रांचीः हेमंत सोरेन के नेतृत्व में राज्य में लगातार दूसरी बार इंडिया गठबंधन की सरकार बनी है. विधानसभा चुनाव में भारी जीत के बाद सत्तारुढ़ दल का मनोबल काफी ऊंचा है. जाहिर तौर पर राज्य की जनता को उम्मीद है कि प्रदेश में तेजी से विकास का काम होगा. जनता की आकांक्षाओं को पुरा करने एक बार फिर राज्य की बागडोर संभालने आए मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के लिए कई चुनौतियां सामने खड़ी हैं, जिसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है.
जाने माने सामाजिक कार्यकर्ता बलराम ने ईटीवी भारत से बात करते हुए कहा कि हेमंत सरकार के लिए वित्तीय प्रबंधन के साथ-साथ जनता से किए वादों को पहले दिन से पूरा करना बड़ी चुनौती होगी. इसके अलावे शिक्षा, स्वास्थ्य, पेयजल जैसी बुनियादी सुविधा के साथ साथ गठबंधन सरकार में सभी को लेकर चलना चुनौती भरा काम होगा. आइये जानते हैं हेमंत सरकार की वो पांच चुनौती जिसे नजरअंदाज करना महंगा साबित होगा.
हेमंत सरकार के लिए सबसे पहली और महत्वपूर्ण चुनौती वित्तीय प्रबंधन है, जिसे पूरा करने के लिए सरकार को गंभीरता से प्रयास करना होगा. पिछले दिनों संचालित योजनाओं के कारण राज्य सरकार के खजाने पर हजारों करोड़ के वित्तीय भार को पाटने के लिए राजस्व संग्रह बढ़ाना होगा. आर्थिक सामाजिक मामलों के जानकार बलराम का मानना है कि सरकार को बिना जनता पर बोझ दिए राजस्व संग्रह को बढ़ाने के लिए गंभीरता से प्रयास करना होगा, जो बड़ी चुनौती होगी.
चुनौती नंबर दो- वादों को पूरा करना
चुनाव के दौरान या उससे पहले जनता से किए गए वादों और घोषणाओं को पूरा करना बड़ी चुनौती होगी. इस सरकार को पहले दिन से ही इसके लिए प्रयास करने होंगे. मंईयां सम्मान योजना हो या 450 रुपया में सिलिंडर या सर्वजन पेंशन के तहत 2500 रुपया देने की घोषणा, सरकार के लिए इसे नियमित बनाए रखना चुनौती पूर्ण होगा. आर्थिक- सामाजिक मामलों के जानकार बलराम कहते हैं कि आमतौर पर चुनावी घोषणा को कार्यकाल समाप्त होने के समय सरकार के द्वारा शुरू किया जाता है, जो कहीं ना कहीं परेशानी का सबब बन जाता है. इस सरकार को पहले दिन से ही अपनी घोषणा को पूरा करने की पहल करनी होगी तभी जनता का विश्वास बना रहेगा.
चुनौती नंबर तीन- पेसा सहित कई पॉलिसी को जमीन पर उतारना
हेमंत सोरेन सरकार के लिए पेसा सहित कई पॉलिसी को जमीन पर उतारना बेहद ही चुनौतीपूर्ण होगा. राज्य में पेसा कानून कागज पर है, जिसे अमल में लाने की मांग लगातार होती रही है. इसी तरह स्थानीयता का मुद्दा विवादों में रहा है, जिसे अमल में लाना कठिन चुनौती है. ओबीसी आरक्षण का दायरा बढ़ाने को लेकर पिछले बार किए गए प्रयास कामयाब नहीं होने के बाद एक बार फिर पुर्नविचार कर इसे नियमसंगत बनाना कठिन चुनौती होगी.
चुनौती नंबर चार- शिक्षा स्तर और कृषि उत्पादन
उद्योग धंधों के विकास के साथ-साथ हेमंत सरकार के लिए राज्य में शिक्षा का स्तर बढ़ाना बेहद ही चुनौतीपूर्ण होगा. राज्य में हाल के वर्षों में उच्च शिक्षा पर भले ही जोर दिया गया हो, मगर प्रारंभिक शिक्षा काफी कमजोर स्थिति में है. ऐसे में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रारंभ से ही बच्चों को मिले और कुपोषण मुक्त झारखंड रहे, इसके लिए गंभीरता से काम करना होगा.
शिक्षा के बाद सबसे महत्वपूर्ण कृषि उत्पादन सरकार के लिए चुनौती भरा रहेगा. कृषि ऋण माफी के बाद किसानों को राहत जरूर मिली है. मगर खेतों तक सिंचाई की समुचित व्यवस्था उपलब्ध हो इसके लिए सरकार को प्रयास करना होगा. समय पर बीज और खाद की उपलब्धता किसानों तक पहुंचे, इसके लिए सरकार को गंभीर होना पड़ेगा. इसके अलावे सभी तक स्वास्थ्य सुविधा पहुंचाना सरकार के लिए कठिन चुनौती होगी. क्योंकि आज भी यह देखा जाता है कि शहर की तुलना में ग्रामीण क्षेत्र में चिकित्सकों की भारी कमी है, जिस वजह से लोगों को भारी कठिनाई का सामना करना पड़ता है.
चुनौती नंबर पांच- गठबंधन में समन्वय
सरकार के कामकाज के साथ- साथ हेमंत सरकार के लिए पांचवां और अंतिम चुनौती गठबंधन में समन्वय बनाकर राजकाज चलाना है. हालांकि पिछली सरकार की तुलना में इस बार गठबंधन के अंदर झारखंड मुक्ति मोर्चा के सीटों की संख्या अधिक है. इसके बावजूद प्रदेश स्तर पर इंडिया गठबंधन के मुखिया होने के नाते मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को बड़ी जिम्मेदारी होगी, अपने सहयोगी दलों के साथ समन्वय बनाकर रखना. सामाजिक कार्यकर्ता बलराम कहते हैं कि इस बार सहयोगी दलों के बीच समन्वय बनाने में कोई खास कठिनाई नहीं होगी. क्योंकि हेमंत सोरेन की पार्टी जेएमएम खुद मजबूत स्थिति में है. आम तौर पर मुख्यमंत्री से नहीं मिलने देने और सरकार के कामकाज को लेकर शिकायत होती है, जिसे दूर करने के लिए कमेटी बनाई जा सकती है.
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