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नाम से भी बड़े खुशी के हौसले, हाथ नहीं मुंह से करती है गजब की पेंटिंग, दिव्यांगता की दी मात - Gwalior Divyang Khushi painting

यह बात सही है कि हौसला और हुनर किसी की मोहताज नहीं होती. इस बात को ग्वालियर की 13 साल की खुशी ने चरितार्थ करके दिखाया है. खुशी दिव्यांग है, लेकिन वह अपने मुंह से ब्रश दबाकर ऐसी पेंटिंग करती है, देखने वाले भी दंग हो जाते हैं. पढ़िए खुशी के हौसले और उड़ाने की ये स्टोरी...

GWALIOR DIVYANG KHUSHI PAINTING
नाम से भी बड़े खुशी के हौसले, हाथ नहीं मुंह से करती है गजब की पेंटिंग, दिव्यांगता की दी मात
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By ETV Bharat Madhya Pradesh Team

Published : Mar 31, 2024, 7:31 PM IST

खुशी की गजब पेंटिंग

ग्वालियर। कहते है हुनर हाथों का मोहताज नहीं होता और इस बात का उदाहरण ग्वालियर की खुशी है. जिनका नाम तो छोटा सा है, लेकिन हुनर तारीफ के काबिल है. 13 साल की खुशी बचपन से ही हाथ पैरों से दिव्यांग हैं, लेकिन पेंटिंग की कला में इस कदर माहिर हैं कि वे कई कंपटीशन जीत चुकी हैं. एमपी राजस्थान में उनका सम्मान हो चुका है. आइये एक नजर डालते हैं ईटीवी भारत की इस खास रिपोर्ट पर.

ग्वालियर के नारायण विहार में रहने वाली आरती बराधिया ने कभी नहीं सोचा था कि वे एक दिव्यांग बच्ची को जन्म देंगी, लेकिन भगवान की मर्जी के आगे किसकी चली है. उन्होंने एक बेटी को जन्म दिया. जो दोनों हाथों से दिव्यांग थी. एक हाथ की हथेली नहीं थी और दोनों ही हाथ और पैरों की हड्डियां मुड़ी हुई थी, लेकिन कहते हैं बेटियां अपना भाग्य साथ लेकर आती हैं. ठीक वैसा ही हुआ, दिव्यांग होने के बावजूद बेटी खुशी अपने परिवार में खुशियां देने का काम कर रही है. जहां कई लोग हाथ होने के बाद भी पेंटिंग नहीं कर पाते, वहां 13 वर्ष की खुशी अपने मुंह से गजब की पेंटिंग और स्कैचिंग करती है.

Gwalior Divyang Khushi painting
पीएम मोदी की पेंटिंग बनाती खुशी

पेंटिंग जैसे टफ टास्क को आसानी से करती है खुशी

ईटीवी भारत संवाददाता पीयूष श्रीवास्तव ने भी खुशी से उनके इस टैलेंट को लेकर बात की. खुशी बराधिया कहती है कि, वैसे तो मुंह से पेंटिंग करना बहुत मुश्किल टास्क है, लेकिन उनके लिए मुंह में कलम या ब्रश दबाकर पेंटिंग करना अब बहुत आसान हो गया है, क्योंकि उन्हें अब इसकी आदत हो गई है. वे कहती हैं कि,-" जब मैं छोटी थी और मेरी छोटी बहन स्कूल में पढ़ा करती थी, तो मुझे भी लगता था कि स्कूल जाना है मैं जिद करती थी स्कूल के लिए रोया करती थी. तब मां ने पेंटिंग के लिए कलर्स ला कर दिये थे, कि ड्रॉइंग किया करो जो अच्छा लगे"

मुंह से तैयार किए हैं कई हस्तियों के पोट्रेट पेंटिंग्स

शुरू-शुरू में छोटी मोटी चित्रकारी की, जिसके बाद धीरे धीरे आत्मविश्वास बढ़ता गया. पेंटिंग में सुधार होता गया. खुशी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, मुख्यमंत्री मोहन यादव, शिवराज सिंह, ज्योतिरादित्य सिंधिया समेत कई राजनीतिक और सेलिब्रिटी हस्तियों की पेंटिंग्स बनायी हैं.

