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गोविंद देव, गोपीनाथ और मदन मोहन जी मिलकर बनाते हैं कृष्ण का स्वरूप, एक दिन में दर्शन से पूर्ण होती है मनोकामना - Story of Krishna Idols in Rajasthan

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By ETV Bharat Rajasthan Team

Published : Aug 24, 2024, 9:18 PM IST

Updated : Aug 25, 2024, 10:44 AM IST

मान्यताओं के अनुसार गोविंद देव, गोपीनाथ और मदन मोहन जी के विग्रह को मिलाकर श्रीकृष्ण का सम्पूर्ण स्वरूप बनता है. कहा जाता है कि यदि एक ही दिन में सूर्योदय से सूर्यास्त तक इन तीनों विग्रह के दर्शन किए जाएं, तो मनोकामना पूर्ण होती है.

Main idols of Shri Krishna in Rajasthan
श्रीकृष्ण के राजस्थान में प्रमुख विग्रह (ETV Bharat Jaipur)
भगवान कृष्ण के तीन स्वरूप (वीडियो ईटीवी भारत जयपुर)

जयपुर: जयपुर और करौली में भगवान श्रीकृष्ण के तीन विग्रह मिलकर साक्षात भगवान श्री कृष्ण का स्वरूप बनाते हैं. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार करौली में विराजमान मदन मोहन के विग्रह के चरण भगवान श्रीकृष्ण से मिलते हैं. जयपुर के गोपीनाथ जी विग्रह के वक्षस्थल और बाहु भगवान के स्वरूप से मिलते हैं और गोविन्द देवजी का विग्रह हूबहू भगवान श्रीकृष्ण के मुख मण्डल और नयन से मेल खाता है. मान्यता है कि इन तीनों विग्रह के दर्शन यदि एक दिन में किए जाते हैं, तो भक्त की हर मनोकामना पूर्ण होती है.

देश में इन दिनों जन्माष्टमी की धूम मची हुई है. खासकर राजस्थान की राजधानी जयपुर में. जहां भगवान श्री कृष्ण के कई प्रमुख विग्रह हैं. गोविंद देव जी, गोपीनाथ जी, राधा दामोदर जी, कृष्ण बलराम, आनंद कृष्ण बिहारी और ब्रिज निधि जैसे मंदिरों में आस्था का नाद हो रहा है. हालांकि जयपुर के प्रमुख दो कृष्ण मंदिरों के विग्रह जयपुर में तैयार नहीं हुए बल्कि इन्हें वृंदावन से लाया गया है. गोपीनाथ जी मंदिर महंत सिद्धार्थ गोस्वामी ने बताया कि भगवान श्रीकृष्ण के प्रपौत्र वज्रनाभ ने ये तीनों विग्रह बनवाए थे.

पढ़ें: रंग-बिरंगी पोशाक और आभूषण में सजेंगे नंद लाला, चांदी की ज्वेलरी की खास डिमांड, ऑर्डर पर तैयार हो रहे सोने के आभूषण - Krishna Janmashtami 2024

उन्होंने बताया कि श्रीकृष्ण की बहू और वज्रनाभ की दादी ने भगवान श्रीकृष्ण को देखा था. दादी के बताए अनुसार वज्रनाभ ने उत्तम कारीगरों से विग्रह तैयार करवाया. शुरुआत में जो विग्रह तैयार हुआ, उसे देखकर वज्रनाभ की दादी ने कहा कि भगवान श्रीकृष्ण के पांव और चरण तो उनके जैसे ही हैं. लेकिन अन्य बनावट भगवान से नहीं मिलती. फिर दूसरा विग्रह बनवाया गया, जिसे देखकर दादी ने कहा कि इसके वक्षस्थल और बाहु भगवान स्वरुप हैं, लेकिन बाकी हिस्सा मेल नहीं खाता. फिर तीसरा विग्रह बनवाया गया. उसे देखकर वज्रनाभ की दादी ने घूंघट कर लिया और कहा कि भगवान श्रीकृष्ण का नयनाभिराम मुखारबिन्द ठीक भगवान के समान है.

