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पूर्वांचल के इन मतवालों ने भी जंगे आजादी में निभाई थी अहम भूमिका, अंग्रेजों पर बरपाया था कहर - HEROES OF PURVANCHAL

पढ़ें ; देश की आजादी में पूर्वांचल के वीरों के योगदान और बलिदान को खंगालती ईटीवी भारत की खास रिपोर्ट...

पूर्वांचल के वीर जिन्होंने अंग्रेजों को नाकों चने चबवा दिए.
पूर्वांचल के वीर जिन्होंने अंग्रेजों को नाकों चने चबवा दिए. (Photo Credit : ETV Bharat)
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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Jan 25, 2025, 7:03 PM IST

गोरखपुर : आजादी की लड़ाई में देश के तमाम युवा क्रांतिकारियों, रियासतों के राजाओं समेत अनगिनत योद्धाओं ने अपने प्राणों की आहुति दी थी. अंग्रेजों की गुलामी के खिलाफ संघर्ष में पूर्वांचल के रणबांकुरों का योगदान कम नहीं रहा. पूर्वांचल की धरती के कई लाल आजादी की लड़ाई में शहीद और उनकी अमर गाथा आज भी होती है. पूर्वांचल के ऐसे वीर सपूतों की फेहरिस्त लंबी है. गोरिल्ला युद्ध से अंग्रेजों की नाक में दम कर देने वाले शहीद बंधू सिंह हों या बाबू अक्षयबर सिंह, राजा हरि प्रसाद मल्ल या सचीन्द्रनाथ सान्याल समेत अगणित क्रांतिकारियों ने अपना सर्वस्व लुटा दिया, लेकिन अंग्रेजों की दासता स्वीकार नहीं की.

पंडित राम प्रसाद बिस्मिल की जेल में फांसी और उनके संदेश ने भी पूर्वांचल में अंग्रेजी शासन के खिलाफ विद्रोह तेज हो गया था. 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के समय नरहरपुर स्टेट के राजा हरि प्रसाद मल्ल अंग्रेजी हुकूमत की दासता स्वीकार नहीं किए तो उनका सिर अंग्रेजों ने काट लिया. बनारस षड्यंत्र और काकोरी ट्रेन लूट की योजना बनाने वाले सरदार भगत सिंह के गुरु सचींद्रनाथ सान्याल ने भी इस शहर से क्रान्तिकारी गतिविधियों को आगे बढ़ाया था.

हनुमान प्रसाद पोद्दार जैसे लोगों ने जनचेतना के जरिए लोगों में आजादी की लड़ाई के प्रति लोगों को जागृत किया. देश की आजादी में पूर्वांचल के क्रांतिकारियों की भूमिका नामक पुस्तक की रचना करने वाले डॉ. कृष्ण कुमार पांडेय की पुस्तक में यह सभी साक्ष्य मिलते हैं तो इन शहीदों के परिजन भी इसका उल्लेख करते हैं.


राजा हरिप्रसाद मल्ल: देश की आजादी में गोरखपुर के नरहरपुर स्टेट के राजा हरिप्रसाद मल्ल का भी बड़ा योगदान रहा. बलिया से लेकर पश्चिमी उत्तर प्रदेश तक में स्वतंत्रता आंदोलन की हुंकार चरम पर थी. बिठूर में नानाजी पेशवा अपनी रणनीति से आगे बढ़ रहे थे. झांसी की रानी लक्ष्मीबाई दुर्गा रूप ले चुकी थीं. गोरखपुर के दक्षिणांचल में चिल्लूपार रियासत के राजा हरि प्रसाद मल्ल, मंगल पांडेय समेत कई योद्धा अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ मुखर थे. वर्ष 1857 में आजादी के मतवालों ने अंग्रेजी हुकूमत को चुनौती दी और दोहरीघाट नीली कोठी से आगे बढ़ रही अंग्रेजी सेना के रसद और हथियार छीन लिए.

इससे बौखलाई अंग्रेजी फौज नरहरपुर स्टेट और उसकी छावनी पर तोपों से गोला बारूद का वर्षा कर तबाही मचा दी. राजा इससे तनिक भी विचलित नहीं हुए और उनके सैनिकों ने अंग्रेजों की नील कोठी तबाह कर दी और कई अंग्रेज सैनिक मार गिराए. इस संग्राम में राजा हरि प्रसाद मल्ल भी शहीद हो गए. इसके बाद मंगल पांडेय ने आजादी की चिंगारी बुझने नहीं दी और सरयू नदी के किनारे बड़हलगंज के मौजूदा समय के मुक्तिपथ और तत्कालीन समय के चिल्लूपार में स्थित सैनिक छावनी को उन्होंने तबाह करा दिया. मौजूदा वक्त चिल्लू पार विधानसभा क्षेत्र में राजा हर प्रसाद माल होम्योपैथी मेडिकल कॉलेज की स्थापना प्रदेश की योगी सरकार में हुई है.