सामाजिक संदेश को पेंटिंग के रूप में कागज पर उकेरा

वे सामाजिक संदेश देती जैसे बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ जैसी कलाकृतियां भी कागज पर उकेर चुकी हैं. इसके पीछे की वजह बताते हुए खुशी ने कहा कि,-" बेटियों को लेकर उन्होंने कई पेंटिंग बनायी. जिसके पीछे ये कारण रहा कि आज भी हमारे समाज में बेटियों के साथ अन्याय होता है. उन्हें पढ़ाया लिखाया नहीं जाता. कई बार उनकी पढ़ाई बंद करा दी जाती है. लोग सोचते हैं उनका नाम बेटियां रोशन नहीं कर पायेंगे, लेकिन ऐसा नहीं है, बेटियां भी उनका नाम रोशन करती हैं."

Gwalior Divyang Khushi painting
खुशी ने बनाई एक से बढ़कर एक पेंटिंग्स

पीएम की तस्वीर भी बनायी, उन्हें गिफ्ट करने का है सपना

खुशी कहती है कि "उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तस्वीर बनायी है और उनकी ख्वाहिश है कि वे खुद ये पेंटिंग उन्हें भेंट करना चाहती है, क्योंकि उन्होंने देश के साथ-साथ इस देश की बेटियों के लिए भी बहुत कुछ अच्छा किया है." उन्होंने बताया कि वे ग्वालियर में कई पेंटिंग प्रतियोगिताओं में भाग ले चुकी है. दतिया जिले में उन्हें दो बार सम्मानित किया गया, एक बार पिछली साल चित्तौड़गढ़ में भी उन्हें पेंटिंग कम्पटीशन में सम्मान दिया गया था.

बेटी का मन घर में लगे इसलिए दिये कलर्स

खुशी की मां आरती बराधिया कहती हैं कि, जब उनकी बेटी दिव्यांग हुई तो उसके भविष्य की बहुत चिंता रहती थी. धीरे-धीरे वह बड़ी हुई तो घर में रहती थी. उसका मन नहीं लगता था, क्योंकि इस हालत में स्कूल नहीं जा सकती थी. ऐसे में उन्होंने उसे कलर ला कर दिए थे. खुशी की मां का कहना है कि, उनकी बेटी सारे काम मुंह से कर लेती थी. ऐसे में सोचा कि शायद पेंसिल मुंह में दबाकर कुछ ड्राइंग करने के लिए कहा और जैसा बताया उसने वैसा ही किया, पहले वह गुड्डे गुड्डियों के चित्र बनाती थी, लेकिन जब उसे कुछ अच्छा बनाने को कहा, तो उसने मोबाइल में देख कर अच्छी ड्रॉइंग बनायी.

Gwalior Divyang Khushi painting
मुंह की मदद से पेंटिंग करती खुशी

पेंसिल और पेंट ब्रश को बनाया अपना भविष्य

आरती का कहना है कि बेटी की चित्रकरी देख कर उन्होंने अपने स्कूल जहां वह काम करती है. वहां आयोजित हो रहे एक पेंटिंग प्रतियोगिता में भाग लेने के लिए प्रबंधन से बात की. उसे मौका दिया गया और उसकी बनायी पेंटिंग को प्रथम स्थान और सराहना मिली. जिसके बाद उन्होंने उसे आर्टिस्ट बनाने का फ़ैसला करते हुए आगे सपोर्ट किया. एक दिव्यांग बच्चे को बड़ा करना और उसके भविष्य की चिंता माता-पिता से अधिक किसी को नहीं रहती. इस बारे में आरती कहती हैं कि, -" भविष्य की चिंता हर मां बाप को होती है, लेकिन उनकी बेटी तो खुद ही अपना भविष्य बना रही है. क्योंकि सामान्य बच्चों के लिए भी पैरेंट्स कितना कुछ करते हैं, तब भी कई बार बच्चे सफल नहीं होते लेकिन खुशी हाथ पैर ना होने के बाद भी अपने मुंह से इतना अच्छा कर रही है की वह अपना भविष्य बनाने में सक्षम है."

यहां पढ़ें...

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दिव्यांगता को नहीं बनाने दिया सपनों का रोड़ा

खुशी को पेंटिंग करके जितनी खुशी होती है. उससे भी ज्यादा उसका मनोबल मजबूत हो रहा. जहां हाथ-पैर होने के बाद भी कई बच्चे जीवन में कुछ नहीं कर पाते. वहीं 13 साल की खुशी ने अपने हुनर के जरिये दिव्यांगता को जीवन के आड़े नहीं आने दिया. ये हौसला ना सिर्फ खुशी या उसके परिवार को हिम्मत देता है, बल्कि देश के उन तमाम बच्चों के लिए प्रेरणा है. जो अपना जीवन बेहतर तो करना चाहते हैं, लेकिन उस और कदम नहीं बढ़ा पाते हैं. खुशी को देख कर उन्हें भी इस बात से प्रेरित होना चाहिए कि दिव्यांगता तो अपना हौसला का अपने सपनों का रोड़ा कतई ना बनने दें.

