बीकानेर: स्वामी केशवानंद राजस्थान कृषि विश्वविद्यालय में गुरुवार को 'प्राकृतिक खेती पर जागरूकता कार्यक्रम' पर आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी का राज्यपाल हरिभाऊ बागड़े ने उद्घाटन किया. राज्यपाल ने कहा कि न्यूनतम लागत, अधिक उपज, उच्च गुणवत्ता और स्वच्छ पर्यावरण के लिए प्राकृतिक खेती को अपनाना जरूरी है. उन्होंने चिंता जताते हुए कहा कि आज रासायनिक उर्वरकों के उपयोग से जमीन की उर्वरा शक्ति प्रभावित हुई है. मिट्टी के मित्र कीटाणु और सूक्ष्म जीवों की संख्या में नगण्य रह गई हैं. इन उर्वरकों के कारण आज कैंसर जैसे असाध्य रोग के रोगियों की संख्या लगातार बढ़ रही है.
बढ़ गया रसायनिक उर्वरक का उपयोग: उन्होंने कहा कि 50 साल पहले तक कोई भी रासायनिक उर्वरकों का उपयोग नहीं करता था. परिस्थितिवश इनका उपयोग शुरू हुआ. आज इन उर्वरकों के अनेक दुष्परिणाम हमारे सामने हैं. उन्होंने कहा कि आज इतिहास की पुनरावृत्ति की जरूरत है और जरूरी है की एक बार फिर हम प्राकृतिक खेती की ओर अग्रसर हों. उन्होंने जल संरक्षण को सर्वोच्च प्राथमिकता देने का आह्वान किया और कहा कि गांव का पानी, गांव में ही रुके, ऐसे प्रयास किए जाएं. उन्होंने शून्य खर्च आधारित खेती के बारे में बताया और कहा कि यह भूमि अन्नपूर्णा है. सकारात्मक तरीके से इसका जितना उपयोग करेंगे, यह अधिक लाभ देगी.
अन्नदाता ने की मेहनत: राज्यपाल ने कहा कि एक दौर था जब देश के 40 करोड़ लोगों का पेट भरने हमारे पास पर्याप्त अन्न नहीं था. इस दौर में हमारे अन्नदाताओं ने भरपूर मेहनत की. इसकी बदौलत आज 140 करोड़ देशवासियों का पेट भरने के बाद भी हमारे अन्न के भंडार भरे हुए हैं. उन्होंने कृषि के साथ गोपालन करने का आह्वान किया. प्रदेश की गो आधारित सहकारिता कार्यों की सराहना की और कहा कि कृषि और पशुपालन से किसानों की आय बढ़ेगी. राज्यपाल ने कहा कि विश्वविद्यालय द्वारा आयोजित संगोष्ठी से प्राकृतिक खेती को प्रोत्साहन मिलेगा.
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सरकार का फोकस: संगोष्ठी में केंद्रीय विधि एवं न्याय मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने स्वामी केशवानंद के शिक्षा के विकास में दिए गए योगदान को याद किया और कहा कि 9 दिसंबर 1925 को महाराजा गंगासिंह ने नहर लाने की कार्ययोजना शुरुआत की. उसके 100 वर्ष पूर्ण होने पर 'बीकानेर के सुशासन के सौ वर्ष' कार्यक्रम आयोजित किया जाएगा. इसमें उद्योग, साहित्य, कृषि, पत्रकारिता आदि के क्षेत्र में उल्लखेनीय कार्य करने वाली प्रतिभाओं को सम्मानित किया जाएगा. उन्होंने श्रीअन्न (मोटे अनाज) को प्रोत्साहित करने की आवश्यकता जताई और कहा कि राजस्थानी वनस्पति फोगला, केर, सांगरी और तुंबा आदि पर अनुसंधान किए जाने की जरूरत है.
प्राकृतिक खेती पद्धति प्राचीनतम: केंद्रीय कृषि राज्य मंत्री भागीरथ चौधरी ने कहा कि प्राकृतिक खेती हमारी प्राचीनतम पद्धति है. यह भूमि का प्राकृतिक स्वरूप बनाए रखती है. इस खेती में रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों का उपयोग नहीं किया जाता है. उन्होंने कहा कि आज रासायनिक उर्वरकों के अंधाधुंध उपयोग के कारण भूमि की उर्वरा शक्ति प्रभावित कर रहा है. मानव के अस्तित्व को बनाए रखने के लिए हमें प्राकृतिक खेती की ओर लौटना होगा. उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का स्वप्न है कि देश का किसान खुशहाल हो.
पुस्तक का किया विमोचन: विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ अरुण कुमार ने स्वागत उद्बोधन दिया. उन्होंने विश्वविद्यालय की विभिन्न गतिविधियों के बारे में बताया. साथ ही संगोष्ठी के सत्रों एवं विषयों की जानकारी दी. इस दौरान राज्यपाल बागड़े ने 'फसल अवशेष प्रबंधन हेतु स्टबल चॉपर सह स्प्रेडर' पुस्तक का विमोचन किया. बागड़े ने विश्वविद्यालय द्वारा विकसित स्टबल चॉपर सह स्प्रेडर का लोकार्पण किया और विश्वविद्यालय द्वारा आयोजित प्रदर्शनी का अवलोकन किया.