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नवंबर में भी नहीं हुआ स्नोफॉल, गर्म हो रहे ग्लेशियर, बर्फ नहीं टिकने से वैज्ञानिक चिंतित

मौसम पैटर्न में बदलाव और ग्लोबल वार्मिंग के कारण नवंबर के अंत में भी हिमालयी क्षेत्रों में बर्फबारी नहीं हुई. ग्लेशियर वैज्ञानिक चिंतित

LESS SNOWFALL IN HIMALAYAN REGION
हिमालयी क्षेत्र में कम बर्फबारी (PHOTO- LAXMAN NEGI (Rudraprayag Local Resident) And ETV Bharat)
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By ETV Bharat Uttarakhand Team

Published : 2 hours ago

श्रीनगरः साल 2024 का नवंबर माह खत्म होने को है और अभी भी हिमालयी क्षेत्रों में मौसम के अनुकूल बर्फबारी न होने से हिमालय क्षेत्र बर्फ विहीन नजर आ रहे हैं. आमतौर पर नवंबर माह की शुरुआत से ही पहाड़ी इलाकों का तापमान तेजी के साथ गिरने लगता था. लेकिन मौजूदा समय में तापमान अभी भी 23 डिग्री सेल्सियस उच्चतम और 5 डिग्री न्यूनतम तक जा रहा है. वैज्ञानिकों ने इसपर चिंता जाहिर की है.

उत्तराखंड की ऊंची चोटियों पर नवंबर माह में सीजन की पहली बर्फबारी शुरू होने से मौसम ठंडा और शुष्क हो जाता था. वहीं इस बार अभी तक बर्फबारी की कोई संभावना नजर नहीं आ रही है. बर्फबारी न होने के चलते हिमालय क्षेत्र के ग्लेशियरों पर भी खतरा बढ़ रहा है. जिससे भविष्य में पानी का संकट पैदा होने की संभावना हो सकती है. यह स्थिति मौसम पैटर्न में बदलाव और ग्लोबल वार्मिंग से मौसम पर पड़ रहे दुष्प्रभाव के संकेत माने जा रहे हैं. बर्फबारी न होना केवल विशेषज्ञों को चिंता में ही नहीं डाल रहा है, बल्कि औली और चोपता जैसे पर्यटन स्थलों में पर्यटन पर आश्रित स्थानीय लोगों के रोजगार के लिए भी ये चिंता का विषय है.

गढ़वाल विश्वविद्यालय के प्रोफेसर व ग्लेशियर वैज्ञानिक एचसी नैनवाल (VIDEO-ETV Bharat)

पानी के संकट का संकेत: गढ़वाल विश्वविद्यालय के प्रोफेसर व ग्लेशियर वैज्ञानिक एचसी नैनवाल ने ईटीवी भारत से बात करते हुए बताया, 'मौसम पैटर्न में बदलाव और ग्लोबल वार्मिंग के चलते बर्फबारी कम हो रही है. जिससे हिमालय के ग्लेशियरों पर भी इसका प्रभाव पड़ रहा है. ग्लेशियरों में बर्फ इकट्ठा नहीं हो पा रही, जो कि भविष्य में होने वाले पानी के संकट का संकेत हैं'.

ग्लेशियर का मास बैलेंस नेगेटिव: प्रोफेसर नैनवाल बताते हैं कि बर्फबारी का न होना तो चिंता का विषय है ही, लेकिन उससे अधिक चौंकाने वाली बात ये है कि ग्लेशियर में रात का तापमान बढ़ रहा है. जिससे अगर बर्फबारी होती भी है, तो बर्फ ज्यादा तेजी से पिघल रही है. जबकि बर्फ जमना ज्यादा महत्वपूर्ण होता है. इससे इको सिस्टम पर इसके प्रतिकूल प्रभाव पड़ते हैं. अगर बर्फ ग्लेशियर में जम नहीं रही है, तो इससे ग्लेशियर का मास बैलेंस नेगेटिव में चला जाता है. उन्होंने बताया कि मास बैलेंस से मतलब है कि साल भर में जितनी बर्फ आ रही है, उससे ज्यादा बर्फ पिघल रही है, जो चिंता का विषय है.

वार्मिंग स्टेज में पृथ्वी: उन्होंने बताया कि ग्लेशियर में रात के समय तापमान उतना ठंडा नहीं रह गया है, जितना होना चाहिए था. इस कारण ग्लेशियर पीछे की तरफ भी खिसक रहे हैं. उन्होंने बताया कि नवंबर से लेकर मार्च तक ग्लेशियर में सबसे ज्यादा बर्फ गिरती है, जो वहां ग्लेशियर में इकट्ठा होती है. मई से लेकर अक्टूबर तक बर्फ पिघलती है. उन्होंने यह भी बताया कि अभी पृथ्वी वार्मिंग स्टेज में है. जब भी पृथ्वी वार्मिंग स्टेज में होती है, तो ग्लेशियर पीछे की ओर खिसकते हैं. यानी उनके वॉल्यूम और मोटाई में कमी आती है. उन्होंने बताया कि वे सतोपंथ, राजबेंग और भगीरथ ग्लेशियर की लगातार कई समय मॉनिटरिंग कर सभी पहलुओं पर शोध कर रहे हैं.

