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काशी में रंगभरी पर्व पर बाबा विश्वनाथ पहनते हैं खादी के कपड़े, जानिए देश की आजादी से जुड़ी स्पेशल स्टोरी

वाराणसी में रंग भरी एकादशी पर्व 20 मार्च का मनाया जाएगा. हम आपको इस पर्व से जुड़ी एक देश भक्ति की कहानी बताने जा रहा है, जो सीधे बाबा विश्वनाथ से जुड़ी है.

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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Mar 16, 2024, 6:06 PM IST

जानकारी देता संजीव रतन मिश्र

वाराणसी: धर्म और आस्था की नगरी काशी में ऐसे तो आपको एक से बढ़कर एक किस्से कहानियां सुनने को मिलेंगे, लेकिन अनादिकाल से पृथ्वी पर मौजूद इकलौते जीवंत शहर के रूप में पहचान बनाने वाले इस शहर की गली-गली में ऐसी कहानियां हैं, जिसे सुनकर आप भी काशी की गलियों में खो कर रह जाएंगे. आज हम आपको एक ऐसी ही देश भक्ति की कहानी सुनाएंगे. जो सीधे बाबा विश्वनाथ से जुड़ी है.

यह कहानी आजादी के संघर्षों के साथ बाबा की उस परंपरा से जुड़ी है, जिसे आज भी निभाया जाता है. सबसे बड़ी बात यह है कि बाबा से जुड़ी यह कहानी रंग भरी एकादशी पर्व पर बेहद महत्वपूर्ण है. 20 मार्च को इस बार यह त्यौहार मनाया जाएगा. इसके लिए काशी तैयारी में जुटी हुई है बाबा विश्वनाथ माता पार्वती का गौना लेकर निकलेंगे और भक्त उन पर अबीर गुलाल चढ़ाकर अपनी होली की शुरुआत करेंगे.

गभरी एकादशी यानी अमला एकादशी 20 मार्च को है. यह दिन काशी के लिए बेहद खास होता है, क्योंकि लोक मान्यताओं के अनुसार भोलेनाथ अपनी अर्धांगिनी माता पार्वती को लेकर इसी दिन कैलाश पर्वत के लिए रवाना हुए थे. यानी आज माता पार्वती के विदाई का दिन है और काशी में इस पर्व को धूमधाम से मनाया जाता है. बीते 360 सालों से काशी विश्वनाथ मंदिर के महंत परिवार की तरफ से इस परंपरा को निभाया जा रहा है.

धर्म और आध्यात्मिक की नगरी वाराणसी के इस महापर्व और बाबा विश्वनाथ की चाल रजत प्रतिमा का जहां धार्मिक मान्यताओं से जुड़ाव है तो वही आजादी के संघर्ष से बाबा विश्वनाथ का भी सीधा जुड़ाव है. इसकी बड़ी वजह यह है कि बाबा विश्वनाथ रंगभरी के दिन माता पार्वती और भगवान गणेश के साथ जो वस्त्र पहनते हैं वह खादी के वस्त्र होते हैं. बाबा विश्वनाथ माता पार्वती और भगवान गणेश को खादी के वस्त्र इसलिए पहनाए जाते हैं, क्योंकि देश की आजादी की लड़ाई के वक्त धर्म के साथ आजादी के संघर्ष को जोड़कर लोगों में राष्ट्रभक्ति की भावना जगाने के उद्देश्य से उस वक्त पंडित जवाहरलाल नेहरु की माता जी स्वरूप रानी नेहरू ने 1936 में काशी आकर इस परम्परा की शुरुआत की थी.

इस त्यौहार के वक्त लोगों को देश भक्ति के आंदोलन से जोड़ने और राष्ट्रभक्ति की भावना जागृत करने के उद्देश्य से बाबा भोलेनाथ, माता पार्वती और भगवान गणेश जी को उस वक़्त उन्होंने खादी के वस्त्र पहनाने की अपील की थी. अंग्रेजों के खिलाफ सीधे तौर पर लड़ाई लड़ रहे हैं क्रांतिकारी और अपने परिवार के लोगों को धर्म और आस्था के साथ जोड़कर अंग्रेजों को परेशान करने के लिए बाबा को खादी के वस्त्र बनाए गए थे. उस वक्त इन्हीं पर्वों के सहारे क्रांतिकारी भी एक दूसरे से भीड़ में मिल लिया करते थे और सूचनाओं का भी आदान-प्रदान होता था.

उस वक्त महंत परिवार ने सहमति जताते हुए उस वक्त से अब तक खादी के वस्त्र ही बाबा को पहनाना जारी रखा है. महंत परिवार से जुड़े संजीव रत्न मिश्र का कहना है कि बाबा भोलेनाथ और माता पार्वती के साथ ही भगवान गणेश के लिए खास तौर पर खादी ग्राम उद्योग से कपड़े आते हैं. इस कपड़े को बनारस के किशनलाल बीते 32 सालों से भी अधिक वक्त से सीते आ रहे हैं. इस बार गुजरात की एक भक्त के द्वारा काठियावाड़ से खास तौर पर गुजराती खादी के वस्त्र माता पार्वती के लिए भेजे जा रहे हैं.