पढ़ें: बैलगाड़ी, घोड़ा गाड़ी, साइकिल पर सवार लड्डू गोपाल और राधा रानी, नाथद्वारा के इन खास झूलों ने लोगों का मन मोहा - Krishna Janmashtami

वहीं गोविंद देव जी मंदिर के सेवादार अमोल पाठक ने बताया कि इन तीन विग्रहों के दर्शन के लिए रोजाना लाखों भक्त आते हैं. भगवान श्री कृष्ण के तीन विग्रह मिलकर साक्षात भगवान श्री कृष्ण का स्वरूप बनाते हैं. ऐसा माना जाता है कि एक दिन में सूर्य उदय से लेकर सूर्यास्त तक इन तीनों विग्रह का दर्शन करने से भगवान कृष्ण के दर्शन होते हैं और हर मनोकामना पूर्ण होती है.

पढ़ें: कृष्ण जन्माष्टमी पर जयपुर में आधे दिन का रहेगा अवकाश, भजनलाल सरकार ने दिए आदेश - Krishna Janmashtami

वहीं धर्म प्रचारक विजय शंकर पांडेय ने बताया कि जिस तरह भगवान श्रीकृष्ण के तीनों विग्रह के निर्माण का इतिहास है, वैसे ही भगवान के विग्रहों को आतताइयों से सुरक्षित बचाए रखने और इन्हें दोबारा विराजित करने का इतिहास खास है. गोविन्द देवजी, गोपीनाथ जी और मदन मोहन जी का विग्रह करीब 5000 साल पुराना बताया जाता है. 10वीं शताब्दी में मुस्लिम शासक महमूद गजनवी के आक्रमण बढ़े, तो भगवान श्रीकृष्ण के इन विग्रहों को धरती में छुपाकर उस जगह पर संकेत चिह्न अंकित कर दिए गए. कई सालों तक मुस्लिम शासन रहने के कारण पुजारी और भक्त इन विग्रह के बारे में भूल गए. 16वीं सदी में चैतन्य महाप्रभु ने अपने दो शिष्यों रूप गोस्वामी और सनातन गोस्वामी को वृन्दावन भेजा. उन्होंने भूमि में छुपे भगवान के विग्रह को ढूंढकर एक कुटी में प्राण-प्रतिष्ठित किया. आमेर के राजा मानसिंह ने इन मूर्तियों की पूजा-अर्चना की.

वहीं इतिहासकार देवेंद्र कुमार भगत ने बताया कि 1590 में वृन्दावन में लाल पत्थरों का एक सप्तखण्डी भव्य मंदिर बनाकर भगवान के विग्रह को यहां विराजित किया. बाद में उड़ीसा से राधारानी का विग्रह श्री गोविन्द देवजी के साथ प्रतिष्ठित किया गया. लेकिन मुगल शासक औरंगजेब ने ब्रजभूमि के सभी मंदिरों और मूर्तियों को तोड़ने का हुक्म दिया. तो पुजारी शिवराम गोस्वामी और भक्त गोविन्द देवजी, राधारानी और अन्य विग्रहों को लेकर जंगल में जा छिपे. बाद में आमेर के मिर्जा राजा जयसिंह के पुत्र रामसिंह के संरक्षण में ये विग्रह भरतपुर के कामां में लाए गए. यहां राजा मानसिंह ने आमेर घाटी (कनक वृंदावन) में गोविन्द देवजी के विग्रह की प्राण प्रतिष्ठा किया.

एक दिन में दर्शन से पूर्ण होती है मनोकामना
एक दिन में दर्शन से पूर्ण होती है मनोकामना (फोटो ईटीवी भारत जयपुर)

जयपुर बसने के बाद सवाई जयसिंह ने कनक वृंदावन से श्री राधा-गोविन्द के विग्रह को चन्द्रमहल के समीप जयनिवास उद्यान में बने सूर्य महल में प्रतिष्ठित करवाया. चैतन्य महाप्रभु की गौर गोविन्द की लघु प्रतिमा को भी श्री गोविन्द देवजी के पास ही विराजित किया गया. वहीं गोपीनाथजी का विग्रह शेखावाटी सरदारों के संरक्षण में जयपुर आया. जबकि कपटद्वारा में रिकार्ड्स है कि करौली के मदन मोहन जी का विग्रह भी पहले जयपुर ही लाया गया था. हालांकि बाद में करौली के राजा को जयपुर की बेटी ब्याही थी. उनके साथ मदन मोहन जी करौली चले गए. वर्तमान में करौली के राजभवन में ही मदन मोहन जी विराजमान हैं.

