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देश में खत्म हो रहे हैं गधे, हलारी नस्ल को बचाने के प्रयास, जानिए क्यों है 1 लाख रुपए तक इनकी कीमत - HALARI BREED OF DONKEYS

देश में गधों की संख्या लगातार घट रही है. खासकर हलारी नस्ल के गधों की. इसके संरक्षण के लिए सरकार विशेष प्रयास कर रही है.

देश में खत्म हो रहे हैं गधे
देश में खत्म हो रहे हैं गधे (ETV Bharat GFX)
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By ETV Bharat Rajasthan Team

Published : Feb 11, 2025, 6:42 AM IST

बीकानेर : कुछ खास पशुओं की नस्लें, जो कभी बहुत उपयोगी हुआ करती थी वो धीरे-धीरे कम होती जा रही हैं. कुछ ऐसा ही हाल है हलारी नस्ल के गधों का, जो अब विलुप्त होने की कगार पर पहुंच चुके हैं. कभी सिर्फ बोझ ढोने के लिए पहचाने जाने वाले ये खास गधे अब कई उपयोगों में काम आ सकते हैं. इस नस्ल के गधों की घटती संख्या को देखते हुए सरकार इनके संरक्षण के लिए खास कदम उठा रही है.

देश में बचे सिर्फ 439 हलारी नस्ल के गधे : गुजरात के सौराष्ट्र, देवभूमि द्वारका और हलार क्षेत्र में पाए जाने वाले खास हलारी नस्ल के गधे अब देश में सिर्फ 439 रह गए हैं. ये गधे सफेद रंग के, मजबूत होते हैं. इसकी खासियत के कारण इनकी कीमत करीब एक लाख रुपए तक होती है. बीकानेर स्थित राष्ट्रीय अश्व अनुसंधान केंद्र में हलारी नस्ल के 43 गधे सुरक्षित रखे गए हैं. विशेषज्ञों के अनुसार, हलारी नस्ल के गधों का इतिहास काफी पुराना है. इन्हें मुख्य रूप से खेती, परिवहन और व्यापार के लिए उपयोग में लाया जाता था. स्थानीय समुदायों में यह पशु उनकी आजीविका का अहम हिस्सा रहे हैं, लेकिन धीरे-धीरे आधुनिक परिवहन सुविधाओं के आने से इनका उपयोग कम होता गया और इनकी संख्या में लगातार गिरावट देखने को मिलने लगी.

गधों की हलारी नस्ल को बचाने के प्रयास (ETV Bharat Bikaner)

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भारत में घट रही संख्या, दुनिया में बढ़ रही मांग : राष्ट्रीय अश्व अनुसंधान केंद्र के विशेषज्ञ डॉ. शरतचंद्र मेहता बताते हैं कि भारत में जहां गधों की संख्या कम हो रही है, वहीं विदेशों में इनकी मांग बढ़ रही है. दुनिया में गधों का कई तरह से उपयोग किया जाता है, जबकि भारत में यह सीमित है. इस कारण यहां लोग गधों को पालने में रुचि नहीं दिखा रहे हैं. विदेशों में गधों का उपयोग केवल कृषि और परिवहन तक ही सीमित नहीं है, बल्कि इनका दूध, चमड़ी और अन्य उत्पादों मे भी व्यापक उपयोग किया जाता है. उन्होंने बताया कि चीन, सूडान, पाकिस्तान और कई अन्य देशों में गधों की संख्या बढ़ रही है.

