोई एफआईआर या जांच न होने से यह स्पष्ट है कि पुलिस ने उचित जांच नहीं की. इसलिए अपीलकर्ता को संदेह का लाभ दिया जाना चाहिए. न्यायालय ने अपील को स्वीकार करते हुए दोषसिद्धि और सजा के आदेश को रद्द कर दिया.

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