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गुरु रवीन्द्रनाथ टैगोर ने भरतपुर में किया था दो दिन का प्रवास, यहीं लिखी थी 'नीलमणि' कविता - Guru Rabindranath Birth Anniversary - GURU RABINDRANATH BIRTH ANNIVERSARY

गुरु रवीन्द्रनाथ जयंती हर साल ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार 7 मई को मनाई जाती है. जब भी रवींद्र नाथ टेगोर का जिक्र होता है तो सबसे पहले मस्तिष्क में हमारा राष्ट्रगान कौंधता है, जो उन्हीं की रचना है. गीतांजलि पुस्तक की रचना के कारण 1913 में उनको नोबल पुरस्कार मिला था. आज उनकी जयंती पर जानिए उनका राजस्थान से क्या कनेक्शन था.

GURU RABINDRANATH BIRTH ANNIVERSARY
भरतपुर आए थे रविंद्र नाथ टैगोर (थंबनेल : ईटीवी भारत भरतपुर)
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By ETV Bharat Rajasthan Team

Published : May 7, 2024, 11:05 AM IST

भरतपुर आए थे रविंद्र नाथ टैगोर (वीडियो : ईटीवी भारत भरतपुर)

भरतपुर. हिंदी साहित्य समिति भरतपुर, उत्तर भारत के प्रमुख पुस्तकालयों में से एक है. इसमें 450 वर्ष पुरानी 1500 से अधिक पांडुलिपियां और 33 हजार पुस्तकें सुरक्षित हैं. वर्ष 1927 में समिति का प्रथम अधिवेशन आयोजित हुआ, जिसमें गुरुदेव रवीन्द्र नाथ टैगोर समेत देश के कई नामचीन साहित्यकारों ने भाग लिया था. उस समय गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर ने यहां पर दो दिन तक प्रवास किया था और 'नीलमणि' शीर्षक से कविता की रचना यहीं पर की थी.

Guru Rabindranath Birth Anniversary
रविंद्र नाथ टैगोर दो दिन के लिए रुके थे भरतपुर में (फाइल फोटो)

भरतपुर में लिखी थी नीलमणि कविता : हिंदी साहित्य समिति के लिपिक त्रिलोकीनाथ शर्मा ने बताया कि वर्ष 1927 में हिंदी साहित्य समिति में प्रथम अधिवेशन हुआ था. देश के कई नामचीन साहित्यकार अधिवेशन में शामिल होने पहुंचे थे. गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर भी अधिवेशन में पहुंचे. गुरुदेव ने अधिवेशन के दौरान 30 और 31 मार्च 1927 को यहां प्रवास किया था. गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर को भरतपुर के सेवर फोर्ट में ठहराया गया था. टैगोर ने यहीं पर नीलमणि शीर्षक से कविता का सृजन किया था, जो कि उनकी पुस्तक 'वनवाणी' में शामिल है. जब गुरुदेव रवीन्द्र नाथ टैगोर सेवर में ठहरे हुए थे तो वहां पर अलसी के पौधों में नीले और गुलाबी रंग के फूल लगे हुए थे. गुरुदेव टैगोर इन फूलों को देखकर आनंदित हो गए. कवि रवींद्र नाथ को नीला रंग पसंद था. इन्हीं फूलों से प्रभावित होकर उन्होंने नीलमणि कविता का सृजन किया.

इसे भी पढ़ें- जुनूनी शख्सियत कार्ल मार्क्स ने कहा था-मेहनतकश एकजुट हों, उनके पास जीतने के लिए दुनिया है - Karl Marx birth anniversary

गुरुदेव रवीन्द्रनाथ की नीलमणि कविता :

मंजीरों-मंजीरों फाल्गुन माधुरी के पद मुखर

बजा गए तो नहीं नीलमणि-मंजरियों के गुंजन के स्वर

गगन की गहन-मौन-बहन

जबकि हो उठा दुस्सहन

शून्य नीलिमा वन्य में उमड़ी तब अनंत व्याकुलता,

पुष्प पात्र में भरे उसी की धार नीलमणि की लता।

आज कहां मैं हूं प्रवास में किस के अतिथि सदन में री

बजी नील-लावण्य-मुरलिका तेरी दूर गगन में री

संवत्सर का आयु शेष है,

लिया चैत्र ने मलिन वेश है,

शायद तू रीति है, पुष्पण-समय चुका सा लगता है,

फिर भी यह दर्शन अपूर्व रूपसि, क्यों किसे यह पता है.

भरतपुर आए थे रविंद्र नाथ टैगोर (वीडियो : ईटीवी भारत भरतपुर)

भरतपुर. हिंदी साहित्य समिति भरतपुर, उत्तर भारत के प्रमुख पुस्तकालयों में से एक है. इसमें 450 वर्ष पुरानी 1500 से अधिक पांडुलिपियां और 33 हजार पुस्तकें सुरक्षित हैं. वर्ष 1927 में समिति का प्रथम अधिवेशन आयोजित हुआ, जिसमें गुरुदेव रवीन्द्र नाथ टैगोर समेत देश के कई नामचीन साहित्यकारों ने भाग लिया था. उस समय गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर ने यहां पर दो दिन तक प्रवास किया था और 'नीलमणि' शीर्षक से कविता की रचना यहीं पर की थी.

Guru Rabindranath Birth Anniversary
रविंद्र नाथ टैगोर दो दिन के लिए रुके थे भरतपुर में (फाइल फोटो)

भरतपुर में लिखी थी नीलमणि कविता : हिंदी साहित्य समिति के लिपिक त्रिलोकीनाथ शर्मा ने बताया कि वर्ष 1927 में हिंदी साहित्य समिति में प्रथम अधिवेशन हुआ था. देश के कई नामचीन साहित्यकार अधिवेशन में शामिल होने पहुंचे थे. गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर भी अधिवेशन में पहुंचे. गुरुदेव ने अधिवेशन के दौरान 30 और 31 मार्च 1927 को यहां प्रवास किया था. गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर को भरतपुर के सेवर फोर्ट में ठहराया गया था. टैगोर ने यहीं पर नीलमणि शीर्षक से कविता का सृजन किया था, जो कि उनकी पुस्तक 'वनवाणी' में शामिल है. जब गुरुदेव रवीन्द्र नाथ टैगोर सेवर में ठहरे हुए थे तो वहां पर अलसी के पौधों में नीले और गुलाबी रंग के फूल लगे हुए थे. गुरुदेव टैगोर इन फूलों को देखकर आनंदित हो गए. कवि रवींद्र नाथ को नीला रंग पसंद था. इन्हीं फूलों से प्रभावित होकर उन्होंने नीलमणि कविता का सृजन किया.

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गुरुदेव रवीन्द्रनाथ की नीलमणि कविता :

मंजीरों-मंजीरों फाल्गुन माधुरी के पद मुखर

बजा गए तो नहीं नीलमणि-मंजरियों के गुंजन के स्वर

गगन की गहन-मौन-बहन

जबकि हो उठा दुस्सहन

शून्य नीलिमा वन्य में उमड़ी तब अनंत व्याकुलता,

पुष्प पात्र में भरे उसी की धार नीलमणि की लता।

आज कहां मैं हूं प्रवास में किस के अतिथि सदन में री

बजी नील-लावण्य-मुरलिका तेरी दूर गगन में री

संवत्सर का आयु शेष है,

लिया चैत्र ने मलिन वेश है,

शायद तू रीति है, पुष्पण-समय चुका सा लगता है,

फिर भी यह दर्शन अपूर्व रूपसि, क्यों किसे यह पता है.

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