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बदलते खान-पान और जीवनशैली से होती है पाइल्स और फिशर जैसी बीमारी, ऐसे करें बचाव - केजीएमयू में सेमिनार

किंग जार्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी (KGMU) में बुधवार को जनरल सर्जरी विभाग के प्रेक्षागृह में आयोजित सेमिनार में डॉ. अरशद अहमद ने पाइल्स और फिशर जैसी बीमारियों व उनके निदान पर चर्चा की.

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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Feb 21, 2024, 10:59 PM IST

लखनऊ : खान-पान और बदलती जीवनशैली से पाइल्स, फिशर समेत दूसरी मलद्वार की बीमारियों में तेजी से इजाफा हो रहा है. चिंता की बात यह है कि लोग शुरू में इलाज कराने में हिचकते हैं. बीमारी साझा करने में भी संकोच करते हैं. समस्या गंभीर होने पर झोलाछाप या फिर मेडिकल स्टोर में जाकर दवा लेते हैं. समय पर मुकम्मल इलाज न मिलने से बीमारी गंभीर रूप ले लेती है. यह जानकारी किंग जार्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी (केजीएमयू) जनरल सर्जरी विभाग के पूर्व डॉ. अरशद अहमद ने दी. वह बुधवार को जनरल सर्जरी विभाग के प्रेक्षागृह में सेमिनार को संबोधित कर रहे थे. बता दें, जनरल सर्जरी विभाग के 112वें स्थापना दिवस समारोह के मौके पर सेमिनार हो रहे हैं.

डॉ. अरशद अहमद ने कहा कि 60 प्रतिशत पाइल्स, फिशर, फिशटुला समेत दूसरी बीमारियों के मरीज शुरूआत में झोलाछाप से इलाज कराते हैं. 10 प्रतिशत लोग मेडिकल स्टोर से दवा लेकर खाते हैं. बाकी पांच प्रतिशत बाकी पैथी का इलाज लेते हैं. बाकी 25 प्रतिशत प्रशिक्षित डॉक्टर से इलाज लेते हैं. शहरी क्षेत्र में यह आंकड़ा कुछ बेहतर है. शुरूआत में 30 प्रतिशत लोग ही झोलाछाप के पास इलाज कराते हैं. बाकी 70 प्रतिशत प्रशिक्षित या दूसरी पैथी के डॉक्टरों से इलाज कराते हैं. उन्होंने बताया कि समय पर इलाज से बीमारी पर आसानी से काबू पाया जा सकता है. कार्यक्रम में जनरल सर्जरी विभाग के अध्यक्ष डॉ. अभिनव अरूण सोनकर, डॉ. अवनीश कुमार, डॉ. कुशाग्र, डॉ. संजीव कुमार, डॉ. सुरेश कुमार समेत अन्य डॉक्टर मौजूद रहे.

डॉ. अरशद के मुताबिक लोग इंटरनेट पर लेजर के बारे में पढ़कर उसी से इलाज कराने का दबाव बनाते हैं, जबकि यह गलत है. सिर्फ डॉक्टर की सलाह पर ही इलाज कराना चाहिए. डॉक्टर पर भरोसा करें, कसरत करें, पैदल चलें. डाइड में फाइबर व पानी की मात्रा बढ़ाएं. डॉ. संदीप वर्मा ने कहाकि मलद्वार के कैंसर के मामलों में तेजी से वृद्धि हो रही है. इसकी बड़ी वजह रिफाइंड तेल में पका भोजन, फास्ट फूड, मैदा आदि का सेवन है. शुरूआत में मरीज को कब्ज, डायरिया, शौच से खून आना जैसे लक्षण होते हैं. जिन्हें लोग नजरअंदाज करते हैं. ऐसे में बीमारी गंभीर हो जाती है. उन्होंने बताया कि खान-पान पर नियंत्रण रखकर बीमारी से खुद को काफी हद तक बचा सकते हैं. केजीएमयू इंडोक्राइन सर्जरी विभाग के डॉ. कुलरंजन सिंह ने कहा कि इलाज के बावजूद ब्लड प्रेशर काबू में नहीं आ रहा है. घबराहट और सिरदर्द जैसी समस्या बनी है तो एड्रिनल ग्लैंड की जांच कराएं. किडनी पर एड्रिनल ग्लैंड होती है. उन्होंने बताया कि एड्रिनल ग्लैंड पर ट्यूमर होने से भी यह समस्या बनी रहती है. ब्लड प्रेशर के एक प्रतिशत मरीजों में यह समस्या हो सकती है. ऑपरेशन कर ट्यूमर हटाकर मरीज को बीमारी से बचा सकते हैं.