हलारी नस्ल को बचाने के प्रयास
हलारी नस्ल को बचाने के प्रयास (ETV Bharat GFX)

संरक्षण और बढ़ोतरी के लिए विशेष योजना : डॉ. शरतचंद्र मेहता ने बताया कि भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद ने गुजरात के भुज और राजस्थान के बीकानेर में हलारी नस्ल के गधों को बचाने के लिए 2023 में एक प्रोजेक्ट शुरू किया था. इसके तहत गधों के पालन, उनकी उपयोगिता और उनके दूध के महत्व को लेकर रिसर्च और प्रशिक्षण कार्यक्रम किए जा रहे हैं. किसानों को इसके फायदे बताकर जागरूक किया जा रहा है. उन्होंने बताया कि इस नस्ल को संरक्षित करने के लिए ब्रीडिंग प्रोग्राम और बेहतर देखभाल की जरूरत है. इस दिशा में सरकार द्वारा विशेष नीति बनाई जा रही है, जिसमें गधों के पालन, प्रजनन और उनकी देखभाल के लिए अनुदान और अन्य सुविधाएं उपलब्ध कराई जाएंगी.

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गधी के दूध के फायदे : उन्होंने बताया कि हलारी नस्ल की गधी रोजाना एक से सवा किलोग्राम तक दूध देती है. यह दूध सौंदर्य प्रसाधनों, त्वचा रोगों और पोषण के लिए फायदेमंद माना जाता है. विशेषज्ञ बताते हैं कि इन गधी के दूध में कम फैट और अधिक विटामिन व अन्य पोषक तत्व पाए जाते हैं. डॉ. शरतचंद्र मेहता ने बताया कि इनके दूध में एंटी-ऑक्सीडेंट और रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने वाले तत्व होते हैं. यूरोप और अमेरिका में इसे सुपरफूड माना जा रहा है. कुछ देशों में तो गधी के दूध से बनी चॉकलेट, पाउडर और अन्य उत्पाद भी बेचे जा रहे हैं, जो बाजार में काफी महंगे मिलते हैं.

किसानों के लिए लाभदायक योजना : इस योजना के शुरू होने के बाद हलारी नस्ल के गधों को पालने वाले किसानों की आमदनी बढ़ी है. अगर एक किसान हलारी नस्ल के पांच गधी को पालता है, तो वह रोजाना 1000 से 1500 रुपए तक कमा सकता है. इसी कारण गुजरात के भुज इलाके में अब गधी के गर्भधारण पर गोद भराई जैसी रस्में भी देखी जा रही हैं. डॉ. शरतचंद्र मेहता ने बताया कि किसानों के लिए यह नई संभावनाएं लेकर आ रहा है. गधी के दूध की मांग बढ़ने से अब इसे व्यवसाय के रूप में अपनाने वाले लोगों की संख्या भी धीरे-धीरे बढ़ रही है. सरकार भी किसानों को इसके प्रति प्रोत्साहित कर रही है, ताकि वे पारंपरिक पशुपालन से आगे बढ़कर नए विकल्पों की ओर रुख कर सकें.

देश में खत्म हो रहे हैं गधे
हलारी नस्ल के गधी के दूध के ये हैं फायदे. (ETV Bharat GFX)

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अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बढ़ती मांग : डॉ. शरतचंद्र मेहता ने बताया कि चीन में गधों की खाल से निकलने वाले एक खास पदार्थ 'इज़िआओ' का उपयोग दवाइयों में किया जाता है. यह पदार्थ इम्युनिटी बढ़ाने और तनाव कम करने में मदद करता है. इसके अलावा, इससे खास तरह की चॉकलेट भी बनाई जाती है, जिसे लोग काफी पसंद कर रहे हैं. इसके अलावा, अफ्रीका और यूरोप के कई देशों में गधी के दूध की खासी मांग है. कॉस्मेटिक इंडस्ट्री में भी इसे महत्वपूर्ण माना जा रहा है, क्योंकि यह त्वचा की देखभाल के लिए फायदेमंद होता है. इससे क्रीम, साबुन और कई अन्य उत्पाद बनाए जाते हैं, जो महंगे दामों पर बेचे जाते हैं.

विशेषज्ञों का मानना है कि यदि हलारी नस्ल के गधों को संरक्षित किया जाए और इनके पालन को बढ़ावा दिया जाए, तो इससे न केवल इनकी संख्या बढ़ेगी, बल्कि किसानों को भी आर्थिक लाभ मिलेगा. इसके लिए सरकार और पशुपालन से जुड़े संगठनों को मिलकर काम करने की जरूरत है. उम्मीद है कि आने वाले समय में हलारी नस्ल के गधों की संख्या बढ़ेगी और यह अनमोल विरासत सुरक्षित रहेगी.

