नई दिल्ली: दिल्ली के राऊज एवेन्यू कोर्ट के सेशंस कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में पूर्व क्रिकेटर और पूर्व बीजेपी सांसद गौतम गंभीर को रियल इस्टेट कंपनी रुद्र बिल्डवेल रियलिटी प्राईवेट लिमिटेड के फ्लैट खरीददारों के साथ धोखाधड़ी करने के आरोप से बरी करने के मजिस्ट्रेट कोर्ट के आदेश को निरस्त कर दिया है. स्पेशल जज विशाल गोगने ने इस मामले को मजिस्ट्रेट कोर्ट को वापस भेजते हुए निर्देश दिया कि गौतम गंभीर के खिलाफ आरोप तय करने के लिए नए सिरे से आदेश जारी किया जाए, जिसमें मामले से जुड़े सभी आरोपियों की विस्तृत जानकारी शामिल हो.
बता दें कि, दिसंबर 2020 में, मजिस्ट्रेट कोर्ट ने गौतम गंभीर को बरी कर दिया था. उस समय वह सांसद थे, जिसकी वजह से राउज एवेन्यू कोर्ट में सुनवाई चल रही थी. हालांकि, दिल्ली पुलिस ने सितंबर 2019 में साकेत कोर्ट में इस मामले में चार्जशीट दाखिल की थी. इसमें गौतम गंभीर के अलावा, कंपनी के प्रमोटर मुकेश खुराना, गौतम मेहरा और बबीता खुराना को भी आरोपी बनाया गया था.
धोखाधड़ी के आरोप: रुद्र बिल्डवेल रियलिटी प्राईवेट लिमिटेड पर आरोप है कि इसने फ्लैट धारकों से पैसे लेकर ठगी की. आरोप है कि कंपनी ने गौतम गंभीर का नाम भुनाते हुए निवेशकों से पैसे लिए, लेकिन उन्हें फ्लैट नहीं दिए. फ्लैट खरीददारों की शिकायत पर आर्थिक अपराध शाखा (ईओडब्ल्यू) ने केस दायर किया है. शिकायतकर्ताओं ने बताया कि उन्होंने 2011 में गाजियाबाद के इंदिरापुरम में कंपनी के एक रियल एस्टेट प्रोजेक्ट में फ्लैट बुक किया था, लेकिन उन्हें समय पर फ्लैट नहीं मिले. दिल्ली पुलिस की चार्जशीट पर कहना है कि कंपनी ने 6 जून 2013 को बायर्स को फ्लैट देने का वादा किया था, लेकिन 2014 तक उसने टालमटोल कर देने की बात कही.
15 अप्रैल 2015 को अधिकारियों ने प्रोजेक्ट का अनुमोदन रद्द कर दिया. गौतम गंभीर के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 406 (धोखाधड़ी) और धारा 420 (धोखाधड़ी और विश्वासघात) के तहत मामला दर्ज किया गया था.
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