नई दिल्लीः एनसीपी अजीत पवार गुट के वरिष्ठ नेता छगन भुजबल को राहत देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को प्रवर्तन निदेशालय द्वारा दायर उस याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया, जिसमें मनी लॉन्ड्रिंग मामले में उन्हें दी गई जमानत को चुनौती दी गई थी. न्यायमूर्ति अभय एस ओका और न्यायमूर्ति उज्जल भुइयां की पीठ ने उनकी जमानत के खिलाफ ईडी की याचिका खारिज करते हुए उन्हें राहत प्रदान की, लेकिन मामले में उनकी गिरफ्तारी को चुनौती देने वाली भुजबल की याचिका खारिज कर दी.
पीठ ने कहा कि उन्हें 2018 में जमानत पर रिहा किया गया था और वर्तमान चरण में उनकी गिरफ्तारी की अवैधता के सवाल पर विचार करना आवश्यक नहीं है. पीठ ने कहा, "जमानत देने के आदेश वर्ष 2018 में ही पारित किए जा चुके हैं. इसलिए, संविधान के अनुच्छेद 136 के तहत इस चरण में हस्तक्षेप का कोई मामला नहीं बनता है. विशेष अनुमति याचिका खारिज की जाती है."
क्या है मामलाः मई 2018 में बॉम्बे हाईकोर्ट ने मनी लॉन्ड्रिंग मामले में भुजबल को जमानत दी थी. ईडी ने महाराष्ट्र के पूर्व उपमुख्यमंत्री को गिरफ्तार किया था, जब जांच में पता चला कि उन्होंने और उनके सहयोगियों ने कथित तौर पर अपने पद का दुरुपयोग किया और सरकार को वित्तीय नुकसान पहुंचाया है.
क्या है ईडी के आरोपः ईडी ने दावा किया था कि भुजबल ने नई दिल्ली में महाराष्ट्र सदन के निर्माण सहित निर्माण और विकास कार्यों से संबंधित ठेके एक विशेष फर्म को दिए थे, जिसके बदले में उन्होंने अपने और अपने परिवार के लिए रिश्वत ली थी. केंद्रीय एजेंसी ने आरोप लगाया था कि भुजबल और उनके भतीजे समीर भुजबल इस तरह के पैसे को अपने स्वामित्व वाली अवैध कंपनियों में भेजते थे.
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