सीएसआईआर में अयोजित हुआ आधुनिक पद्धतियों पर प्रशिक्षण : राष्ट्रीय वनस्पति अनुसंधान संस्थान (सीएसआईआर) में बुधवार से पादप वर्गीकरण एवं जैव वर्गिकी की पारंपरिक एवं आधुनिक पद्धतियों पर प्रशिक्षण कार्यक्रम शुरू हुआ. प्रशिक्षण कार्यक्रम का शुभारंभ वैज्ञानिक डॉ. आरआर राव ने किया. कार्यक्रम के संयोजक एवं संस्थान के प्रधान वैज्ञानिक डॉ. विजय विष्णु वाघ ने कहा कि देश में वर्गिकी के विशेषज्ञों की संख्या काफी कम है. इसे बढ़ाने की जरूरत है. ताकि वर्गिकी के क्षेत्र में नई प्रौद्योगिकी के प्रयोग किए जा सके. भविष्य की चुनौतियों से भी आसानी से निपटा जा सके. उन्होंने बताया कि इस कार्यक्रम में 16 महिलाओं और 17 पुरुषों सहित 31 प्रतिभागियों ने हिस्सा लिया. अधिकांश महाराष्ट्र व असम एवं कर्नाटक से हैं. प्रशिक्षण कार्यक्रम का समापन 27 को किया जाएगा.

यह भी पढ़ें : देशभर में करीब 30 प्रतिशत लोग पायरिया के शिकार

यह भी पढ़ें : अच्छी खबरः गले में चीरा लगाए बिना अब होगा थायराइड का ऑपरेशन, KGMU में सफल ट्रायल

लखनऊ : खान-पान और बदलती जीवनशैली से पाइल्स, फिशर समेत दूसरी मलद्वार की बीमारियों में तेजी से इजाफा हो रहा है. चिंता की बात यह है कि लोग शुरू में इलाज कराने में हिचकते हैं. बीमारी साझा करने में भी संकोच करते हैं. समस्या गंभीर होने पर झोलाछाप या फिर मेडिकल स्टोर में जाकर दवा लेते हैं. समय पर मुकम्मल इलाज न मिलने से बीमारी गंभीर रूप ले लेती है. यह जानकारी किंग जार्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी (केजीएमयू) जनरल सर्जरी विभाग के पूर्व डॉ. अरशद अहमद ने दी. वह बुधवार को जनरल सर्जरी विभाग के प्रेक्षागृह में सेमिनार को संबोधित कर रहे थे. बता दें, जनरल सर्जरी विभाग के 112वें स्थापना दिवस समारोह के मौके पर सेमिनार हो रहे हैं.

