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हाईकोर्ट ने कहा- सरकारी कर्मचारी से अलग रहने वाली पत्नी के भरण-पोषण भत्ते भुगतान की गाइडलाइन बनाए सरकार

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कर्मचारियों के अलग रह रहे जीवनसाथी को भरण-पोषण भत्ते के भुगतान के लिए उचित नियम और गाइडलाइन बनाने का आदेश दिया.

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इलाहाबाद हाईकोर्ट का आदेश (Photo Credit- ETV Bharat)
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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Oct 16, 2024, 10:23 PM IST

प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने केंद्र सरकार के कार्मिक, लोक शिकायत और पेंशन मंत्रालय के तहत कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग के सचिव तथा प्रदेश सरकार के नियुक्ति एवं कार्मिक विभाग के प्रमुख सचिव को कर्मचारियों के अलग रह रहे जीवनसाथी को भरण-पोषण भत्ते के भुगतान के लिए उचित नियम/मानदंड/दिशा निर्देश बनाने का निर्देश दिया है.

यह आदेश न्यायमूर्ति सौमित्र दयाल सिंह एवं जस्टिस डोनाडी रमेश की खंडपीठ पीठ ने नीरज कुमार ठाकरे उर्फ पिंटू की अपील पर दिया है. कोर्ट ने कहा कि इस तरह की गाइडलाइन से अनावश्यक मुकदमेबाजी से बचा जा सकता है. अपीलार्थी भारतीय सेना में लांस नायक/सिपाही है. उसका वेतन 50 हजार रुपये प्रतिमाह है. पारिवारिक विवाद में सेना अधिनियम के तहत आदेश के तहत सैन्यकर्मियों की पत्नियों और बच्चों को भरण-पोषण भत्ते के भुगतान के अनुसार अपीलार्थी के वेतन की 22 प्रतिशत कटौती पत्नी को देय थी. पति के वेतन से सीधे कटौती की जा रही थी लेकिन पत्नी ने हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 24 के तहत तलाक की कार्यवाही के लंबित रहने के दौरान भरण-पोषण के लिए अर्जी दी.

पत्नी ने घरेलू हिंसा से महिलाओं के संरक्षण अधिनियम 2005 के तहत भी कार्यवाही शुरू की, जिसमें उसने फिर से भरण-पोषण की मांग की. इटावा के पारिवारिक न्यायालय ने दो अलग-अलग आदेशों के तहत पत्नी को पांच हजार रुपये और 11 हजार रुपये प्रतिमाह अंतरिम भरण-पोषण देने का आदेश दिया. इन आदेशों को हाईकोर्ट में चुनौती दी गई. हाईकोर्ट ने सैन्यकर्मियों के लिए बने ऐसे नियमों के अस्तित्व की सराहना करते हुए कहा कि ऐसे मामलों में अंतरिम भरण-पोषण भत्ते के लिए कोई अन्य आदेश की आवश्यकता नहीं हो सकती है, जब तक कटौती (सेवा कानून के तहत) न्यायिक रूप से स्वीकृत मानदंडों से कम न हो या विशेष तथ्यों में अपर्याप्त न दिखाई जाए.

कोर्ट ने कहा कि भरण-पोषण भत्ता स्रोत पर (मासिक वेतन/पेंशन भुगतान से) काटा जाए और आवेदक को, नियोक्ता द्वारा खाते में सीधे भुगतान किया जाए. साथ ही जहां आवेदक पति या पत्नी और बच्चे पति या पत्नी के आश्रितों के रूप में अन्य लाभों के हकदार हैं, उस पति या पत्नी से उचित रियायत मांगी जा सकती है. कोर्ट ने कहा कि जहां पति या पत्नी के सेवा कानून में भरण-पोषण के लिए ऐसा कोई नियम नहीं दिया गया है, वहां भरण-पोषण की राशि पति की आय के वेतन या परिवार की आय (पति और पत्नी के वेतन का योग) का 1/4 या 25 प्रतिशत होनी चाहिए .

कोर्ट ने राज्य के सभी पारिवारिक न्यायालयों के प्रधान न्यायाधीशों को निर्देश जारी किया कि वे रजनेश बनाम नेहा एवं अन्य में सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के अनुसार अंतरिम और अंतिम भरण-पोषण के संबंध में निर्धारित कानून का कड़ाई से पालन करें.