ये भी पढ़ेंः मौसम को ये क्या हुआ? बर्फबारी के लिए तरसा हिमालय, काश्तकार मायूस, पर्यावरणविद् चिंतित

श्रीनगरः साल 2024 का नवंबर माह खत्म होने को है और अभी भी हिमालयी क्षेत्रों में मौसम के अनुकूल बर्फबारी न होने से हिमालय क्षेत्र बर्फ विहीन नजर आ रहे हैं. आमतौर पर नवंबर माह की शुरुआत से ही पहाड़ी इलाकों का तापमान तेजी के साथ गिरने लगता था. लेकिन मौजूदा समय में तापमान अभी भी 23 डिग्री सेल्सियस उच्चतम और 5 डिग्री न्यूनतम तक जा रहा है. वैज्ञानिकों ने इसपर चिंता जाहिर की है.

उत्तराखंड की ऊंची चोटियों पर नवंबर माह में सीजन की पहली बर्फबारी शुरू होने से मौसम ठंडा और शुष्क हो जाता था. वहीं इस बार अभी तक बर्फबारी की कोई संभावना नजर नहीं आ रही है. बर्फबारी न होने के चलते हिमालय क्षेत्र के ग्लेशियरों पर भी खतरा बढ़ रहा है. जिससे भविष्य में पानी का संकट पैदा होने की संभावना हो सकती है. यह स्थिति मौसम पैटर्न में बदलाव और ग्लोबल वार्मिंग से मौसम पर पड़ रहे दुष्प्रभाव के संकेत माने जा रहे हैं. बर्फबारी न होना केवल विशेषज्ञों को चिंता में ही नहीं डाल रहा है, बल्कि औली और चोपता जैसे पर्यटन स्थलों में पर्यटन पर आश्रित स्थानीय लोगों के रोजगार के लिए भी ये चिंता का विषय है.

गढ़वाल विश्वविद्यालय के प्रोफेसर व ग्लेशियर वैज्ञानिक एचसी नैनवाल (VIDEO-ETV Bharat)

पानी के संकट का संकेत: गढ़वाल विश्वविद्यालय के प्रोफेसर व ग्लेशियर वैज्ञानिक एचसी नैनवाल ने ईटीवी भारत से बात करते हुए बताया, 'मौसम पैटर्न में बदलाव और ग्लोबल वार्मिंग के चलते बर्फबारी कम हो रही है. जिससे हिमालय के ग्लेशियरों पर भी इसका प्रभाव पड़ रहा है. ग्लेशियरों में बर्फ इकट्ठा नहीं हो पा रही, जो कि भविष्य में होने वाले पानी के संकट का संकेत हैं'.

ग्लेशियर का मास बैलेंस नेगेटिव: प्रोफेसर नैनवाल बताते हैं कि बर्फबारी का न होना तो चिंता का विषय है ही, लेकिन उससे अधिक चौंकाने वाली बात ये है कि ग्लेशियर में रात का तापमान बढ़ रहा है. जिससे अगर बर्फबारी होती भी है, तो बर्फ ज्यादा तेजी से पिघल रही है. जबकि बर्फ जमना ज्यादा महत्वपूर्ण होता है. इससे इको सिस्टम पर इसके प्रतिकूल प्रभाव पड़ते हैं. अगर बर्फ ग्लेशियर में जम नहीं रही है, तो इससे ग्लेशियर का मास बैलेंस नेगेटिव में चला जाता है. उन्होंने बताया कि मास बैलेंस से मतलब है कि साल भर में जितनी बर्फ आ रही है, उससे ज्यादा बर्फ पिघल रही है, जो चिंता का विषय है.

वार्मिंग स्टेज में पृथ्वी: उन्होंने बताया कि ग्लेशियर में रात के समय तापमान उतना ठंडा नहीं रह गया है, जितना होना चाहिए था. इस कारण ग्लेशियर पीछे की तरफ भी खिसक रहे हैं. उन्होंने बताया कि नवंबर से लेकर मार्च तक ग्लेशियर में सबसे ज्यादा बर्फ गिरती है, जो वहां ग्लेशियर में इकट्ठा होती है. मई से लेकर अक्टूबर तक बर्फ पिघलती है. उन्होंने यह भी बताया कि अभी पृथ्वी वार्मिंग स्टेज में है. जब भी पृथ्वी वार्मिंग स्टेज में होती है, तो ग्लेशियर पीछे की ओर खिसकते हैं. यानी उनके वॉल्यूम और मोटाई में कमी आती है. उन्होंने बताया कि वे सतोपंथ, राजबेंग और भगीरथ ग्लेशियर की लगातार कई समय मॉनिटरिंग कर सभी पहलुओं पर शोध कर रहे हैं.

ये भी पढ़ेंः मौसम को ये क्या हुआ? बर्फबारी के लिए तरसा हिमालय, काश्तकार मायूस, पर्यावरणविद् चिंतित

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