डॉ. अरशद अहमद ने कहा कि 60 प्रतिशत पाइल्स, फिशर, फिशटुला समेत दूसरी बीमारियों के मरीज शुरूआत में झोलाछाप से इलाज कराते हैं. 10 प्रतिशत लोग मेडिकल स्टोर से दवा लेकर खाते हैं. बाकी पांच प्रतिशत बाकी पैथी का इलाज लेते हैं. बाकी 25 प्रतिशत प्रशिक्षित डॉक्टर से इलाज लेते हैं. शहरी क्षेत्र में यह आंकड़ा कुछ बेहतर है. शुरूआत में 30 प्रतिशत लोग ही झोलाछाप के पास इलाज कराते हैं. बाकी 70 प्रतिशत प्रशिक्षित या दूसरी पैथी के डॉक्टरों से इलाज कराते हैं. उन्होंने बताया कि समय पर इलाज से बीमारी पर आसानी से काबू पाया जा सकता है. कार्यक्रम में जनरल सर्जरी विभाग के अध्यक्ष डॉ. अभिनव अरूण सोनकर, डॉ. अवनीश कुमार, डॉ. कुशाग्र, डॉ. संजीव कुमार, डॉ. सुरेश कुमार समेत अन्य डॉक्टर मौजूद रहे.

डॉ. अरशद के मुताबिक लोग इंटरनेट पर लेजर के बारे में पढ़कर उसी से इलाज कराने का दबाव बनाते हैं, जबकि यह गलत है. सिर्फ डॉक्टर की सलाह पर ही इलाज कराना चाहिए. डॉक्टर पर भरोसा करें, कसरत करें, पैदल चलें. डाइड में फाइबर व पानी की मात्रा बढ़ाएं. डॉ. संदीप वर्मा ने कहाकि मलद्वार के कैंसर के मामलों में तेजी से वृद्धि हो रही है. इसकी बड़ी वजह रिफाइंड तेल में पका भोजन, फास्ट फूड, मैदा आदि का सेवन है. शुरूआत में मरीज को कब्ज, डायरिया, शौच से खून आना जैसे लक्षण होते हैं. जिन्हें लोग नजरअंदाज करते हैं. ऐसे में बीमारी गंभीर हो जाती है. उन्होंने बताया कि खान-पान पर नियंत्रण रखकर बीमारी से खुद को काफी हद तक बचा सकते हैं. केजीएमयू इंडोक्राइन सर्जरी विभाग के डॉ. कुलरंजन सिंह ने कहा कि इलाज के बावजूद ब्लड प्रेशर काबू में नहीं आ रहा है. घबराहट और सिरदर्द जैसी समस्या बनी है तो एड्रिनल ग्लैंड की जांच कराएं. किडनी पर एड्रिनल ग्लैंड होती है. उन्होंने बताया कि एड्रिनल ग्लैंड पर ट्यूमर होने से भी यह समस्या बनी रहती है. ब्लड प्रेशर के एक प्रतिशत मरीजों में यह समस्या हो सकती है. ऑपरेशन कर ट्यूमर हटाकर मरीज को बीमारी से बचा सकते हैं.



सीएसआईआर में अयोजित हुआ आधुनिक पद्धतियों पर प्रशिक्षण : राष्ट्रीय वनस्पति अनुसंधान संस्थान (सीएसआईआर) में बुधवार से पादप वर्गीकरण एवं जैव वर्गिकी की पारंपरिक एवं आधुनिक पद्धतियों पर प्रशिक्षण कार्यक्रम शुरू हुआ. प्रशिक्षण कार्यक्रम का शुभारंभ वैज्ञानिक डॉ. आरआर राव ने किया. कार्यक्रम के संयोजक एवं संस्थान के प्रधान वैज्ञानिक डॉ. विजय विष्णु वाघ ने कहा कि देश में वर्गिकी के विशेषज्ञों की संख्या काफी कम है. इसे बढ़ाने की जरूरत है. ताकि वर्गिकी के क्षेत्र में नई प्रौद्योगिकी के प्रयोग किए जा सके. भविष्य की चुनौतियों से भी आसानी से निपटा जा सके. उन्होंने बताया कि इस कार्यक्रम में 16 महिलाओं और 17 पुरुषों सहित 31 प्रतिभागियों ने हिस्सा लिया. अधिकांश महाराष्ट्र व असम एवं कर्नाटक से हैं. प्रशिक्षण कार्यक्रम का समापन 27 को किया जाएगा.

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