बीकानेर : कुछ खास पशुओं की नस्लें, जो कभी बहुत उपयोगी हुआ करती थी वो धीरे-धीरे कम होती जा रही हैं. कुछ ऐसा ही हाल है हलारी नस्ल के गधों का, जो अब विलुप्त होने की कगार पर पहुंच चुके हैं. कभी सिर्फ बोझ ढोने के लिए पहचाने जाने वाले ये खास गधे अब कई उपयोगों में काम आ सकते हैं. इस नस्ल के गधों की घटती संख्या को देखते हुए सरकार इनके संरक्षण के लिए खास कदम उठा रही है.

देश में बचे सिर्फ 439 हलारी नस्ल के गधे : गुजरात के सौराष्ट्र, देवभूमि द्वारका और हलार क्षेत्र में पाए जाने वाले खास हलारी नस्ल के गधे अब देश में सिर्फ 439 रह गए हैं. ये गधे सफेद रंग के, मजबूत होते हैं. इसकी खासियत के कारण इनकी कीमत करीब एक लाख रुपए तक होती है. बीकानेर स्थित राष्ट्रीय अश्व अनुसंधान केंद्र में हलारी नस्ल के 43 गधे सुरक्षित रखे गए हैं. विशेषज्ञों के अनुसार, हलारी नस्ल के गधों का इतिहास काफी पुराना है. इन्हें मुख्य रूप से खेती, परिवहन और व्यापार के लिए उपयोग में लाया जाता था. स्थानीय समुदायों में यह पशु उनकी आजीविका का अहम हिस्सा रहे हैं, लेकिन धीरे-धीरे आधुनिक परिवहन सुविधाओं के आने से इनका उपयोग कम होता गया और इनकी संख्या में लगातार गिरावट देखने को मिलने लगी.

गधों की हलारी नस्ल को बचाने के प्रयास (ETV Bharat Bikaner)

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भारत में घट रही संख्या, दुनिया में बढ़ रही मांग : राष्ट्रीय अश्व अनुसंधान केंद्र के विशेषज्ञ डॉ. शरतचंद्र मेहता बताते हैं कि भारत में जहां गधों की संख्या कम हो रही है, वहीं विदेशों में इनकी मांग बढ़ रही है. दुनिया में गधों का कई तरह से उपयोग किया जाता है, जबकि भारत में यह सीमित है. इस कारण यहां लोग गधों को पालने में रुचि नहीं दिखा रहे हैं. विदेशों में गधों का उपयोग केवल कृषि और परिवहन तक ही सीमित नहीं है, बल्कि इनका दूध, चमड़ी और अन्य उत्पादों मे भी व्यापक उपयोग किया जाता है. उन्होंने बताया कि चीन, सूडान, पाकिस्तान और कई अन्य देशों में गधों की संख्या बढ़ रही है.

हलारी नस्ल को बचाने के प्रयास
हलारी नस्ल को बचाने के प्रयास (ETV Bharat GFX)

संरक्षण और बढ़ोतरी के लिए विशेष योजना : डॉ. शरतचंद्र मेहता ने बताया कि भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद ने गुजरात के भुज और राजस्थान के बीकानेर में हलारी नस्ल के गधों को बचाने के लिए 2023 में एक प्रोजेक्ट शुरू किया था. इसके तहत गधों के पालन, उनकी उपयोगिता और उनके दूध के महत्व को लेकर रिसर्च और प्रशिक्षण कार्यक्रम किए जा रहे हैं. किसानों को इसके फायदे बताकर जागरूक किया जा रहा है. उन्होंने बताया कि इस नस्ल को संरक्षित करने के लिए ब्रीडिंग प्रोग्राम और बेहतर देखभाल की जरूरत है. इस दिशा में सरकार द्वारा विशेष नीति बनाई जा रही है, जिसमें गधों के पालन, प्रजनन और उनकी देखभाल के लिए अनुदान और अन्य सुविधाएं उपलब्ध कराई जाएंगी.

