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टेरर फंडिंग केस में यासिन मलिक को फांसी की सजा की मांग पर सुनवाई टली, जानिए कब होगी सुनवाई ?

Yasin Malik death sentence hearing: यासिन मलिक को हत्या और टेरर फंडिंग के मामले में दोषी करार दिए गए उसे मौत की सजा की मांग को लेकर बुधवार को होने वाली सुनवाई टाल दी गई है.जानिए क्यों और कब होगी अब अगली सुनवाई.

यासिन मलिक को फांसी की सजा की मांग पर सुनवाई टली
यासिन मलिक को फांसी की सजा की मांग पर सुनवाई टली
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By ETV Bharat Delhi Team

Published : Feb 14, 2024, 2:31 PM IST

नई दिल्ली: दिल्ली हाईकोर्ट ने नेशनल इंवेस्टिगेशन एजेंसी (एनआईए) की मांग पर हत्या और टेरर फंडिंग के मामले में दोषी करार दिए गए यासिन मलिक को फांसी की सजा पर फिलहाल सुनवाई टाल दी है. हाईकोर्ट ने इस याचिका पर अगली सुनवाई मई में करने का आदेश दिया है. दरअसल, इस मामले की सुनवाई करने वाली बेंच बुधवार को सुनवाई के लिए उपलब्ध नहीं थी. जिसकी वजह से यह सुनवाई टल गई है. हाईकोर्ट ने एनआईए की याचिका पर सुनवाई करते हुए 29 मई 2023 को यासिन मलिक को नोटिस जारी किया था. सुनवाई के दौरान एनआईए की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा था कि ट्रायल कोर्ट ने यासिन मलिक के ऊपर लगे आरोपों को सही पाया था.

मेहता ने कहा कि भारतीय दंड संहिता की धारा 121 के तहत भारत सरकार के खिलाफ युद्ध छेड़ने के मामले में मौत की सजा का प्रावधान है, ऐसे अपराधी को मौत की सजा मिलनी चाहिए. मेहता ने कहा था कि यासिन मलिक वायुसेना के चार जवानों की हत्या में शामिल रहा. उसके सहयोगियों ने तत्कालीन गृह मंत्री की बेटी रुबिया सईद का अपहरण किया. उसके बाद उसके अपहरणकर्ताओं को छोड़ा गया, जिन्होंने बाद में मुंबई बम ब्लास्ट को अंजाम दिया गया.

हाईकोर्ट ने मेहता से पूछा कि आप जवानों को मारने की बात कह रहे हैं. कोर्ट ने कहा कि ट्रायल कोर्ट के आदेश में 4 वायु सेना के अधिकारियों की हत्या का जिक्र कहां है. इस आदेश मे तो पत्थरबाजी में शमिल होने की बात कही गई है. मेहता ने अपना पक्ष रखते हुए कहा था कि चार वायु सेना के अधिकारियों की हत्या का मामला फैसले की कॉपी में नहीं है. बता दें कि 25 मई 2022 को पटियाला हाउस कोर्ट ने हत्या और टेरर फंडिंग के मामले में दोषी करार दिए गए यासिन मलिक को उम्रकैद की सजा सुनाई थी.

पटियाला हाउस कोर्ट ने यासिन मलिक पर यूएपीए की धारा 17 के तहत उम्रकैद और दस लाख रुपये का जुर्माना, धारा 18 के तहत दस साल की कैद और दस हजार रुपये का जुर्माना, धारा 20 के तहत दस वर्ष की सजा और 10 हजार रुपये का जुर्माना, धारा 38 और 39 के तहत पांच साल की सजा और पांच हजार रुपये का जुर्माना लगाया था. कोर्ट ने यासिन मलिक पर भारतीय दंड संहिता की धारा 120बी के तहत दस वर्ष की सजा और दस हजार रुपये का जुर्माना, धारा 121ए के तहत दस साल की सजा और दस हजार रुपये का जुर्माना लगाया था.