ये भी पढ़ें- श्रीकृष्ण जन्मभूमि-शाही ईदगाह विवाद: हाईकोर्ट में मुस्लिम पक्ष की अर्जी पर फैसला सुरक्षित, सिविल सूट की एक साथ सुनवाई का आदेश वापस लेने की मांग

प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने केंद्र सरकार के कार्मिक, लोक शिकायत और पेंशन मंत्रालय के तहत कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग के सचिव तथा प्रदेश सरकार के नियुक्ति एवं कार्मिक विभाग के प्रमुख सचिव को कर्मचारियों के अलग रह रहे जीवनसाथी को भरण-पोषण भत्ते के भुगतान के लिए उचित नियम/मानदंड/दिशा निर्देश बनाने का निर्देश दिया है.

यह आदेश न्यायमूर्ति सौमित्र दयाल सिंह एवं जस्टिस डोनाडी रमेश की खंडपीठ पीठ ने नीरज कुमार ठाकरे उर्फ पिंटू की अपील पर दिया है. कोर्ट ने कहा कि इस तरह की गाइडलाइन से अनावश्यक मुकदमेबाजी से बचा जा सकता है. अपीलार्थी भारतीय सेना में लांस नायक/सिपाही है. उसका वेतन 50 हजार रुपये प्रतिमाह है. पारिवारिक विवाद में सेना अधिनियम के तहत आदेश के तहत सैन्यकर्मियों की पत्नियों और बच्चों को भरण-पोषण भत्ते के भुगतान के अनुसार अपीलार्थी के वेतन की 22 प्रतिशत कटौती पत्नी को देय थी. पति के वेतन से सीधे कटौती की जा रही थी लेकिन पत्नी ने हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 24 के तहत तलाक की कार्यवाही के लंबित रहने के दौरान भरण-पोषण के लिए अर्जी दी.

पत्नी ने घरेलू हिंसा से महिलाओं के संरक्षण अधिनियम 2005 के तहत भी कार्यवाही शुरू की, जिसमें उसने फिर से भरण-पोषण की मांग की. इटावा के पारिवारिक न्यायालय ने दो अलग-अलग आदेशों के तहत पत्नी को पांच हजार रुपये और 11 हजार रुपये प्रतिमाह अंतरिम भरण-पोषण देने का आदेश दिया. इन आदेशों को हाईकोर्ट में चुनौती दी गई. हाईकोर्ट ने सैन्यकर्मियों के लिए बने ऐसे नियमों के अस्तित्व की सराहना करते हुए कहा कि ऐसे मामलों में अंतरिम भरण-पोषण भत्ते के लिए कोई अन्य आदेश की आवश्यकता नहीं हो सकती है, जब तक कटौती (सेवा कानून के तहत) न्यायिक रूप से स्वीकृत मानदंडों से कम न हो या विशेष तथ्यों में अपर्याप्त न दिखाई जाए.

कोर्ट ने कहा कि भरण-पोषण भत्ता स्रोत पर (मासिक वेतन/पेंशन भुगतान से) काटा जाए और आवेदक को, नियोक्ता द्वारा खाते में सीधे भुगतान किया जाए. साथ ही जहां आवेदक पति या पत्नी और बच्चे पति या पत्नी के आश्रितों के रूप में अन्य लाभों के हकदार हैं, उस पति या पत्नी से उचित रियायत मांगी जा सकती है. कोर्ट ने कहा कि जहां पति या पत्नी के सेवा कानून में भरण-पोषण के लिए ऐसा कोई नियम नहीं दिया गया है, वहां भरण-पोषण की राशि पति की आय के वेतन या परिवार की आय (पति और पत्नी के वेतन का योग) का 1/4 या 25 प्रतिशत होनी चाहिए .

कोर्ट ने राज्य के सभी पारिवारिक न्यायालयों के प्रधान न्यायाधीशों को निर्देश जारी किया कि वे रजनेश बनाम नेहा एवं अन्य में सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के अनुसार अंतरिम और अंतिम भरण-पोषण के संबंध में निर्धारित कानून का कड़ाई से पालन करें.

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