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हरिशयनी एकादशी के साथ हुई चातुर्मास की शुरुआत, अब मांगलिक कार्यों पर लगेगा विराम - Harishayani Ekadashi 2024 - HARISHAYANI EKADASHI 2024

Harishayani Ekadashi 2024, हिंदू धर्म शास्त्री में एकादशी तिथि का बहुत बड़ा महत्व है और चातुर्मास की शुरुआत हरिशयन एकादशी से होती है. इस दिन को शास्त्रों में विशेष माना गया है. आज देवशयनी एकादशी के साथ ही चातुर्मास की शुरुआत हो गई.

Harishayani Ekadashi 2024
हरिशयनी एकादशी का महत्व (FILE PHOTO)
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By ETV Bharat Rajasthan Team

Published : Jul 17, 2024, 6:47 AM IST

बीकानेर. हिंदू धर्म शास्त्रों के मुताबिक चातुर्मास बुधवार से शुरू हो रहा है. आषाढ़ शुक्ल एकादशी से चातुर्मास शुरू होता है. इस एकादशी को हरिशयनी एकादशी या देवशयनी एकादशी भी कहते हैं.

मान्यता है कि इस एकादशी से भगवान विष्णु चार माह के लिए क्षीर सागर में शयन के लिए चले जाते हैं. इसलिए इस एकादशी को हरिशयनी एकादशी कहते हैं. आषाढ शुक्ल पक्ष की एकादशी की रात्रि से कार्तिक शुक्ल एकादशी के दिन तक चार मास में भगवान विष्णु शयन करते हैं.

इसे भी पढ़ें : चार्तुमास 17 जुलाई से, चार महीनों तक शुभकार्य वर्जित, धार्मिक अनुष्ठान के लिए बेहतर समय - good work forbidden

भारी है इस एकादशी का महत्व : वैसे तो हिंदू धर्म शास्त्र में साल में आने वाली 24 एकादशी का महत्व होता है, लेकिन आषाढ़ शुक्ल एकादशी या हरिशयनी एकादशी भगवान विष्णु के शयन से जुड़ी है. वहीं देवउठनी एकादशी कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि के दिन होती है. एकादशी में सबसे उत्तम एकादशी इसको माना जाता है. देवउठनी एकादशी के दिन सृष्टि के पालनहार भगवान विष्णु चार महीने की निद्रा के बाद फिर से जागते हैं. देवउठनी एकादशी के दिन से सारे शुभ काम की शुरुआत हो जाती है.

चार माह का महत्व : पञ्चांगकर्ता पंडित राजेंद्र किराडू कहते हैं कि आषाढ श्रावण, भाद्रपद और कार्तिक चार महीने चातुर्मास के व्रत होते हैं. चार महीनों में देवशयन में चले जाते हैं इसलिए सभी शुभ मांगलिक कार्यक्रम विवाह, यज्ञोपवित मुंडन नवीन गृह प्रवेश वर्जित होते हैं. लेकिन इन दिनों धार्मिक अनुष्ठान रामायण, भागवत् शिव पुराण, नामकरण नक्षत्र शान्ति आदि कर्म करने की शास्त्र में मनाही नहीं है.

इसे भी पढ़ें : अलवर के राजगढ़ में भी निकली भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा, देखें VIDEO - Rath Yatra of Lord Jagannath

बीकानेर. हिंदू धर्म शास्त्रों के मुताबिक चातुर्मास बुधवार से शुरू हो रहा है. आषाढ़ शुक्ल एकादशी से चातुर्मास शुरू होता है. इस एकादशी को हरिशयनी एकादशी या देवशयनी एकादशी भी कहते हैं.

मान्यता है कि इस एकादशी से भगवान विष्णु चार माह के लिए क्षीर सागर में शयन के लिए चले जाते हैं. इसलिए इस एकादशी को हरिशयनी एकादशी कहते हैं. आषाढ शुक्ल पक्ष की एकादशी की रात्रि से कार्तिक शुक्ल एकादशी के दिन तक चार मास में भगवान विष्णु शयन करते हैं.

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भारी है इस एकादशी का महत्व : वैसे तो हिंदू धर्म शास्त्र में साल में आने वाली 24 एकादशी का महत्व होता है, लेकिन आषाढ़ शुक्ल एकादशी या हरिशयनी एकादशी भगवान विष्णु के शयन से जुड़ी है. वहीं देवउठनी एकादशी कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि के दिन होती है. एकादशी में सबसे उत्तम एकादशी इसको माना जाता है. देवउठनी एकादशी के दिन सृष्टि के पालनहार भगवान विष्णु चार महीने की निद्रा के बाद फिर से जागते हैं. देवउठनी एकादशी के दिन से सारे शुभ काम की शुरुआत हो जाती है.

चार माह का महत्व : पञ्चांगकर्ता पंडित राजेंद्र किराडू कहते हैं कि आषाढ श्रावण, भाद्रपद और कार्तिक चार महीने चातुर्मास के व्रत होते हैं. चार महीनों में देवशयन में चले जाते हैं इसलिए सभी शुभ मांगलिक कार्यक्रम विवाह, यज्ञोपवित मुंडन नवीन गृह प्रवेश वर्जित होते हैं. लेकिन इन दिनों धार्मिक अनुष्ठान रामायण, भागवत् शिव पुराण, नामकरण नक्षत्र शान्ति आदि कर्म करने की शास्त्र में मनाही नहीं है.

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