कोर्ट ने कहा था कि यासिन मलिक को मिली ये सभी सजाएं साथ-साथ चलेंगी. इसका मतलब की अधिकतम उम्रकैद की सजा और दस लाख रुपये की सजा प्रभावी होगी. 10 मई 2022 को यासिन मलिक ने अपना गुनाह कबूल कर लिया था. 16 मार्च 2022 को कोर्ट ने हाफिज सईद , सैयद सलाहुद्दीन, यासिन मलिक, शब्बीर शाह और मसरत आलम, राशिद इंजीनियर, जहूर अहमद वताली, बिट्टा कराटे, आफताफ अहमद शाह, अवतार अहम शाह, नईम खान, बशीर अहमद बट्ट ऊर्फ पीर सैफुल्ला समेत दूसरे आरोपियों के खिलाफ आरोप तय करने का आदेश दिया था.

एनआईए के मुताबिक, पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई के सहयोग से लश्कर-ए-तैयबा, हिजबुल मुजाहिद्दीन, जेकेएलएफ, जैश-ए-मोहम्मद जैसे संगठनों ने जम्मू-कश्मीर में आम नागरिकों और सुरक्षा बलों पर हमले और हिंसा को अंजाम दिया. 1993 में अलगवावादी गतिविधियों को अंजाम देने के लिए आल पार्टी हुर्रियत कांफ्रेंस की स्थापना की गई.

ये भी पढें : पीएम केयर्स फंड की सूचना देने के केंद्रीय सूचना आयोग का आदेश दिल्ली हाई कोर्ट ने किया निरस्त

एनआईए के मुताबिक हाफिद सईद ने हुर्रियत कांफ्रेंस के नेताओं के साथ मिलकर हवाला और दूसरे चैनलों के जरिये आतंकी गतिविधियों को अंजाम देने के लिए धन का लेन-देन किया. इस धन का उपयोग घाटी में अशांति फैलाने, सुरक्षा बलों पर हमला करने, स्कूलों को जलाने और सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाने के लिए किया गया. इसकी सूचना गृह मंत्रालय को मिलने के बाद एनआईए ने भारतीय दंड संहिता की धारा 120बी, 121, 121ए और यूएपीए की धारा 13, 16, 17, 18, 20, 38, 39 और 40 के तहत केस दर्ज किया था.

ये भी पढें :दिल्ली हाई कोर्ट ने पत्रकार सौम्या विश्वनाथन की हत्या मामले के चार दोषियों की सजा निलंबित की

नई दिल्ली: दिल्ली हाईकोर्ट ने नेशनल इंवेस्टिगेशन एजेंसी (एनआईए) की मांग पर हत्या और टेरर फंडिंग के मामले में दोषी करार दिए गए यासिन मलिक को फांसी की सजा पर फिलहाल सुनवाई टाल दी है. हाईकोर्ट ने इस याचिका पर अगली सुनवाई मई में करने का आदेश दिया है. दरअसल, इस मामले की सुनवाई करने वाली बेंच बुधवार को सुनवाई के लिए उपलब्ध नहीं थी. जिसकी वजह से यह सुनवाई टल गई है. हाईकोर्ट ने एनआईए की याचिका पर सुनवाई करते हुए 29 मई 2023 को यासिन मलिक को नोटिस जारी किया था. सुनवाई के दौरान एनआईए की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा था कि ट्रायल कोर्ट ने यासिन मलिक के ऊपर लगे आरोपों को सही पाया था.

मेहता ने कहा कि भारतीय दंड संहिता की धारा 121 के तहत भारत सरकार के खिलाफ युद्ध छेड़ने के मामले में मौत की सजा का प्रावधान है, ऐसे अपराधी को मौत की सजा मिलनी चाहिए. मेहता ने कहा था कि यासिन मलिक वायुसेना के चार जवानों की हत्या में शामिल रहा. उसके सहयोगियों ने तत्कालीन गृह मंत्री की बेटी रुबिया सईद का अपहरण किया. उसके बाद उसके अपहरणकर्ताओं को छोड़ा गया, जिन्होंने बाद में मुंबई बम ब्लास्ट को अंजाम दिया गया.