खुशी की गजब पेंटिंग

ग्वालियर। कहते है हुनर हाथों का मोहताज नहीं होता और इस बात का उदाहरण ग्वालियर की खुशी है. जिनका नाम तो छोटा सा है, लेकिन हुनर तारीफ के काबिल है. 13 साल की खुशी बचपन से ही हाथ पैरों से दिव्यांग हैं, लेकिन पेंटिंग की कला में इस कदर माहिर हैं कि वे कई कंपटीशन जीत चुकी हैं. एमपी राजस्थान में उनका सम्मान हो चुका है. आइये एक नजर डालते हैं ईटीवी भारत की इस खास रिपोर्ट पर.

ग्वालियर के नारायण विहार में रहने वाली आरती बराधिया ने कभी नहीं सोचा था कि वे एक दिव्यांग बच्ची को जन्म देंगी, लेकिन भगवान की मर्जी के आगे किसकी चली है. उन्होंने एक बेटी को जन्म दिया. जो दोनों हाथों से दिव्यांग थी. एक हाथ की हथेली नहीं थी और दोनों ही हाथ और पैरों की हड्डियां मुड़ी हुई थी, लेकिन कहते हैं बेटियां अपना भाग्य साथ लेकर आती हैं. ठीक वैसा ही हुआ, दिव्यांग होने के बावजूद बेटी खुशी अपने परिवार में खुशियां देने का काम कर रही है. जहां कई लोग हाथ होने के बाद भी पेंटिंग नहीं कर पाते, वहां 13 वर्ष की खुशी अपने मुंह से गजब की पेंटिंग और स्कैचिंग करती है.

Gwalior Divyang Khushi painting
पीएम मोदी की पेंटिंग बनाती खुशी

पेंटिंग जैसे टफ टास्क को आसानी से करती है खुशी

ईटीवी भारत संवाददाता पीयूष श्रीवास्तव ने भी खुशी से उनके इस टैलेंट को लेकर बात की. खुशी बराधिया कहती है कि, वैसे तो मुंह से पेंटिंग करना बहुत मुश्किल टास्क है, लेकिन उनके लिए मुंह में कलम या ब्रश दबाकर पेंटिंग करना अब बहुत आसान हो गया है, क्योंकि उन्हें अब इसकी आदत हो गई है. वे कहती हैं कि,-" जब मैं छोटी थी और मेरी छोटी बहन स्कूल में पढ़ा करती थी, तो मुझे भी लगता था कि स्कूल जाना है मैं जिद करती थी स्कूल के लिए रोया करती थी. तब मां ने पेंटिंग के लिए कलर्स ला कर दिये थे, कि ड्रॉइंग किया करो जो अच्छा लगे"

मुंह से तैयार किए हैं कई हस्तियों के पोट्रेट पेंटिंग्स

शुरू-शुरू में छोटी मोटी चित्रकारी की, जिसके बाद धीरे धीरे आत्मविश्वास बढ़ता गया. पेंटिंग में सुधार होता गया. खुशी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, मुख्यमंत्री मोहन यादव, शिवराज सिंह, ज्योतिरादित्य सिंधिया समेत कई राजनीतिक और सेलिब्रिटी हस्तियों की पेंटिंग्स बनायी हैं.

सामाजिक संदेश को पेंटिंग के रूप में कागज पर उकेरा

वे सामाजिक संदेश देती जैसे बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ जैसी कलाकृतियां भी कागज पर उकेर चुकी हैं. इसके पीछे की वजह बताते हुए खुशी ने कहा कि,-" बेटियों को लेकर उन्होंने कई पेंटिंग बनायी. जिसके पीछे ये कारण रहा कि आज भी हमारे समाज में बेटियों के साथ अन्याय होता है. उन्हें पढ़ाया लिखाया नहीं जाता. कई बार उनकी पढ़ाई बंद करा दी जाती है. लोग सोचते हैं उनका नाम बेटियां रोशन नहीं कर पायेंगे, लेकिन ऐसा नहीं है, बेटियां भी उनका नाम रोशन करती हैं."

