जयपुर: छोटी काशी में हर त्योहार को उत्साह के साथ मनाया जाता है और जब बात जयपुर के पारंपरिक त्योहार हरियाली तीज की हो तो उत्साह दोगुना हो जाता है. हरियाली तीज से ठीक एक दिन पहले मंगलवार को सिंजारा उत्सव मनाया गया. सुहागिन महिलाओं ने लहरिया धारण कर हाथों पर मेहंदी रचाई और घेवर की मिठास घुली.
दरअसल, अखंड सौभाग्य का पाव हरियाली तीज का त्योहार लहरिया और घेवर के बिना अधूरा ही माना जाता है. लहरिया की बात करें तो राजस्थानी संस्कृति से जुड़े लोगों के लिए ये सिर्फ कपड़े पर उकेरा गया एक डिजाइन नहीं, बल्कि यहां की संस्कृति से जुड़ा हुआ पहनावा है, जो एक विवाहिता के जीवन में खुशहाली का प्रतीक माना जाता है. यही वजह है कि महिलाओं के मायके से सिंजारा आता है, जिसमें सुहाग के सामान के साथ घेवर और लहरिया भी आता है.
चूंकि सावन की तीज को हरियाली तीज भी कहा जाता है और जिस तरह है हरियाली में बाग-बगीचे लहलहा उठते हैं, उसी तरह इस पर बनी हुई आड़ी-तिरछी धारियां भी हरियाली और सौभाग्य का प्रतीक मानी जाती हैं. लहरिया विक्रेता अंशुल अग्रवाल ने बताया कि बाजार में बंधेज, पचरंगी, बारीक, गोटा पत्ती और मोथड़ा लहरिया प्रमुखता से लिया जाता है. लहरिया 300 रुपये से 30 हजार रुपये तक बाजार में मौजूद है.
यही नहीं, पहले तो ये लहरिया सिर्फ सावन के महीने में ही पहना जाता था, लेकिन राजस्थान से बाहर लहरिया को स्टाइल के लिए 12 महीने पहने जाने लगा है और अब तो देश के बाहर से भी लहरिया की डिमांड आती है. वहीं, इतिहासकारों के अनुसार लहरिया राजस्थान की एक पारंपरिक डिजाइन है, जिसका ईजाद 17वीं शताब्दी में राजपूताना राजाओं की पगड़ी के लिए किया गया था. 19वीं शताब्दी तक आते-आते इसे कपड़ों पर भी उकेरा गया और फिर ये सिर्फ एक डिजाइन नहीं, बल्कि राजस्थानी संस्कृति का प्रतीक बन गया.
जिस तरह राजस्थान में तीज के फेस्टिवल पर लहरिया का अपना महत्व है. उसी तरह इस त्योहार में मिठास घोलने का काम घेवर करता है. मधुमक्खी के छत्ते सा दिखने वाला जयपुर की परंपरा और विरासत से जुड़ा घेवर आज दूध, पनीर और रबड़ी से बनकर बाजारों में बिक रहा है, जिसकी भारी डिमांड भी देखी जा रही है. 1727 में जब जयपुर की स्थापना हुई उस समय सवाई जयसिंह द्वितीय सांभर से घेवर बनाने वाले कारीगरों को जयपुर लाए थे और तभी से जयपुर में घेवर का प्रचलन शुरू हुआ. आज तीज-गणगौर जैसे त्योहारों पर घेवर को सिंजारे के रूप में भेजा जाता है. घेवर विक्रेता राकेश अग्रवाल ने बताया कि जयपुर का ये ट्रेडिशनल स्वीट राजा-महाराजाओं के समय से चला रहा है. इसमें देसी घी के घेवर 800 रुपये से 900 रुपये तक के बाजार में उपलब्ध है. वहीं, डालडा घी के घेवर 300 रुपये से 450 रुपये तक बाजार में मिल रहे हैं. समय के साथ-साथ इन घेवर में अब पनीर और रबड़ी के घेवर भी प्रचलन में आ गए हैं.
बहरहाल, जयपुर में 7 अगस्त को सावन महीने के शुक्ल पक्ष की तृतीया को हरियाली तीज के रूप में मनाया जाएगा और इस दिन महिलाएं अखंड सौभाग्य की कामना करते हुए मां गोरा की पूजा करेंगी. वहीं, जयपुर की पारंपरिक तीज माता की सवारी भी त्रिपोलिया गेट से निकलेगी. जिसे देखने के लिए जयपुर में देशी-विदेशी पर्यटक भी जुटेंगे और एक बार फिर जयपुर की परंपरा साकार होती हुई नजर आएगी.