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बलिया नाला मामले में HC में सुनवाई, ट्रीटमेंट कार्य में कमी पाए जाने पर प्रार्थना पत्र से अवगत कराने को कहा

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By ETV Bharat Uttarakhand Team

Published : Mar 19, 2024, 9:45 PM IST

Uttarakhand High Court उत्तराखंड हाईकोर्ट ने बलिया नाला में हो रहे भूस्खलन को लेकर दायर जनहित याचिका पर सुनवाई की. कोर्ट ने याचिकाकर्ता से कहा है कि अगर उन्हें लगता है कि कार्य की गुणवत्ता में कोई कमी पाई जाती है तो वे फिर से प्रार्थना पत्र के माध्यम से कोर्ट को अवगत करा सकते हैं.

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नैनीताल: उत्तराखंड हाईकोर्ट ने नैनीताल के आधार कहे जाने वाले बलिया नाला में हो रहे भूस्खलन को लेकर दायर जनहित याचिका पर सुनवाई की. मामले की सुनवाई करते हुए मुख्य न्यायाधीश रितु बाहरी व न्यायमूर्ति राकेश थपलियाल की खंडपीठ ने जनहित याचिका को निस्तारित करते हुए याचिकाकर्ता से कहा है कि अगर उन्हें लगता है कि कार्य की गुणवत्ता में कोई कमी पाई जाती है तो वे फिर से प्रार्थना पत्र के माध्यम से कोर्ट को अवगत करा सकते हैं. सुनवाई पर राज्य सरकार की तरफ से कहा गया कि सरकार ने इसके ट्रीटमेंट के लिए टेंडर निकालकर कार्य प्रारंभ कर दिया है और कार्य प्रगति पर है. सरकार के इस कथन पर कोर्ट ने जनहित याचिका को निस्तारित कर दी.

मामले के अनुसार नैनीताल निवासी अधिवक्ता सैय्यद नदीम मून ने 2018 में उच्च न्यायालय में जनहित दायर कर कहा था कि नैनीताल के आधार कहे जाने वाले बलिया नाले में हो रहे भूस्खलन से नैनीताल व इसके आसपास रह रहे लोगों को बड़ा खतरा हो सकता है. नैनीताल के अस्तित्व और लोगों को बचाने के लिए इसमें हो रहे भूस्खलन को रोकने के लिए कोई ठोस उपाय किया जाए. ताकि क्षेत्र में हो रहे भूस्खलन को रोका जा सके.

याचिकाकर्ता का यह भी कहना है कि 2018 से इस पर शासन व कार्यदायी संस्था ने स्थानीय लोगों के हितों का ध्यान नहीं दिया. बरसात के समय यहां पर निवास कर रहे लोगों को अन्य जगह शिफ्ट किया जाता रहा है. 2018 में उनके द्वारा इसे बचाने के लिए जनहित याचिका दायर की गई. लेकिन सरकारों ने कोर्ट के आदेशों पर इसका सर्वे ही किया, कार्य कम किया.

गौर हो कि बलिया नाला में 80 के दशक से भूस्खलन हो रहा है. जिससे नैनीताल के अस्तित्व पर खतरा मंडरा रहा है. भूस्खलन प्रभावित क्षेत्र में स्थायी ट्रीटमेंट के लिए कार्य योजना बनाने की मांग लंबे समय से उठती रही है.

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नैनीताल: उत्तराखंड हाईकोर्ट ने नैनीताल के आधार कहे जाने वाले बलिया नाला में हो रहे भूस्खलन को लेकर दायर जनहित याचिका पर सुनवाई की. मामले की सुनवाई करते हुए मुख्य न्यायाधीश रितु बाहरी व न्यायमूर्ति राकेश थपलियाल की खंडपीठ ने जनहित याचिका को निस्तारित करते हुए याचिकाकर्ता से कहा है कि अगर उन्हें लगता है कि कार्य की गुणवत्ता में कोई कमी पाई जाती है तो वे फिर से प्रार्थना पत्र के माध्यम से कोर्ट को अवगत करा सकते हैं. सुनवाई पर राज्य सरकार की तरफ से कहा गया कि सरकार ने इसके ट्रीटमेंट के लिए टेंडर निकालकर कार्य प्रारंभ कर दिया है और कार्य प्रगति पर है. सरकार के इस कथन पर कोर्ट ने जनहित याचिका को निस्तारित कर दी.

मामले के अनुसार नैनीताल निवासी अधिवक्ता सैय्यद नदीम मून ने 2018 में उच्च न्यायालय में जनहित दायर कर कहा था कि नैनीताल के आधार कहे जाने वाले बलिया नाले में हो रहे भूस्खलन से नैनीताल व इसके आसपास रह रहे लोगों को बड़ा खतरा हो सकता है. नैनीताल के अस्तित्व और लोगों को बचाने के लिए इसमें हो रहे भूस्खलन को रोकने के लिए कोई ठोस उपाय किया जाए. ताकि क्षेत्र में हो रहे भूस्खलन को रोका जा सके.

याचिकाकर्ता का यह भी कहना है कि 2018 से इस पर शासन व कार्यदायी संस्था ने स्थानीय लोगों के हितों का ध्यान नहीं दिया. बरसात के समय यहां पर निवास कर रहे लोगों को अन्य जगह शिफ्ट किया जाता रहा है. 2018 में उनके द्वारा इसे बचाने के लिए जनहित याचिका दायर की गई. लेकिन सरकारों ने कोर्ट के आदेशों पर इसका सर्वे ही किया, कार्य कम किया.

गौर हो कि बलिया नाला में 80 के दशक से भूस्खलन हो रहा है. जिससे नैनीताल के अस्तित्व पर खतरा मंडरा रहा है. भूस्खलन प्रभावित क्षेत्र में स्थायी ट्रीटमेंट के लिए कार्य योजना बनाने की मांग लंबे समय से उठती रही है.

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