Gwalior Divyang Khushi painting
खुशी ने बनाई एक से बढ़कर एक पेंटिंग्स

पीएम की तस्वीर भी बनायी, उन्हें गिफ्ट करने का है सपना

खुशी कहती है कि "उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तस्वीर बनायी है और उनकी ख्वाहिश है कि वे खुद ये पेंटिंग उन्हें भेंट करना चाहती है, क्योंकि उन्होंने देश के साथ-साथ इस देश की बेटियों के लिए भी बहुत कुछ अच्छा किया है." उन्होंने बताया कि वे ग्वालियर में कई पेंटिंग प्रतियोगिताओं में भाग ले चुकी है. दतिया जिले में उन्हें दो बार सम्मानित किया गया, एक बार पिछली साल चित्तौड़गढ़ में भी उन्हें पेंटिंग कम्पटीशन में सम्मान दिया गया था.

बेटी का मन घर में लगे इसलिए दिये कलर्स

खुशी की मां आरती बराधिया कहती हैं कि, जब उनकी बेटी दिव्यांग हुई तो उसके भविष्य की बहुत चिंता रहती थी. धीरे-धीरे वह बड़ी हुई तो घर में रहती थी. उसका मन नहीं लगता था, क्योंकि इस हालत में स्कूल नहीं जा सकती थी. ऐसे में उन्होंने उसे कलर ला कर दिए थे. खुशी की मां का कहना है कि, उनकी बेटी सारे काम मुंह से कर लेती थी. ऐसे में सोचा कि शायद पेंसिल मुंह में दबाकर कुछ ड्राइंग करने के लिए कहा और जैसा बताया उसने वैसा ही किया, पहले वह गुड्डे गुड्डियों के चित्र बनाती थी, लेकिन जब उसे कुछ अच्छा बनाने को कहा, तो उसने मोबाइल में देख कर अच्छी ड्रॉइंग बनायी.

Gwalior Divyang Khushi painting
मुंह की मदद से पेंटिंग करती खुशी

पेंसिल और पेंट ब्रश को बनाया अपना भविष्य

आरती का कहना है कि बेटी की चित्रकरी देख कर उन्होंने अपने स्कूल जहां वह काम करती है. वहां आयोजित हो रहे एक पेंटिंग प्रतियोगिता में भाग लेने के लिए प्रबंधन से बात की. उसे मौका दिया गया और उसकी बनायी पेंटिंग को प्रथम स्थान और सराहना मिली. जिसके बाद उन्होंने उसे आर्टिस्ट बनाने का फ़ैसला करते हुए आगे सपोर्ट किया. एक दिव्यांग बच्चे को बड़ा करना और उसके भविष्य की चिंता माता-पिता से अधिक किसी को नहीं रहती. इस बारे में आरती कहती हैं कि, -" भविष्य की चिंता हर मां बाप को होती है, लेकिन उनकी बेटी तो खुद ही अपना भविष्य बना रही है. क्योंकि सामान्य बच्चों के लिए भी पैरेंट्स कितना कुछ करते हैं, तब भी कई बार बच्चे सफल नहीं होते लेकिन खुशी हाथ पैर ना होने के बाद भी अपने मुंह से इतना अच्छा कर रही है की वह अपना भविष्य बनाने में सक्षम है."

यहां पढ़ें...

गम के आंसू लिये 7 साल से दिव्यांग पति को गोद में लेकर भटक रही पत्नी, दर्द का 'मरहम' बनने कोई नहीं तैयार

हौसलों की उड़ान! डाउन सिंड्रोम से पीड़ित इंदौर के अवनीश तिवारी को मिलेगा प्रधानमंत्री बाल पुरस्कार, जानिये वंडर ब्वॉय का कमाल

दिव्यांगता को नहीं बनाने दिया सपनों का रोड़ा

खुशी को पेंटिंग करके जितनी खुशी होती है. उससे भी ज्यादा उसका मनोबल मजबूत हो रहा. जहां हाथ-पैर होने के बाद भी कई बच्चे जीवन में कुछ नहीं कर पाते. वहीं 13 साल की खुशी ने अपने हुनर के जरिये दिव्यांगता को जीवन के आड़े नहीं आने दिया. ये हौसला ना सिर्फ खुशी या उसके परिवार को हिम्मत देता है, बल्कि देश के उन तमाम बच्चों के लिए प्रेरणा है. जो अपना जीवन बेहतर तो करना चाहते हैं, लेकिन उस और कदम नहीं बढ़ा पाते हैं. खुशी को देख कर उन्हें भी इस बात से प्रेरित होना चाहिए कि दिव्यांगता तो अपना हौसला का अपने सपनों का रोड़ा कतई ना बनने दें.

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