पटना : नालंदा विश्वविद्यालय की चर्चा होती है या फिर जेहन में आता है तो सामने खंडहर दिखता है. लेकिन सही मायने में यह खंडहर शुरू से नहीं था. यहां एक समृद्ध शिक्षा की पूरी व्यवस्था थी. वह शिक्षण संस्थान था जिसने पूरे विश्व में ज्ञान की अलख जगाई थी. वह संस्थान जहां 10,000 विद्यार्थी पढ़ा करते थे और 2000 शिक्षक पढ़ाया करते थे.
विश्व का पहला विश्वविद्यालय था नालंदा : नालंदा विश्वविद्यालय विश्व का पहला आवासीय विश्वविद्यालय था. इसकी स्थापना 450 ईस्वी में हुई थी. नालंदा की स्थापना पांचवी शताब्दी में गुप्त वंश के शासक सम्राट कुमार गुप्त ने किया था. उनके बाद नालंदा विश्वविद्यालय का पूरा संरक्षण सम्राट हर्षवर्धन और पाल शासकों का रहा था. इस बात का यह सबूत है कि जब नालंदा में खुदाई हो रही थी तो, ऐसी कई मुद्राएं मिलीं और पुष्टि हुई कि इस विश्वविद्यालय के संरक्षण में पाल शासकों और गुप्त शासकों का खास योगदान था.
5वीं सदी में कई विषयों की होती थी पढ़ाई : आज भले देश में कई ऐसे संस्थान अलग-अलग विषयों के लिए बने हुए हैं. लेकिन, पांचवीं सदी में नालंदा विश्वविद्यालय एकमात्र ऐसी संस्था थी जहां लिटरेचर, एस्ट्रोलॉजी, साइकोलॉजी, लॉ, एस्ट्रोनॉमी, साइंस, वाॅरफेयर, हिस्ट्री, गणित, आर्किटेक्चर, लैंग्वेज साइंस, इकोनॉमिक्स, मेडिसिन, आयुर्वेद, योग जैसे विषयों की पढ़ाई कराई जाती थी. इसकी पहचान पूरे विश्व में तब विख्यात हुई जब चीन के ह्वेनसांग और इतसिंग सातवीं सदी में भारत आए और उन्होंने चीन लौटने के बाद नालंदा विश्वविद्यालय के बारे में विस्तार से लिखा था. तब इसे विश्व का सबसे बड़ा विश्वविद्यालय बताया गया था.
कई देशों के विद्यार्थी करते थे अध्ययन : कहते हैं कि खंडहर बताती होगी की इमारत कितनी बुलंद रही होगी. नालंदा विश्वविद्यालय के साथ भी कुछ ऐसा ही था स्थापत्यकला का एक अद्भुत नमूना था. यह विश्व का पहला आवासीय विश्वविद्यालय था. इसलिए इसमें 300 से ज्यादा कमरे थे, सात बड़े-बड़े हॉल थे और इसकी लाइब्रेरी नौ मंजिला हुआ करती थी. उस लाइब्रेरी में 3 लाख से अधिक किताबें मौजूद थी.
टफ था एडमिशन पाना : इस विश्वविद्यालय में छात्रों का नामांकन इतना आसान नहीं था. मेरिट के आधार पर छात्रों का नामांकन होता था और जब नामांकन हो जाता था तो उन्हें मुफ्त शिक्षा दी जाती थी और उनका रहना खाना पीना बिल्कुल मुफ्त हुआ करता था. यहां भारत के अलग-अलग राज्यों के छात्र तो पढ़ते ही थे. इसके अलावा मंगोलिया, ग्रीस, ईरान, इंडोनेशिया, चीन, तिब्बत, जापान, कोरिया जैसे तमाम देशों के हजारों छात्र अध्ययन करते थे.
10000 छात्र थे अध्ययनरत : एक समय में यहां 10000 से ज्यादा विद्यार्थी पढ़ाई करते थे और उनको पढ़ाने के लिए 2000 से ज्यादा शिक्षक थे. नालंदा विश्वविद्यालय में कई महान विद्वानों ने अपने शिक्षा प्राप्त की जिसमें मुख्य रूप से सम्राट हर्षवर्धन, धर्मपाल, बसुबंधु, धर्मकृति, आर्यवेद, नागार्जुन जैसे विद्वानों का नाम शामिल थे.
