ETV Bharat / state

देवताओं के बाद यहां लोग करते हैं भगवान शिव का ये अनुष्ठान, युगों से चली आ रही परंपरा, हर मुराद होती है पूरी

Ghrit Kamal Anushthan श्रीनगर कमलेश्वर मंदिर में घृत कमल का अनुष्ठान विधि-विधान के साथ पूरा हो गया है. महंत आशुतोष पुरी ने दिगम्बर अवस्था में मंदिर की लोट परिक्रमा की. वहीं अनुष्ठान में भाग लेने लोग दूर-दूर से पहुंच रहे हैं.

Etv Bharat
Etv Bharat
author img

By ETV Bharat Uttarakhand Team

Published : Feb 16, 2024, 11:39 AM IST

Updated : Feb 16, 2024, 12:27 PM IST

श्रीनगर कमलेश्वर मंदिर में घृत कमल अनुष्ठान

श्रीनगर: उत्तराखंड के श्रीनगर में भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए कमलेश्वर महादेव में देवताओं द्वारा की जाने वाली पूजा आज भी की जाती है. इस विशेष पूजा को घृत कमल पूजा के नाम से जाना जाता है. इस पूजा में जहां भगवान को 56 प्रकार के व्यंजन और 36 प्रकार के भोग लगाए जाते हैं.

साथ में शिवलिंग पर 50 किलो से अधिक का घी अर्पित किया जाता है. इसके साथ ही मंदिर के महंत दिगम्बर अवस्था धारण कर मंदिर की लौट परिक्रमा करते हैं. इस पूजा को देखने के लिए दूर दराज से श्रद्धालु मंदिर पहुंचते हैं.बीते देर सायं 8 बजे शुरू ये पूजा आज देर रात्रि तक होगी. अंत में श्रद्धालुओं को भगवान शिव पर अर्पित किया गया घी प्रसाद के रूप में दिया जाता है. इस अनुष्ठान के पीछे धार्मिक मान्यता भी है. कहा जाता है कि माता सती के सती होने के बाद धरती पर तारकासुर नाम के राक्षस का उदय हुआ. तारकासुर को भगवान ब्रह्मा का वरदान था कि वह भगवान शिव के पुत्र के हाथों ही मारा जाएगा.
पढ़ें-शिव पार्वती के विवाह स्थल त्रियुगीनारायण में बढ़ रही श्रद्धालुओं की संख्या, व्यापारी खुश

लेकिन भगवान शिव माता सती के वियोग में चले गए, इस दौरान देवताओं ने कामदेव को भगवान शिव की कामसक्त भावना जागृत करने हेतु भेजा. लेकिन भगवान शिव के क्रोध व तीसरे नेत्र ने कामदेव को भस्म कर दिया. तत्पश्चात भगवान ब्रह्मा ने देवताओं को घृत कमल पूजा विधि करने हेतु बताया. देवताओं ने घृत कमल पूजन कर भगवान शिव को विवाह हेतु मनाया और भगवान शिव ने माता पार्वती से विवाह किया.भगवान शिव और पार्वती पुत्र द्वारा तारकासुर का वध हुआ. कालांतर में ये पूजा आज भी कमलेश्वर मंदिर में कई जाती है. जिसे अब देवताओं के बजाय मंदिर के महंत करते हैं.
पढ़ें-लवर्स का 'फाइनल' डेस्टिनेशन बन रहा त्रियुगीनारायण मंदिर, 6 महीने में हुई 40 शादियां, जानिये रजिस्ट्रेशन का प्रोसेस

मंदिर के महंत आशुतोष बताते है कि प्राचीन काल से ही माघ शुक्ल सप्तमी के दिन ये पूजा की जाती है. जिसमें भगवान को 56 प्रकार के व्यंजन 36 प्रकार का भोग लगाए जाते हैं. वहीं महंत दिगम्बर अवस्था में भगवान शिव की लौट परिक्रमा करते हैं. पूजन विधि बीते देर सायं शुरू होकर देर रात तक चलती है. पंडित दुर्गा प्रसाद बमराणा बताते हैं कि पूजन 6 आवरणों में की जाती है. जिसमें 3 बार सांगोपांग पूजा की जाती है. अंत में व्यंजनों का भोग लगाया जाता है.

