गोरखपुर: विपत्ति के समय सेवा कार्य में जुटने के लिए, लोगों को मदद पहुंचाने के लिए, "भारत सेवा श्रम संघ" की स्थापना राष्ट्र संत स्वामी प्रणवानंद ने किया था. इनका जन्म पश्चिम बंगाल के बाजितपुर गांव में वर्ष 1986 में 14 मई को हुआ था जो अब बांग्लादेश में है. मौजूदा समय में बांग्लादेश में जो स्थिति उत्पन्न हुई है, उसकी वजह से शिवावतारी संत के जन्म स्थान समेत बांग्लादेश में करीब एक दर्जन से अधिक स्थानों पर भारत सेवाश्रम संघ की इकाइयों में किस तरह का कार्य चल रहा है और वहां के साधु संत कितने सुरक्षित हैं, इसको लेकर गोरखपुर इकाई में भी बेचैनी बढ़ी हुई है.
गोरखपुर क्षेत्र के भारत सेवाश्रम संघ के अध्यक्ष स्वामी निषेशानंद ने ईटीवी भारत से बात करते हुए अपनी बेचैनी जाहिर की है. उन्होंने कहा कि जो भी संत हमारे बांग्लादेश के कार्यालय में कार्यरत हैं उनसे संपर्क करने की कोशिश की जा रही है, लेकिन कोई बातचीत नहीं हो पा रही, जिससे मन बहुत चिंतित और परेशान है.
स्वामी प्रणवानंद एक महान संत थे, जिनकी जन्म भूमि बांग्लादेश भले ही आज की तारीख में है लेकिन उन्होंने गोरखपुर के गोरखनाथ मंदिर के तत्कालीन पीठाधीश्वर, योगीराज गंभीर नाथ से अपनी दीक्षा शिक्षा ली थी. यही वजह है कि जब उन्होंने भारत सेवाश्रम संघ की स्थापना की तो उसकी एक इकाई पूर्वांचल को केंद्रित करते हुए गोरखपुर में स्थापित की गई.
स्वामी निषेशानंद ने बताया कि स्वामी प्रणवानंद जाति भेद को मानते नहीं थे. उनके आश्रमों में हिंदू मिलन मंदिर बनाए गए थे, जिनमें जाति भेद को छोड़कर सब हिंदू प्रार्थना करते थे. सबको धर्मशास्त्र की शिक्षा दी जाती थी. इसके बाद उन्होंने हिंदू रक्षा दल भी गठित किया था, जिसका उद्देश्य जातिगत भावना से ऊपर उठकर हिंदू युवकों को व्यायाम और शस्त्र संचालन सिखाकर संगठित करना था.
उन्होंने कहा कि पूरे भारतवर्ष समेत देश-विदेश में भारत सेवाश्रम संघ के कुल 75 आश्रम हैं, जिसके माध्यम से गरीब बच्चों को छात्रावास, होम्योपैथिक चिकित्सालय, बाहर से आने वाले यात्रियों को निवास, कुष्ठ रोगी की सहायता, प्राकृतिक आपदा में सहायता, गरीबों को कंबल कपड़े आदि की सहायता, योग शिविर के अलावा, स्कूलों में गरीब बच्चों को पाठ पुस्तक उपलब्ध कराना, ग्रामीण एंबुलेंस सेवा और आधुनिक शिक्षा प्रणाली में कंप्यूटर शिक्षा भी देने का कार्य इस आश्रम के माध्यम से किया जा रहा है.
उन्होंने बताया कि विदेश में इसकी लंदन, साउथ अमेरिका, कनाडा, न्यूयॉर्क, काठमांडू में तो शाखाएं हैं ही, पश्चिम बंगाल के अलावा बांग्लादेश के वाजितपुर, मादारीपुर, खुलना, आशाशुनि, नऊगाँ और ढाका में भी आश्रम केंद्रित हैं. यही वजह है कि अस्थिर बांग्लादेश में जो स्थितियां हैं, उसमें बांग्लादेश के अंदर की शाखों की कोई सही जानकारी न मिलने से हम सेवाश्रम संघ परिवार के लोग बेहद परेशान हैं.
स्वामी निषेशानंद ने बताया कि स्वामी प्रणवानंद की मृत्यु 8 जनवरी 1941 को हुई थी. उनकी समाधि उनके जन्म स्थान बाजितपुर जो अब बांग्लादेश में है. उनके बताए आदर्शों पर उनके अनुयायी चलने का आज भी कार्य कर रहे हैं. 1913 में उनका आगमन गोरखपुर में हुआ था और विजयदशमी के दूसरे दिन उन्होंने गोरक्ष पीठाधीश्वर बाबा गंभीर नाथ से ब्रह्मचारी की दीक्षा ली थी.
8 महीने का समय गोरखपुर में बिताने के बाद वह अपने गुरु के आदेश से काशी चले गए. फिर वहीं से अपने घर लौट गए. इसके बाद उन्होंने भूखे, गरीबों, असहायों की मदद के लिए अपने गांव में आश्रम स्थापित किया. वर्ष 1919 में बंगाल में आए भीषण चक्रवात में उन्होंने बड़ा सहायता कार्य चलाया था. गया, पुरी, काशी और प्रयागराज का उनका आश्रम लोगों को बड़ी मदद पहुंचाने का मिसाल कायम करता है.
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