क्रांतिकारी बंधू सिंह: ऐसे ही वीर सेनानियों में क्रांतिकारी बंधू सिंह का नाम भी लिया जाता है. बंधू सिंह देवी मां के अनन्य भक्त थे. वह चौरी चौरा की धरती में स्थित वन क्षेत्र में देवी मां का पिंडी रूप बनाकर पूजा अर्चना करते थे. इस दौरान जंगल से गुजरने वाले अंग्रेज सैनिक, दारोगाओं की वह बलि चढ़ा दिया करते थे. उनकी ताकत ऐसी थी कि उनके नेतृत्व में जिलाधिकारी के कार्यालय को कब्जा कर लिया गया था तो सरकारी खजाने को भी लूट लेने का कार्य बंधू सिंह के नेतृत्व में हुआ था, लेकिन एक देशद्रोही के अंग्रेजों से मिल जाने की वजह से वह पकड़े गए और उन्हें फांसी दे दी गई.

इस दौरान भी उनकी देवी मां की भक्ति का जो रूप दिखा उससे अंग्रेज हिल गए. सात बार फांसी का फंदा टूटा, आठवीं बार बंधू सिंह की पुकार पर उन्हें फांसी लगाने में अंग्रेज सफल हो पाए. बंधू सिंह की शहादत से पूर्वांचल में अंग्रेजों का खिलाफ बड़ा माहौल बन गया. फिलहाल केंद्र सरकार ने बंधू सिंह के ऊपर डाक टिकट जारी किया है. वहीं सीएम योगी सरकार ने कई योजनाओं, परियोजनाओं का नाम बंधू सिंह के नाम पर गोरखपुर क्षेत्र में संचालित की हैं.

सचींद्रनाथ सान्याल ने दाउदपुर आवास पर काकोरी ट्रेन लूट की बनाई थी योजना: काकोरी ट्रेन लूट और बनारस षड्यंत्र की सफल योजना बनाने का का काम सचिंद्रनाथ सान्याल ने गोरखपुर से किया था. वह सरदार भगत सिंह के गुरु थे. वह यहीं के सेंट एंड्रयूज काॅलेज में शिक्षक थे. काकोरी कांड की प्लानिंग के साथ लूट के बाद क्रांतिकारी यहीं आकर रुके थे. जिनमें चंद्रशेखर आजाद और रामप्रसाद बिस्मिल जैसे कई क्रांतिकारी शामिल थे.

स्वतंत्रता आंदोलन को गति वह एक शिक्षक रहते दिये. तीन जून 1893 को वाराणसी में जन्मे सान्याल को 50 वर्ष की उम्र में टीबी हो गई थी. सात फरवरी 1942 में उन्होंने दाउदपुर स्थित अपने आवास में आखिरी सांस लीं. उनके बेटे रंजीत और बेटी अंजलि की पढ़ाई की जिम्मेदारी उनके भाई रवींद्र नाथ सान्याल ने उठा रखी थी. रवींद्र व सचींद्र के परिवार का फिलहाल कोई भी गोरखपुर में नहीं रहता. उनकी कुछ संपत्ति 1998 में भारत सेवाश्रम को दान दे दी गई थी. जहां आज की तारीख मेंं स्वामी प्रणवानंद आश्रम है.

सीएम योगी आदित्यनाथ की पहल पर पर्यटन विभाग सचिंद्रनाथ सान्याल सभागार बना रहा है. घर को लाइब्रेरी व वाचनालय और म्यूजियम के रूप में विकसित किया जा रहा है. भारत सेवाश्रम के ट्रस्टी स्वामी नि:श्रेयासानंद ने बताया कि उनकी प्रतिमा आ गई है. वह इस परिसर में स्थापित होगी. वह भगवत गीता पढ़ते थे, बड़े लैंप का उपयोग करते थे, जिसे भी संरक्षित किया जाएगा.


