रांची : रिटायर्ड सिविल सर्जन दीनानाथ पांडेय की पेंशन से काटी गई राशि के भुगतान को लेकर दायर अवमानना याचिका पर सुनवाई के लिए स्वास्थ्य विभाग के अपर मुख्य सचिव अजय कुमार सिंह को शुक्रवार की रात नौ बजे न्यायाधीश आनंद सेन की अदालत में उपस्थित होना पड़ा.
दरअसल, अवमानना मामले में अपर मुख्य सचिव के खिलाफ अदालत ने जमानती वारंट जारी किया था. इसलिए उन्हें आनन-फानन में हैदराबाद से रांची लौटना पड़ा. उन्होंने माफी मांगते हुए अदालत को बताया कि तीन साल की कटौती की गई राशि के भुगतान का आदेश पारित हो चुका है. बहुत जल्द ही प्रार्थी के खाते में राशि ट्रांसफर कर दी जाएगी. सरकार का पक्ष सुनने के बाद अदालत ने अवमानना याचिका खारिज कर दी.
हाईकोर्ट ने ऑडिटर जनरल को एक सप्ताह के अंदर प्राधिकार पत्र जारी करने का आदेश दिया है. सुनवाई के दौरान राज्य सरकार की ओर से महाधिवक्ता राजीव रंजन और याचिकाकर्ता की ओर से दीपक कुमार प्रसाद ने पक्ष रखा.
"अवमानना याचिका पर पूर्व में कोर्ट ने विभाग के अपर मुख्य सचिव को सशरीर हाजिर होने का आदेश दिया था. लेकिन इसपर सशरीर पेशी से छूट के लिए एफिडेविट फाइल किया गया था. फिर शुक्रवार यानी 7 फरवरी को ही सुनवाई के दौरान कोर्ट ने जमानती वारंट जारी करते हुए राज्य के डीजीपी को आदेश दिया था कि वे विभाग के अपर मुख्य सचिव की कोर्ट में सशरीर उपस्थिति सुनिश्चित कराएं." - धीरज कुमार, अधिवक्ता, झारखंड हाई कोर्ट
"सरकार की ओर से बताया गया कि विभाग के अपर मुख्य सचिव राज्य से बाहर हैं, इसलिए वर्चुअल मोड पर उनका पक्ष लिया जाए. इसको दरकिनार करते हुए हाईकोर्ट ने स्पष्ट आदेश दिया कि अपर मुख्य सचिव जहां भी हैं, उन्हें सशरीर कोर्ट में उपस्थित कराया जाए. तब कोर्ट को बताया गया कि अपर मुख्य सचिव को हैदराबाद से रांची लौटने में रात 8:30 बज जाएगा. इस पर कोर्ट ने रात 9:00 बजे सुनवाई का समय तय कर दिया. सरकार का पक्ष सुनने के बाद कोर्ट ने याचिका को ड्रॉप कर दिया. इस मामले में अपर मुख्य सचिव अजय कुमार सिंह को हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल के पास जाकर पर्सनल बेल बॉन्ड भरा. कोर्ट ने यह भी कहा कि अगर निर्धारित समय के भीतर प्रार्थी के खाते में राशि नहीं आती है तो वह दोबारा कोर्ट आ सकते हैं." - धीरज कुमार, अधिवक्ता, झारखंड हाई कोर्ट
दरअसल, हजारीबाग के सिविल सर्जन रहते हुए डॉ. दीनानाथ पांडेय पर सामान की आपूर्ति की सही तरीके से निगरानी नहीं करने का आरोप लगा था. इस मामले में राज्य सरकार ने उनकी पेंशन से 20 फीसदी राशि काटने का आदेश दिया था. उन्होंने राज्य सरकार के इस फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती दी थी.
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