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शासनादेश के विरुद्ध स्पेशल काउंसिल को फीस देने का मामला, 26 दिसंबर को होगी अगली सुनवाई

शासनादेश के विरुद्ध स्पेशल काउंसिल को फीस देने के मामले में सुनवाई हुई. अब 26 दिसंबर को अगली सुनवाई होगी.

uttarakhand high court
उत्तराखंड हाईकोर्ट (photo- ETV Bharat)
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By ETV Bharat Uttarakhand Team

Published : Oct 17, 2024, 8:09 PM IST

नैनीताल: उत्तराखंड हाईकोर्ट ने राज्य सरकार के द्वारा बिना न्याय विभाग की अनुमति लिए, शासनादेश के विरुद्ध जाकर उच्च न्यायालय में कुछ विशेष मामलों में सरकार की तरफ से प्रभावी पैरवी करने हेतु सर्वोच्च न्यायालय से स्पेशल काउंसिल बुलाने और उन्हें प्रति सुनवाई हेतु 10 लाख रुपए दिए जाने के खिलाफ दायर जनहित याचिका पर सुनवाई की.

मामले की सुनवाई करते हुए कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश मनोज कुमार तिवारी और न्यायमूर्ति विवेक भारती शर्मा की खंडपीठ के पास मामले की सुनवाई के लिए पर्याप्त समय न होने के कारण अगली सुनवाई हेतु 26 दिसंबर की तारीख निर्धारित की गई. आज हुई सुनवाई पर राज्य सरकार की तरफ से कहा गया कि इसमें मुख्यमंत्री और मुख्य स्थायी अधिवक्ता और एक आईएसएस पक्षकार बनाये गए हैं, इसलिए जनहित याचिका से इनके नाम हटाए जाएं, जिसका विरोध याचिकाकर्ता द्वारा किया गया. याचिकाकर्ता ने कहा कि पिछली तारीख को कोर्ट ने राज्य के चीफ सेकेट्री से इसमें अपना व्यक्तिगत शपथपत्र पेश करने को कहा था, लेकिन अभी वो पेश नहीं किया.

याचिकाकर्ता भुवन चन्द्र पोखरिया ने अपना पक्ष रखते हुए कहा कि विपक्षियों को इस जनहित याचिका में इसलिए पक्षकार बनाया गया कि इन्होंने स्पेशल काउंसिल नियुक्त करने के लिए ना तो राज्य के चीफ सेकेट्री और ना ही न्याय अनुभाग से अनुमति ली. एक केस में स्पेशल काउंसिल नियुक्त करने के बाद लाखों रुपए का भुगतान कर दिया, जबकि जिस दिन केस लगा हुआ था, उस दिन के कोर्ट के आदेश में उनका नाम नहीं छपा था, जिसकी अनुमति शासनादेश नहीं देता.

बिल उसी दिन का बनता है, जिस दिन अधिवक्ता कोर्ट में पेश होता है. यहां तो बिना कोर्ट में पेश हुए लाखों रुपए का भुगतना कर दिया गया है, इसलिए इसकी जांच कराई जाए. उनके द्वारा जो आरोप लगाए गए हैं वे सभी जांच के योग्य हैं. स्पेशल काउंसिल नियुक्ति करने के लिए सरकार को मुख्यमंत्री, चीफ सेकेट्री और न्याय विभाग की अनुमति लेनी आवश्यक होती है. उनकी स्वीकृति के बाद ही स्पेशल काउंसिल नियुक्त किया जा सकता है, लेकिन यहां सरकार ने यह प्रक्रिया नहीं अपनाई और लाखों का भुगतान कर दिया गया.

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मामले की सुनवाई करते हुए कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश मनोज कुमार तिवारी और न्यायमूर्ति विवेक भारती शर्मा की खंडपीठ के पास मामले की सुनवाई के लिए पर्याप्त समय न होने के कारण अगली सुनवाई हेतु 26 दिसंबर की तारीख निर्धारित की गई. आज हुई सुनवाई पर राज्य सरकार की तरफ से कहा गया कि इसमें मुख्यमंत्री और मुख्य स्थायी अधिवक्ता और एक आईएसएस पक्षकार बनाये गए हैं, इसलिए जनहित याचिका से इनके नाम हटाए जाएं, जिसका विरोध याचिकाकर्ता द्वारा किया गया. याचिकाकर्ता ने कहा कि पिछली तारीख को कोर्ट ने राज्य के चीफ सेकेट्री से इसमें अपना व्यक्तिगत शपथपत्र पेश करने को कहा था, लेकिन अभी वो पेश नहीं किया.

याचिकाकर्ता भुवन चन्द्र पोखरिया ने अपना पक्ष रखते हुए कहा कि विपक्षियों को इस जनहित याचिका में इसलिए पक्षकार बनाया गया कि इन्होंने स्पेशल काउंसिल नियुक्त करने के लिए ना तो राज्य के चीफ सेकेट्री और ना ही न्याय अनुभाग से अनुमति ली. एक केस में स्पेशल काउंसिल नियुक्त करने के बाद लाखों रुपए का भुगतान कर दिया, जबकि जिस दिन केस लगा हुआ था, उस दिन के कोर्ट के आदेश में उनका नाम नहीं छपा था, जिसकी अनुमति शासनादेश नहीं देता.

बिल उसी दिन का बनता है, जिस दिन अधिवक्ता कोर्ट में पेश होता है. यहां तो बिना कोर्ट में पेश हुए लाखों रुपए का भुगतना कर दिया गया है, इसलिए इसकी जांच कराई जाए. उनके द्वारा जो आरोप लगाए गए हैं वे सभी जांच के योग्य हैं. स्पेशल काउंसिल नियुक्ति करने के लिए सरकार को मुख्यमंत्री, चीफ सेकेट्री और न्याय विभाग की अनुमति लेनी आवश्यक होती है. उनकी स्वीकृति के बाद ही स्पेशल काउंसिल नियुक्त किया जा सकता है, लेकिन यहां सरकार ने यह प्रक्रिया नहीं अपनाई और लाखों का भुगतान कर दिया गया.

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