बीकानेर. गुप्त नवरात्र के आठवें दिन को मां पार्वती के महागौरी स्वरूप की पूजा होती है और नवरात्रि की अष्टमी को दुर्गा अष्टमी कहा जाता है. दुर्गा अष्टमी के दिन देवी के महागौरी के स्वरूप की पूजा होती है.
मां महागौरी की पूजा : अष्टमी को माता को सिंदूर, कुमकुम, लौंग का जोड़ा, इलाइची, लाल चुनरी श्रद्धापूर्वक अर्पित करें. ऐसा करने के बाद माता महागौरी की आरती करें. आरती से पहले दुर्गा चालीसा और दुर्गा सप्तशती का पाठ करना चाहिए.
महातपस्विनी हैं महागौरी : पंचांगकर्ता पंडित राजेंद्र किराडू ने बताया कि गृहस्थ जन और सात्विक पूजा करने वाले लोगों सफेद कमल और मोगरा से देवी महागौरी की पूजा-अर्चना करनी चाहिए. उन्होंने बताया कि महागौरी भगवान शंकर की अर्धांगिनी हैं. देवी महागौरी ने भगवान शिव को पति के रूप में पाने के लिए कठोर तपस्या की और तपस्या के चलते उनका वर्णन काला पड़ गया. प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उनके वर्ण को फिर से गौर कर दिया और वहीं से उनका नाम महागौरी पड़ा.
वृषभ पर सवार मां महागौरी : मां के महागौरी स्वरूप का वर्ण बेहद गोरा है, इसीलिए देवी के इस स्वरूप को महागौरी कहा जाता है. उनके हाथों के डमरू, कक्षमाला, त्रिशूल धारण किए हुए हैं. मां महागौरी को नारियल का भोग लगाना श्रेयस्कर माना जाता है. मान्यता है कि देवी को भोग में नारियल और पुष्प में मोगरा अर्पित करने से वैवाहिक जीवन में मिठास आती है और पाप कर्म से छुटकारा मिलता है. अष्टमी के दिन तंत्र साधना करने वाले साधक के लिए महानिशा पूजा की पूजा का शास्त्रों में उल्लेख मिलता है. यह बलि प्रदान का प्रयोग होता है.
इस मंत्र का करें जप :-
श्वेते वृषे समारूढा श्वेताम्बरधरा शुचिः।
महागौरी शुभं दद्यान्महादेव प्रमोददा॥
या देवी सर्वभूतेषु मां महागौरी रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