बहरहाल, राजस्थान के इन तीनों प्रमुख कृष्ण मंदिरों में जन्माष्टमी की धूम देखने को मिल रही है। जन्माष्टमी पर्व पर लाखों श्रद्धालु इन मंदिरों में पहुंचकर अपने आराध्य के दर्शन करेंगे और मनोकामना मांगेंगे। इस दौरान मंदिर प्रशासन की ओर से भी ठाकुर जी का विशेष शृंगार करते हुए झांकियां सजाई जाएगी.

भगवान कृष्ण के तीन स्वरूप (वीडियो ईटीवी भारत जयपुर)

जयपुर: जयपुर और करौली में भगवान श्रीकृष्ण के तीन विग्रह मिलकर साक्षात भगवान श्री कृष्ण का स्वरूप बनाते हैं. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार करौली में विराजमान मदन मोहन के विग्रह के चरण भगवान श्रीकृष्ण से मिलते हैं. जयपुर के गोपीनाथ जी विग्रह के वक्षस्थल और बाहु भगवान के स्वरूप से मिलते हैं और गोविन्द देवजी का विग्रह हूबहू भगवान श्रीकृष्ण के मुख मण्डल और नयन से मेल खाता है. मान्यता है कि इन तीनों विग्रह के दर्शन यदि एक दिन में किए जाते हैं, तो भक्त की हर मनोकामना पूर्ण होती है.

देश में इन दिनों जन्माष्टमी की धूम मची हुई है. खासकर राजस्थान की राजधानी जयपुर में. जहां भगवान श्री कृष्ण के कई प्रमुख विग्रह हैं. गोविंद देव जी, गोपीनाथ जी, राधा दामोदर जी, कृष्ण बलराम, आनंद कृष्ण बिहारी और ब्रिज निधि जैसे मंदिरों में आस्था का नाद हो रहा है. हालांकि जयपुर के प्रमुख दो कृष्ण मंदिरों के विग्रह जयपुर में तैयार नहीं हुए बल्कि इन्हें वृंदावन से लाया गया है. गोपीनाथ जी मंदिर महंत सिद्धार्थ गोस्वामी ने बताया कि भगवान श्रीकृष्ण के प्रपौत्र वज्रनाभ ने ये तीनों विग्रह बनवाए थे.

पढ़ें: रंग-बिरंगी पोशाक और आभूषण में सजेंगे नंद लाला, चांदी की ज्वेलरी की खास डिमांड, ऑर्डर पर तैयार हो रहे सोने के आभूषण - Krishna Janmashtami 2024

उन्होंने बताया कि श्रीकृष्ण की बहू और वज्रनाभ की दादी ने भगवान श्रीकृष्ण को देखा था. दादी के बताए अनुसार वज्रनाभ ने उत्तम कारीगरों से विग्रह तैयार करवाया. शुरुआत में जो विग्रह तैयार हुआ, उसे देखकर वज्रनाभ की दादी ने कहा कि भगवान श्रीकृष्ण के पांव और चरण तो उनके जैसे ही हैं. लेकिन अन्य बनावट भगवान से नहीं मिलती. फिर दूसरा विग्रह बनवाया गया, जिसे देखकर दादी ने कहा कि इसके वक्षस्थल और बाहु भगवान स्वरुप हैं, लेकिन बाकी हिस्सा मेल नहीं खाता. फिर तीसरा विग्रह बनवाया गया. उसे देखकर वज्रनाभ की दादी ने घूंघट कर लिया और कहा कि भगवान श्रीकृष्ण का नयनाभिराम मुखारबिन्द ठीक भगवान के समान है.

पढ़ें: बैलगाड़ी, घोड़ा गाड़ी, साइकिल पर सवार लड्डू गोपाल और राधा रानी, नाथद्वारा के इन खास झूलों ने लोगों का मन मोहा - Krishna Janmashtami

वहीं गोविंद देव जी मंदिर के सेवादार अमोल पाठक ने बताया कि इन तीन विग्रहों के दर्शन के लिए रोजाना लाखों भक्त आते हैं. भगवान श्री कृष्ण के तीन विग्रह मिलकर साक्षात भगवान श्री कृष्ण का स्वरूप बनाते हैं. ऐसा माना जाता है कि एक दिन में सूर्य उदय से लेकर सूर्यास्त तक इन तीनों विग्रह का दर्शन करने से भगवान कृष्ण के दर्शन होते हैं और हर मनोकामना पूर्ण होती है.