हाईकोर्ट ने मेहता से पूछा कि आप जवानों को मारने की बात कह रहे हैं. कोर्ट ने कहा कि ट्रायल कोर्ट के आदेश में 4 वायु सेना के अधिकारियों की हत्या का जिक्र कहां है. इस आदेश मे तो पत्थरबाजी में शमिल होने की बात कही गई है. मेहता ने अपना पक्ष रखते हुए कहा था कि चार वायु सेना के अधिकारियों की हत्या का मामला फैसले की कॉपी में नहीं है. बता दें कि 25 मई 2022 को पटियाला हाउस कोर्ट ने हत्या और टेरर फंडिंग के मामले में दोषी करार दिए गए यासिन मलिक को उम्रकैद की सजा सुनाई थी.

पटियाला हाउस कोर्ट ने यासिन मलिक पर यूएपीए की धारा 17 के तहत उम्रकैद और दस लाख रुपये का जुर्माना, धारा 18 के तहत दस साल की कैद और दस हजार रुपये का जुर्माना, धारा 20 के तहत दस वर्ष की सजा और 10 हजार रुपये का जुर्माना, धारा 38 और 39 के तहत पांच साल की सजा और पांच हजार रुपये का जुर्माना लगाया था. कोर्ट ने यासिन मलिक पर भारतीय दंड संहिता की धारा 120बी के तहत दस वर्ष की सजा और दस हजार रुपये का जुर्माना, धारा 121ए के तहत दस साल की सजा और दस हजार रुपये का जुर्माना लगाया था.

कोर्ट ने कहा था कि यासिन मलिक को मिली ये सभी सजाएं साथ-साथ चलेंगी. इसका मतलब की अधिकतम उम्रकैद की सजा और दस लाख रुपये की सजा प्रभावी होगी. 10 मई 2022 को यासिन मलिक ने अपना गुनाह कबूल कर लिया था. 16 मार्च 2022 को कोर्ट ने हाफिज सईद , सैयद सलाहुद्दीन, यासिन मलिक, शब्बीर शाह और मसरत आलम, राशिद इंजीनियर, जहूर अहमद वताली, बिट्टा कराटे, आफताफ अहमद शाह, अवतार अहम शाह, नईम खान, बशीर अहमद बट्ट ऊर्फ पीर सैफुल्ला समेत दूसरे आरोपियों के खिलाफ आरोप तय करने का आदेश दिया था.

एनआईए के मुताबिक, पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई के सहयोग से लश्कर-ए-तैयबा, हिजबुल मुजाहिद्दीन, जेकेएलएफ, जैश-ए-मोहम्मद जैसे संगठनों ने जम्मू-कश्मीर में आम नागरिकों और सुरक्षा बलों पर हमले और हिंसा को अंजाम दिया. 1993 में अलगवावादी गतिविधियों को अंजाम देने के लिए आल पार्टी हुर्रियत कांफ्रेंस की स्थापना की गई.

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एनआईए के मुताबिक हाफिद सईद ने हुर्रियत कांफ्रेंस के नेताओं के साथ मिलकर हवाला और दूसरे चैनलों के जरिये आतंकी गतिविधियों को अंजाम देने के लिए धन का लेन-देन किया. इस धन का उपयोग घाटी में अशांति फैलाने, सुरक्षा बलों पर हमला करने, स्कूलों को जलाने और सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाने के लिए किया गया. इसकी सूचना गृह मंत्रालय को मिलने के बाद एनआईए ने भारतीय दंड संहिता की धारा 120बी, 121, 121ए और यूएपीए की धारा 13, 16, 17, 18, 20, 38, 39 और 40 के तहत केस दर्ज किया था.

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