अक्षयवर सिंह: इसी प्रकार अक्षयवर सिंह एक ऐसे स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे जिनके संघर्षों को आदि भी आजादी के परिपेक्ष में याद किया जाता है. उनका जन्म 7 जुलाई 1904 को अरांव जगदीश गांव में हुआ था. बाबा राघव दास और बाबू रघुपति सहाय के मार्गदर्शन में उन्होंने ब्रिटिश शासन का विरोध किया. चौरी चौरा की घटना के बाद उन्होंने 1929 में 'सन्हा सत्याग्रह' का नेतृत्व किया. जिसके लिए उन्हें छह महीने की कैद और 40 रुपये का जुर्माना हुआ.

उन्होंने 1930 और 1931 में 200 कार्यकर्ताओं के साथ नमक सत्याग्रह में भाग लिया. विदेशी कपड़े का बहिष्कार किया और शराब पर प्रतिबंध लगाया. 1932 में 200 स्वयंसेवकों के साथ एक जुलूस निकाला, जिसके कारण उन्हें 5 फरवरी को 2 साल के कठोर कारावास और 400 रुपये के जुर्माने की सजा सुनाई गई. 1934 में आपत्तिजनक भाषणों के कारण उन्हें ब्रिटिश सरकार द्वारा एक और साल की सजा भुगतनी पड़ी. 1941 में उनके व्यक्तिगत आंदोलन के कारण उन्हें रक्षा अधिनियम के तहत 18 महीने की गिरफ्तारी और 250/- का जुर्माना हुआ. 1942 में डोहरिया की घटना के दौरान, उन्होंने पीड़ितों की सहायता की.

इस कारण उन्हें एक बार फिर गिरफ्तार कर लिया गया. षडयंत्र का मामला चला, जिसमें उनके 21 अनुयायियों को 18 महीने के लिए एकांत कारावास में रखा गया. वह जब रिहा हुए तो उन्हें फिर से गिरफ्तार कर लिया गया और 3 साल तक जेल में रखा गया. आजादी के आन्दोलन के दौरान उन्हें सात बार जेल जाना पड़ा. जेल में कैदियों के साथ हो रहे अमानवीय व्यवहार पर चिंता जताने पर उन्हें सजा के तौर पर हथकड़ी और एकांतवास का सामना करना पड़ा.

उन्हें कठोर कारावास की सजा भी मिली. उन्होंने गोरखपुर से रेल इंजनों को स्थानांतरित करने का कड़ा विरोध किया. 9 अक्टूबर 1989 को अक्षयवर सिंह का निधन हो गया. हालांकि वह उत्तर प्रदेश की प्रथम विधानसभा सभा में विधायक निर्वाचित होने में कामयाब रहे.

यह भी पढ़ें : क्या है कालाकांकर राजघराने का इतिहास? लखनऊ के इसी भवन में नेहरू-गांधी करते थे बैठकें, आजादी की लड़ाई का केंद्र रहा - LUCKNOW HERITAGE BUILDING

यह भी पढ़ें : आजादी की लड़ाई में इस वैश्या का भी अहम योगदान, अंग्रेजों से राज उगलवाकर कर मौत की नींद सुला देती थी - अलीगढ़ में आजादी की लड़ाई

गोरखपुर : आजादी की लड़ाई में देश के तमाम युवा क्रांतिकारियों, रियासतों के राजाओं समेत अनगिनत योद्धाओं ने अपने प्राणों की आहुति दी थी. अंग्रेजों की गुलामी के खिलाफ संघर्ष में पूर्वांचल के रणबांकुरों का योगदान कम नहीं रहा. पूर्वांचल की धरती के कई लाल आजादी की लड़ाई में शहीद और उनकी अमर गाथा आज भी होती है. पूर्वांचल के ऐसे वीर सपूतों की फेहरिस्त लंबी है. गोरिल्ला युद्ध से अंग्रेजों की नाक में दम कर देने वाले शहीद बंधू सिंह हों या बाबू अक्षयबर सिंह, राजा हरि प्रसाद मल्ल या सचीन्द्रनाथ सान्याल समेत अगणित क्रांतिकारियों ने अपना सर्वस्व लुटा दिया, लेकिन अंग्रेजों की दासता स्वीकार नहीं की.

पंडित राम प्रसाद बिस्मिल की जेल में फांसी और उनके संदेश ने भी पूर्वांचल में अंग्रेजी शासन के खिलाफ विद्रोह तेज हो गया था. 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के समय नरहरपुर स्टेट के राजा हरि प्रसाद मल्ल अंग्रेजी हुकूमत की दासता स्वीकार नहीं किए तो उनका सिर अंग्रेजों ने काट लिया. बनारस षड्यंत्र और काकोरी ट्रेन लूट की योजना बनाने वाले सरदार भगत सिंह के गुरु सचींद्रनाथ सान्याल ने भी इस शहर से क्रान्तिकारी गतिविधियों को आगे बढ़ाया था.