पढ़ें: कृष्ण जन्माष्टमी पर जयपुर में आधे दिन का रहेगा अवकाश, भजनलाल सरकार ने दिए आदेश - Krishna Janmashtami

वहीं धर्म प्रचारक विजय शंकर पांडेय ने बताया कि जिस तरह भगवान श्रीकृष्ण के तीनों विग्रह के निर्माण का इतिहास है, वैसे ही भगवान के विग्रहों को आतताइयों से सुरक्षित बचाए रखने और इन्हें दोबारा विराजित करने का इतिहास खास है. गोविन्द देवजी, गोपीनाथ जी और मदन मोहन जी का विग्रह करीब 5000 साल पुराना बताया जाता है. 10वीं शताब्दी में मुस्लिम शासक महमूद गजनवी के आक्रमण बढ़े, तो भगवान श्रीकृष्ण के इन विग्रहों को धरती में छुपाकर उस जगह पर संकेत चिह्न अंकित कर दिए गए. कई सालों तक मुस्लिम शासन रहने के कारण पुजारी और भक्त इन विग्रह के बारे में भूल गए. 16वीं सदी में चैतन्य महाप्रभु ने अपने दो शिष्यों रूप गोस्वामी और सनातन गोस्वामी को वृन्दावन भेजा. उन्होंने भूमि में छुपे भगवान के विग्रह को ढूंढकर एक कुटी में प्राण-प्रतिष्ठित किया. आमेर के राजा मानसिंह ने इन मूर्तियों की पूजा-अर्चना की.

वहीं इतिहासकार देवेंद्र कुमार भगत ने बताया कि 1590 में वृन्दावन में लाल पत्थरों का एक सप्तखण्डी भव्य मंदिर बनाकर भगवान के विग्रह को यहां विराजित किया. बाद में उड़ीसा से राधारानी का विग्रह श्री गोविन्द देवजी के साथ प्रतिष्ठित किया गया. लेकिन मुगल शासक औरंगजेब ने ब्रजभूमि के सभी मंदिरों और मूर्तियों को तोड़ने का हुक्म दिया. तो पुजारी शिवराम गोस्वामी और भक्त गोविन्द देवजी, राधारानी और अन्य विग्रहों को लेकर जंगल में जा छिपे. बाद में आमेर के मिर्जा राजा जयसिंह के पुत्र रामसिंह के संरक्षण में ये विग्रह भरतपुर के कामां में लाए गए. यहां राजा मानसिंह ने आमेर घाटी (कनक वृंदावन) में गोविन्द देवजी के विग्रह की प्राण प्रतिष्ठा किया.

एक दिन में दर्शन से पूर्ण होती है मनोकामना
एक दिन में दर्शन से पूर्ण होती है मनोकामना (फोटो ईटीवी भारत जयपुर)

जयपुर बसने के बाद सवाई जयसिंह ने कनक वृंदावन से श्री राधा-गोविन्द के विग्रह को चन्द्रमहल के समीप जयनिवास उद्यान में बने सूर्य महल में प्रतिष्ठित करवाया. चैतन्य महाप्रभु की गौर गोविन्द की लघु प्रतिमा को भी श्री गोविन्द देवजी के पास ही विराजित किया गया. वहीं गोपीनाथजी का विग्रह शेखावाटी सरदारों के संरक्षण में जयपुर आया. जबकि कपटद्वारा में रिकार्ड्स है कि करौली के मदन मोहन जी का विग्रह भी पहले जयपुर ही लाया गया था. हालांकि बाद में करौली के राजा को जयपुर की बेटी ब्याही थी. उनके साथ मदन मोहन जी करौली चले गए. वर्तमान में करौली के राजभवन में ही मदन मोहन जी विराजमान हैं.

बहरहाल, राजस्थान के इन तीनों प्रमुख कृष्ण मंदिरों में जन्माष्टमी की धूम देखने को मिल रही है। जन्माष्टमी पर्व पर लाखों श्रद्धालु इन मंदिरों में पहुंचकर अपने आराध्य के दर्शन करेंगे और मनोकामना मांगेंगे। इस दौरान मंदिर प्रशासन की ओर से भी ठाकुर जी का विशेष शृंगार करते हुए झांकियां सजाई जाएगी.

Last Updated : Aug 25, 2024, 10:44 AM IST
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