ये भी पढ़ें- रामपुर में डूंगरपुर प्रकरण में आजम खान सहित 4 आरोपी दोषी करार, 18 मार्च को सजा पर होगी सुनवाई

जानकारी देता संजीव रतन मिश्र

वाराणसी: धर्म और आस्था की नगरी काशी में ऐसे तो आपको एक से बढ़कर एक किस्से कहानियां सुनने को मिलेंगे, लेकिन अनादिकाल से पृथ्वी पर मौजूद इकलौते जीवंत शहर के रूप में पहचान बनाने वाले इस शहर की गली-गली में ऐसी कहानियां हैं, जिसे सुनकर आप भी काशी की गलियों में खो कर रह जाएंगे. आज हम आपको एक ऐसी ही देश भक्ति की कहानी सुनाएंगे. जो सीधे बाबा विश्वनाथ से जुड़ी है.

यह कहानी आजादी के संघर्षों के साथ बाबा की उस परंपरा से जुड़ी है, जिसे आज भी निभाया जाता है. सबसे बड़ी बात यह है कि बाबा से जुड़ी यह कहानी रंग भरी एकादशी पर्व पर बेहद महत्वपूर्ण है. 20 मार्च को इस बार यह त्यौहार मनाया जाएगा. इसके लिए काशी तैयारी में जुटी हुई है बाबा विश्वनाथ माता पार्वती का गौना लेकर निकलेंगे और भक्त उन पर अबीर गुलाल चढ़ाकर अपनी होली की शुरुआत करेंगे.

गभरी एकादशी यानी अमला एकादशी 20 मार्च को है. यह दिन काशी के लिए बेहद खास होता है, क्योंकि लोक मान्यताओं के अनुसार भोलेनाथ अपनी अर्धांगिनी माता पार्वती को लेकर इसी दिन कैलाश पर्वत के लिए रवाना हुए थे. यानी आज माता पार्वती के विदाई का दिन है और काशी में इस पर्व को धूमधाम से मनाया जाता है. बीते 360 सालों से काशी विश्वनाथ मंदिर के महंत परिवार की तरफ से इस परंपरा को निभाया जा रहा है.

धर्म और आध्यात्मिक की नगरी वाराणसी के इस महापर्व और बाबा विश्वनाथ की चाल रजत प्रतिमा का जहां धार्मिक मान्यताओं से जुड़ाव है तो वही आजादी के संघर्ष से बाबा विश्वनाथ का भी सीधा जुड़ाव है. इसकी बड़ी वजह यह है कि बाबा विश्वनाथ रंगभरी के दिन माता पार्वती और भगवान गणेश के साथ जो वस्त्र पहनते हैं वह खादी के वस्त्र होते हैं. बाबा विश्वनाथ माता पार्वती और भगवान गणेश को खादी के वस्त्र इसलिए पहनाए जाते हैं, क्योंकि देश की आजादी की लड़ाई के वक्त धर्म के साथ आजादी के संघर्ष को जोड़कर लोगों में राष्ट्रभक्ति की भावना जगाने के उद्देश्य से उस वक्त पंडित जवाहरलाल नेहरु की माता जी स्वरूप रानी नेहरू ने 1936 में काशी आकर इस परम्परा की शुरुआत की थी.

इस त्यौहार के वक्त लोगों को देश भक्ति के आंदोलन से जोड़ने और राष्ट्रभक्ति की भावना जागृत करने के उद्देश्य से बाबा भोलेनाथ, माता पार्वती और भगवान गणेश जी को उस वक़्त उन्होंने खादी के वस्त्र पहनाने की अपील की थी. अंग्रेजों के खिलाफ सीधे तौर पर लड़ाई लड़ रहे हैं क्रांतिकारी और अपने परिवार के लोगों को धर्म और आस्था के साथ जोड़कर अंग्रेजों को परेशान करने के लिए बाबा को खादी के वस्त्र बनाए गए थे. उस वक्त इन्हीं पर्वों के सहारे क्रांतिकारी भी एक दूसरे से भीड़ में मिल लिया करते थे और सूचनाओं का भी आदान-प्रदान होता था.

उस वक्त महंत परिवार ने सहमति जताते हुए उस वक्त से अब तक खादी के वस्त्र ही बाबा को पहनाना जारी रखा है. महंत परिवार से जुड़े संजीव रत्न मिश्र का कहना है कि बाबा भोलेनाथ और माता पार्वती के साथ ही भगवान गणेश के लिए खास तौर पर खादी ग्राम उद्योग से कपड़े आते हैं. इस कपड़े को बनारस के किशनलाल बीते 32 सालों से भी अधिक वक्त से सीते आ रहे हैं. इस बार गुजरात की एक भक्त के द्वारा काठियावाड़ से खास तौर पर गुजराती खादी के वस्त्र माता पार्वती के लिए भेजे जा रहे हैं.

ये भी पढ़ें- रामपुर में डूंगरपुर प्रकरण में आजम खान सहित 4 आरोपी दोषी करार, 18 मार्च को सजा पर होगी सुनवाई

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