हनुमान प्रसाद पोद्दार जैसे लोगों ने जनचेतना के जरिए लोगों में आजादी की लड़ाई के प्रति लोगों को जागृत किया. देश की आजादी में पूर्वांचल के क्रांतिकारियों की भूमिका नामक पुस्तक की रचना करने वाले डॉ. कृष्ण कुमार पांडेय की पुस्तक में यह सभी साक्ष्य मिलते हैं तो इन शहीदों के परिजन भी इसका उल्लेख करते हैं.


राजा हरिप्रसाद मल्ल: देश की आजादी में गोरखपुर के नरहरपुर स्टेट के राजा हरिप्रसाद मल्ल का भी बड़ा योगदान रहा. बलिया से लेकर पश्चिमी उत्तर प्रदेश तक में स्वतंत्रता आंदोलन की हुंकार चरम पर थी. बिठूर में नानाजी पेशवा अपनी रणनीति से आगे बढ़ रहे थे. झांसी की रानी लक्ष्मीबाई दुर्गा रूप ले चुकी थीं. गोरखपुर के दक्षिणांचल में चिल्लूपार रियासत के राजा हरि प्रसाद मल्ल, मंगल पांडेय समेत कई योद्धा अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ मुखर थे. वर्ष 1857 में आजादी के मतवालों ने अंग्रेजी हुकूमत को चुनौती दी और दोहरीघाट नीली कोठी से आगे बढ़ रही अंग्रेजी सेना के रसद और हथियार छीन लिए.

इससे बौखलाई अंग्रेजी फौज नरहरपुर स्टेट और उसकी छावनी पर तोपों से गोला बारूद का वर्षा कर तबाही मचा दी. राजा इससे तनिक भी विचलित नहीं हुए और उनके सैनिकों ने अंग्रेजों की नील कोठी तबाह कर दी और कई अंग्रेज सैनिक मार गिराए. इस संग्राम में राजा हरि प्रसाद मल्ल भी शहीद हो गए. इसके बाद मंगल पांडेय ने आजादी की चिंगारी बुझने नहीं दी और सरयू नदी के किनारे बड़हलगंज के मौजूदा समय के मुक्तिपथ और तत्कालीन समय के चिल्लूपार में स्थित सैनिक छावनी को उन्होंने तबाह करा दिया. मौजूदा वक्त चिल्लू पार विधानसभा क्षेत्र में राजा हर प्रसाद माल होम्योपैथी मेडिकल कॉलेज की स्थापना प्रदेश की योगी सरकार में हुई है.

क्रांतिकारी बंधू सिंह: ऐसे ही वीर सेनानियों में क्रांतिकारी बंधू सिंह का नाम भी लिया जाता है. बंधू सिंह देवी मां के अनन्य भक्त थे. वह चौरी चौरा की धरती में स्थित वन क्षेत्र में देवी मां का पिंडी रूप बनाकर पूजा अर्चना करते थे. इस दौरान जंगल से गुजरने वाले अंग्रेज सैनिक, दारोगाओं की वह बलि चढ़ा दिया करते थे. उनकी ताकत ऐसी थी कि उनके नेतृत्व में जिलाधिकारी के कार्यालय को कब्जा कर लिया गया था तो सरकारी खजाने को भी लूट लेने का कार्य बंधू सिंह के नेतृत्व में हुआ था, लेकिन एक देशद्रोही के अंग्रेजों से मिल जाने की वजह से वह पकड़े गए और उन्हें फांसी दे दी गई.

इस दौरान भी उनकी देवी मां की भक्ति का जो रूप दिखा उससे अंग्रेज हिल गए. सात बार फांसी का फंदा टूटा, आठवीं बार बंधू सिंह की पुकार पर उन्हें फांसी लगाने में अंग्रेज सफल हो पाए. बंधू सिंह की शहादत से पूर्वांचल में अंग्रेजों का खिलाफ बड़ा माहौल बन गया. फिलहाल केंद्र सरकार ने बंधू सिंह के ऊपर डाक टिकट जारी किया है. वहीं सीएम योगी सरकार ने कई योजनाओं, परियोजनाओं का नाम बंधू सिंह के नाम पर गोरखपुर क्षेत्र में संचालित की हैं.

