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स्टोन क्रशर जुर्माना माफ मामला, HC में अगले मंगलवार से पहले राज्य सरकार को देना है जवाब - STONE CRUSHER FINE WAIVER CASE

HC में नैनीताल स्टोन क्रशर जुर्माना माफ करने के मामले में सुनवाई हुई. राज्य सरकार अगले मंगलवार से पहले कोर्ट में जवाब पेश करेगी.

NAINITAL HIGH COURT
नैनीताल हाईकोर्ट (photo- ETV Bharat)
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By ETV Bharat Uttarakhand Team

Published : Oct 15, 2024, 5:09 PM IST

नैनीताल: उत्तराखंड हाईकोर्ट ने नैनीताल के पूर्व जिलाधिकारी द्वारा अपने कार्यकाल के दौरान विभिन्न स्टोन क्रशरों पर अवैध खनन एवं भंडारण के कारण लगाए गए करीब 50 करोड़ से अधिक का जुर्माना माफ करने के खिलाफ दायर याचिका पर सुनवाई की. मामले की सुनवाई करते हुए कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश मनोज कुमार तिवारी और न्यायमूर्ति विवेक भारती शर्मा की खंडपीठ ने राज्य सरकार से अगले मंगलवार से पहले जवाब देने को कहा है.

कोर्ट ने सचिव खनन और निदेशक खनन से यह बताने को कहा है कि किस नियमावली के तहत जिला अधिकारी ने स्टोन क्रशरों पर लगाई गई जुर्माने की राशि माफ की, उस नियामवली को प्रस्तुत करें. याचिकाकर्ता से कहा है कि पूर्व के आदेश के क्रम में कोर्ट को बताएं कि ऐसे कितने मामले हैं, जिसमें जिलाधिकारी ने जुर्माने की राशि माफ की है. कल बुधवार तक अपना जवाब प्रस्तुत करें. अब मामले की अगली सुनवाई अगले मंगलवार को होगी. पूर्व के आदेश पर आज मंगलवार को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से सचिव खनन व निदेशक खनन पेश हुए. कोर्ट ने उनसे पूछा कि क्या जिला अधिकारी किसी नियमावली के तहत अपने ही द्वारा लगाए गए जुर्माने की राशि माफ कर सकते हैं. कोर्ट को इस संबंध में अवगत कराएं.

मामले के अनुसार सामाजिक कार्यकर्ता चोरलगिया नैनीताल निवासी भुवन पोखरिया ने जनहित याचिका दायर कर कहा है कि वर्ष 2016 -17 में नैनीताल के तत्कालीन जिलाधिकारी के द्वारा कई स्टोन क्रशरों का अवैध खनन व भंडारण का जुर्माना करीब 50 करोड़ से अधिक रुपया माफ कर दिया गया है. जिला अधिकारी ने उन्हीं स्टोन क्रशरों का जुर्माना माफ किया, जिन पर करोड़ों रुपए का जुर्माना था और जिनका जुर्माना कम था उनका माफ नहीं किया गया. वहीं, जब इसकी शिकायत मुख्य सचिव और सचिव खनन से की गई तो, इस संबंध में कोई कार्रवाई नहीं हुई और कहा गया कि यह जिलाधिकारी का विशेषाधिकार है.

जब याचिकाकर्ता द्वारा शासन से इसका लिखित रूप में जवाब मांगा गया, तो आज की तिथि तक उन्हें इसका लिखित जवाब नहीं दिया गया. इसके बाद उनके द्वारा इसमें आरटीआई मांग कर कहा गया कि जिलाधिकारी को किस नियमावली के तहत अवैध खनन व भंडारण पर लगे जुर्माने को माफ करने का अधिकार प्राप्त है. आरटीआई के माध्यम से अवगत कराएं, जिसके उत्तर में लोक सूचना अधिकारी औद्योगिक विभाग उत्तराखंड द्वारा कहा गया कि लोक प्राधिकार के अंतर्गत यह धारित नहीं है.