कमलेश्वर मंदिर में वैसे तो कार्तिक शुक्ल चतुर्थी के दिन नि:स्तान दंपति मंदिर में खड़े दीपक का अनुष्ठान करते हैं. ऐसा माना जाता है कि द्वापर युग में भगवान श्रीकृष्ण खुद खड़े दीपक का अनुष्ठान कर चुके हैं. जिसके बाद उन्हें स्वाम नाम के पुत्र की प्राप्ति हुई थी.

श्रीनगर कमलेश्वर मंदिर में घृत कमल अनुष्ठान

श्रीनगर: उत्तराखंड के श्रीनगर में भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए कमलेश्वर महादेव में देवताओं द्वारा की जाने वाली पूजा आज भी की जाती है. इस विशेष पूजा को घृत कमल पूजा के नाम से जाना जाता है. इस पूजा में जहां भगवान को 56 प्रकार के व्यंजन और 36 प्रकार के भोग लगाए जाते हैं.

साथ में शिवलिंग पर 50 किलो से अधिक का घी अर्पित किया जाता है. इसके साथ ही मंदिर के महंत दिगम्बर अवस्था धारण कर मंदिर की लौट परिक्रमा करते हैं. इस पूजा को देखने के लिए दूर दराज से श्रद्धालु मंदिर पहुंचते हैं.बीते देर सायं 8 बजे शुरू ये पूजा आज देर रात्रि तक होगी. अंत में श्रद्धालुओं को भगवान शिव पर अर्पित किया गया घी प्रसाद के रूप में दिया जाता है. इस अनुष्ठान के पीछे धार्मिक मान्यता भी है. कहा जाता है कि माता सती के सती होने के बाद धरती पर तारकासुर नाम के राक्षस का उदय हुआ. तारकासुर को भगवान ब्रह्मा का वरदान था कि वह भगवान शिव के पुत्र के हाथों ही मारा जाएगा.
पढ़ें-शिव पार्वती के विवाह स्थल त्रियुगीनारायण में बढ़ रही श्रद्धालुओं की संख्या, व्यापारी खुश

लेकिन भगवान शिव माता सती के वियोग में चले गए, इस दौरान देवताओं ने कामदेव को भगवान शिव की कामसक्त भावना जागृत करने हेतु भेजा. लेकिन भगवान शिव के क्रोध व तीसरे नेत्र ने कामदेव को भस्म कर दिया. तत्पश्चात भगवान ब्रह्मा ने देवताओं को घृत कमल पूजा विधि करने हेतु बताया. देवताओं ने घृत कमल पूजन कर भगवान शिव को विवाह हेतु मनाया और भगवान शिव ने माता पार्वती से विवाह किया.भगवान शिव और पार्वती पुत्र द्वारा तारकासुर का वध हुआ. कालांतर में ये पूजा आज भी कमलेश्वर मंदिर में कई जाती है. जिसे अब देवताओं के बजाय मंदिर के महंत करते हैं.
पढ़ें-लवर्स का 'फाइनल' डेस्टिनेशन बन रहा त्रियुगीनारायण मंदिर, 6 महीने में हुई 40 शादियां, जानिये रजिस्ट्रेशन का प्रोसेस

मंदिर के महंत आशुतोष बताते है कि प्राचीन काल से ही माघ शुक्ल सप्तमी के दिन ये पूजा की जाती है. जिसमें भगवान को 56 प्रकार के व्यंजन 36 प्रकार का भोग लगाए जाते हैं. वहीं महंत दिगम्बर अवस्था में भगवान शिव की लौट परिक्रमा करते हैं. पूजन विधि बीते देर सायं शुरू होकर देर रात तक चलती है. पंडित दुर्गा प्रसाद बमराणा बताते हैं कि पूजन 6 आवरणों में की जाती है. जिसमें 3 बार सांगोपांग पूजा की जाती है. अंत में व्यंजनों का भोग लगाया जाता है.

कमलेश्वर मंदिर में वैसे तो कार्तिक शुक्ल चतुर्थी के दिन नि:स्तान दंपति मंदिर में खड़े दीपक का अनुष्ठान करते हैं. ऐसा माना जाता है कि द्वापर युग में भगवान श्रीकृष्ण खुद खड़े दीपक का अनुष्ठान कर चुके हैं. जिसके बाद उन्हें स्वाम नाम के पुत्र की प्राप्ति हुई थी.

Last Updated : Feb 16, 2024, 12:27 PM IST
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.