सचींद्रनाथ सान्याल ने दाउदपुर आवास पर काकोरी ट्रेन लूट की बनाई थी योजना: काकोरी ट्रेन लूट और बनारस षड्यंत्र की सफल योजना बनाने का का काम सचिंद्रनाथ सान्याल ने गोरखपुर से किया था. वह सरदार भगत सिंह के गुरु थे. वह यहीं के सेंट एंड्रयूज काॅलेज में शिक्षक थे. काकोरी कांड की प्लानिंग के साथ लूट के बाद क्रांतिकारी यहीं आकर रुके थे. जिनमें चंद्रशेखर आजाद और रामप्रसाद बिस्मिल जैसे कई क्रांतिकारी शामिल थे.

स्वतंत्रता आंदोलन को गति वह एक शिक्षक रहते दिये. तीन जून 1893 को वाराणसी में जन्मे सान्याल को 50 वर्ष की उम्र में टीबी हो गई थी. सात फरवरी 1942 में उन्होंने दाउदपुर स्थित अपने आवास में आखिरी सांस लीं. उनके बेटे रंजीत और बेटी अंजलि की पढ़ाई की जिम्मेदारी उनके भाई रवींद्र नाथ सान्याल ने उठा रखी थी. रवींद्र व सचींद्र के परिवार का फिलहाल कोई भी गोरखपुर में नहीं रहता. उनकी कुछ संपत्ति 1998 में भारत सेवाश्रम को दान दे दी गई थी. जहां आज की तारीख मेंं स्वामी प्रणवानंद आश्रम है.

सीएम योगी आदित्यनाथ की पहल पर पर्यटन विभाग सचिंद्रनाथ सान्याल सभागार बना रहा है. घर को लाइब्रेरी व वाचनालय और म्यूजियम के रूप में विकसित किया जा रहा है. भारत सेवाश्रम के ट्रस्टी स्वामी नि:श्रेयासानंद ने बताया कि उनकी प्रतिमा आ गई है. वह इस परिसर में स्थापित होगी. वह भगवत गीता पढ़ते थे, बड़े लैंप का उपयोग करते थे, जिसे भी संरक्षित किया जाएगा.


अक्षयवर सिंह: इसी प्रकार अक्षयवर सिंह एक ऐसे स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे जिनके संघर्षों को आदि भी आजादी के परिपेक्ष में याद किया जाता है. उनका जन्म 7 जुलाई 1904 को अरांव जगदीश गांव में हुआ था. बाबा राघव दास और बाबू रघुपति सहाय के मार्गदर्शन में उन्होंने ब्रिटिश शासन का विरोध किया. चौरी चौरा की घटना के बाद उन्होंने 1929 में 'सन्हा सत्याग्रह' का नेतृत्व किया. जिसके लिए उन्हें छह महीने की कैद और 40 रुपये का जुर्माना हुआ.

उन्होंने 1930 और 1931 में 200 कार्यकर्ताओं के साथ नमक सत्याग्रह में भाग लिया. विदेशी कपड़े का बहिष्कार किया और शराब पर प्रतिबंध लगाया. 1932 में 200 स्वयंसेवकों के साथ एक जुलूस निकाला, जिसके कारण उन्हें 5 फरवरी को 2 साल के कठोर कारावास और 400 रुपये के जुर्माने की सजा सुनाई गई. 1934 में आपत्तिजनक भाषणों के कारण उन्हें ब्रिटिश सरकार द्वारा एक और साल की सजा भुगतनी पड़ी. 1941 में उनके व्यक्तिगत आंदोलन के कारण उन्हें रक्षा अधिनियम के तहत 18 महीने की गिरफ्तारी और 250/- का जुर्माना हुआ. 1942 में डोहरिया की घटना के दौरान, उन्होंने पीड़ितों की सहायता की.

इस कारण उन्हें एक बार फिर गिरफ्तार कर लिया गया. षडयंत्र का मामला चला, जिसमें उनके 21 अनुयायियों को 18 महीने के लिए एकांत कारावास में रखा गया. वह जब रिहा हुए तो उन्हें फिर से गिरफ्तार कर लिया गया और 3 साल तक जेल में रखा गया. आजादी के आन्दोलन के दौरान उन्हें सात बार जेल जाना पड़ा. जेल में कैदियों के साथ हो रहे अमानवीय व्यवहार पर चिंता जताने पर उन्हें सजा के तौर पर हथकड़ी और एकांतवास का सामना करना पड़ा.

उन्हें कठोर कारावास की सजा भी मिली. उन्होंने गोरखपुर से रेल इंजनों को स्थानांतरित करने का कड़ा विरोध किया. 9 अक्टूबर 1989 को अक्षयवर सिंह का निधन हो गया. हालांकि वह उत्तर प्रदेश की प्रथम विधानसभा सभा में विधायक निर्वाचित होने में कामयाब रहे.

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