इसे भी पढ़ें- Hanumangarh Police Searching Donkeys: पुलिस के लिए सिरदर्द बने गधे...जानें पूरा मामला

गधी के दूध के फायदे : उन्होंने बताया कि हलारी नस्ल की गधी रोजाना एक से सवा किलोग्राम तक दूध देती है. यह दूध सौंदर्य प्रसाधनों, त्वचा रोगों और पोषण के लिए फायदेमंद माना जाता है. विशेषज्ञ बताते हैं कि इन गधी के दूध में कम फैट और अधिक विटामिन व अन्य पोषक तत्व पाए जाते हैं. डॉ. शरतचंद्र मेहता ने बताया कि इनके दूध में एंटी-ऑक्सीडेंट और रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने वाले तत्व होते हैं. यूरोप और अमेरिका में इसे सुपरफूड माना जा रहा है. कुछ देशों में तो गधी के दूध से बनी चॉकलेट, पाउडर और अन्य उत्पाद भी बेचे जा रहे हैं, जो बाजार में काफी महंगे मिलते हैं.

किसानों के लिए लाभदायक योजना : इस योजना के शुरू होने के बाद हलारी नस्ल के गधों को पालने वाले किसानों की आमदनी बढ़ी है. अगर एक किसान हलारी नस्ल के पांच गधी को पालता है, तो वह रोजाना 1000 से 1500 रुपए तक कमा सकता है. इसी कारण गुजरात के भुज इलाके में अब गधी के गर्भधारण पर गोद भराई जैसी रस्में भी देखी जा रही हैं. डॉ. शरतचंद्र मेहता ने बताया कि किसानों के लिए यह नई संभावनाएं लेकर आ रहा है. गधी के दूध की मांग बढ़ने से अब इसे व्यवसाय के रूप में अपनाने वाले लोगों की संख्या भी धीरे-धीरे बढ़ रही है. सरकार भी किसानों को इसके प्रति प्रोत्साहित कर रही है, ताकि वे पारंपरिक पशुपालन से आगे बढ़कर नए विकल्पों की ओर रुख कर सकें.

देश में खत्म हो रहे हैं गधे
हलारी नस्ल के गधी के दूध के ये हैं फायदे. (ETV Bharat GFX)

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अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बढ़ती मांग : डॉ. शरतचंद्र मेहता ने बताया कि चीन में गधों की खाल से निकलने वाले एक खास पदार्थ 'इज़िआओ' का उपयोग दवाइयों में किया जाता है. यह पदार्थ इम्युनिटी बढ़ाने और तनाव कम करने में मदद करता है. इसके अलावा, इससे खास तरह की चॉकलेट भी बनाई जाती है, जिसे लोग काफी पसंद कर रहे हैं. इसके अलावा, अफ्रीका और यूरोप के कई देशों में गधी के दूध की खासी मांग है. कॉस्मेटिक इंडस्ट्री में भी इसे महत्वपूर्ण माना जा रहा है, क्योंकि यह त्वचा की देखभाल के लिए फायदेमंद होता है. इससे क्रीम, साबुन और कई अन्य उत्पाद बनाए जाते हैं, जो महंगे दामों पर बेचे जाते हैं.

विशेषज्ञों का मानना है कि यदि हलारी नस्ल के गधों को संरक्षित किया जाए और इनके पालन को बढ़ावा दिया जाए, तो इससे न केवल इनकी संख्या बढ़ेगी, बल्कि किसानों को भी आर्थिक लाभ मिलेगा. इसके लिए सरकार और पशुपालन से जुड़े संगठनों को मिलकर काम करने की जरूरत है. उम्मीद है कि आने वाले समय में हलारी नस्ल के गधों की संख्या बढ़ेगी और यह अनमोल विरासत सुरक्षित रहेगी.

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