खिलजी ने हजारों लोगों की हत्या कर दी थी : लेकिन, 1193 में एक लुटेरा आक्रांता बख्तियार खिलजी इस पूरे विश्वविद्यालय को तहस-नहस कर दिया. उसने पूरे विश्वविद्यालय में आग लगा दी. इस आक्रमण में कई धर्माचार्य, शिक्षक, विद्यार्थी और बौद्ध भिक्षुओं को मार डाला गया. जब बख्तियार खिलजी ने यहां आग लगाई थी. तब उस विश्वविद्यालय में एक मुख्य द्वार था. जिससे निकला जा सकता था. कई विद्यार्थी और भिक्षुओं की मौत वहां दम घुटने से हो गई थी. बताया जाता है कि जब बख्तियार खिलजी ने विश्वविद्यालय में आग लगाई थी तब इतनी किताबें थी कि कई महीनो तक उसका धुंआ उठता रहा था.
जो खंडहर है वो 10 फीसदी : इतिहासकार शमी रफीक बताते हैं कि इस विश्वविद्यालय की स्थापना ध्यान और आध्यात्म के लिए की गई थी. जिस सब्जेक्ट को लेकर लोग आज शोध कर रहे हैं. यदि वह विश्वविद्यालय आज संचालित रहता तो शिक्षा के क्षेत्र में नालंदा विश्वविद्यालय विश्व का नंबर वन विश्वविद्यालय होता. तक्षशिला के बाद यह ऐसा विश्वविद्यालय था जहां की शिक्षा बहुत ही समृद्धि थी. जो अवशेष मिले हैं उसे यह पता चलता है कि इसकी बनावट कितनी मजबूत रही होगी और जिस भाग में खंडहर है वह तो महज उसे पूरे विश्वविद्यालय का महज 10 फ़ीसदी है.
गुस्से में जला दिया नालंदा विश्वविद्यालय : इतिहासकार शमी रफीक ने कहा कि आक्रांता बख्तियार खिलजी ने जब इसमें आग लगाई थी. कई महीनो तक इसके किताबों से धुआं निकलता रहा. एक समय बख्तियार खिलजी बहुत ज्यादा बीमार पड़ गया. उसके हकीमों ने इसका काफी उपचार किया पर कोई फायदा नहीं हुआ. तब उसे नालंदा विश्वविद्यालय के आयुर्वेद विभाग के प्रमुख आचार्य राहुल श्रीभद्रजी से इलाज कराया. लेकिन वो भारत की आयुर्वेदिक दवा नहीं खाता था. वो ठीक नहीं हुआ तो आचार्य ने उसे कुरान पढ़ने की सलाह दी. कुरान पढ़ा और वो ठीक हो गया. खिलजी ने आचार्य का एहसान नहीं माना और उसने गुस्से में पूरे नालंदा विश्वविद्यालय में आग लगवा दी.
समृद्ध शिक्षण व्यवस्था का अंत : इतिहासकार कहते हैं कि उसने नालन्दा विश्वविद्यालय में आग नहीं लगाई थी उसने, पूरे एक समृद्ध शिक्षण व्यवस्था को आग लगा दी थी. अब तो सिर्फ यह खंडहर ही बचा है. जिस पर हम गर्व करते हैं. हालांकि बाद में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और तत्कालीन भारत के राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम के प्रयास से नालंदा यूनिवर्सिटी की स्थापना 2010 में की की गई है. यहां पढ़ाई जरूर हो रही है लेकिन, आज भी हम लोग नालंदा विश्वविद्यालय को इसलिए याद करते हैं क्योंकि, उसकी शिक्षण व्यवस्था, उस संस्थान में लोकतांत्रिक व्यवस्था इतनी अनुशासित कि वह संस्था होती तो किसी के जुबान पर ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी जैसी संस्थाओं का नाम नहीं होता.
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