जनहित याचिका में कहा गया कि जब लोक प्राधिकार में उक्त नियम धारित नहीं है, तो जिलाधिकारी द्वारा कैसे स्टोन क्रशरों पर लगे करोड़ों रुपये का जुर्माना माफ कर दिया गया. फिर उनके द्वारा 2020 में चीफ सेकेट्री को शिकायत की गई और चीफ सेकेट्री ने औघोगिक सचिव से इसकी जांच कराने को कहा. औद्योगिक सचिव ने जिला अधिकारी नैनीताल को जांच अधिकारी नियुक्त कर दिया. डीएम द्वारा इसकी जांच एसडीएम हल्द्वानी को सौंप दी गई, जो नहीं हुई, जबकि औद्योगिक विभाग के द्वारा 21 अक्टूबर 2020 को इस पर जांच आख्या प्रस्तुत करने को कहा था, जो चार साल बीत जाने के बाद भी प्रस्तुत नहीं की गई. जनहित याचिका में कोर्ट से मांग की गई है कि इसपर कार्रवाई की जाए, क्योंकि यह प्रदेश के राजस्व की हानि है.

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कोर्ट ने सचिव खनन और निदेशक खनन से यह बताने को कहा है कि किस नियमावली के तहत जिला अधिकारी ने स्टोन क्रशरों पर लगाई गई जुर्माने की राशि माफ की, उस नियामवली को प्रस्तुत करें. याचिकाकर्ता से कहा है कि पूर्व के आदेश के क्रम में कोर्ट को बताएं कि ऐसे कितने मामले हैं, जिसमें जिलाधिकारी ने जुर्माने की राशि माफ की है. कल बुधवार तक अपना जवाब प्रस्तुत करें. अब मामले की अगली सुनवाई अगले मंगलवार को होगी. पूर्व के आदेश पर आज मंगलवार को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से सचिव खनन व निदेशक खनन पेश हुए. कोर्ट ने उनसे पूछा कि क्या जिला अधिकारी किसी नियमावली के तहत अपने ही द्वारा लगाए गए जुर्माने की राशि माफ कर सकते हैं. कोर्ट को इस संबंध में अवगत कराएं.

मामले के अनुसार सामाजिक कार्यकर्ता चोरलगिया नैनीताल निवासी भुवन पोखरिया ने जनहित याचिका दायर कर कहा है कि वर्ष 2016 -17 में नैनीताल के तत्कालीन जिलाधिकारी के द्वारा कई स्टोन क्रशरों का अवैध खनन व भंडारण का जुर्माना करीब 50 करोड़ से अधिक रुपया माफ कर दिया गया है. जिला अधिकारी ने उन्हीं स्टोन क्रशरों का जुर्माना माफ किया, जिन पर करोड़ों रुपए का जुर्माना था और जिनका जुर्माना कम था उनका माफ नहीं किया गया. वहीं, जब इसकी शिकायत मुख्य सचिव और सचिव खनन से की गई तो, इस संबंध में कोई कार्रवाई नहीं हुई और कहा गया कि यह जिलाधिकारी का विशेषाधिकार है.

जब याचिकाकर्ता द्वारा शासन से इसका लिखित रूप में जवाब मांगा गया, तो आज की तिथि तक उन्हें इसका लिखित जवाब नहीं दिया गया. इसके बाद उनके द्वारा इसमें आरटीआई मांग कर कहा गया कि जिलाधिकारी को किस नियमावली के तहत अवैध खनन व भंडारण पर लगे जुर्माने को माफ करने का अधिकार प्राप्त है. आरटीआई के माध्यम से अवगत कराएं, जिसके उत्तर में लोक सूचना अधिकारी औद्योगिक विभाग उत्तराखंड द्वारा कहा गया कि लोक प्राधिकार के अंतर्गत यह धारित नहीं है.

जनहित याचिका में कहा गया कि जब लोक प्राधिकार में उक्त नियम धारित नहीं है, तो जिलाधिकारी द्वारा कैसे स्टोन क्रशरों पर लगे करोड़ों रुपये का जुर्माना माफ कर दिया गया. फिर उनके द्वारा 2020 में चीफ सेकेट्री को शिकायत की गई और चीफ सेकेट्री ने औघोगिक सचिव से इसकी जांच कराने को कहा. औद्योगिक सचिव ने जिला अधिकारी नैनीताल को जांच अधिकारी नियुक्त कर दिया. डीएम द्वारा इसकी जांच एसडीएम हल्द्वानी को सौंप दी गई, जो नहीं हुई, जबकि औद्योगिक विभाग के द्वारा 21 अक्टूबर 2020 को इस पर जांच आख्या प्रस्तुत करने को कहा था, जो चार साल बीत जाने के बाद भी प्रस्तुत नहीं की गई. जनहित याचिका में कोर्ट से मांग की गई है कि इसपर कार्रवाई की जाए, क्योंकि यह प्रदेश के राजस्व की हानि है.

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